अन्धविश्वास के विरुद्ध उनके एक 112 साल पुराने लेख पर आज चर्चा की जा रही है.
अशिक्षित स्त्रियों में अंधविश्वास का बहुत अधिक प्रसार होता है.
जादू, काला जादू, गण्डे, ताबीज़, टोटका, नज़र लगना, जिन्न, भूत, चुड़ैल, मन्नत और न
जाने किस-किस में ये विश्वास करती हैं.
स्त्री-समाज
में तो अंधविश्वासों का बोलबाला कुछ ज़्यादा ही था.
अंधविश्वास के
उन्मूलन के लिए स्त्री-शिक्षा का प्रसार अत्यन्त आवश्यक है.
दिल्ली से
प्रकाशित स्त्री-शिक्षा की समर्थक पत्रिका - 'इस्मत' के दिसम्बर, 1908 के अंक में सैयद अहमद देहलवी का लेख -
'औरतों के मनगढ़न्त मसले' प्रकाशित हुआ था.
इस लेख में
स्त्री-समाज में व्याप्त कुछ अंधविश्वासों की बानगी दृष्टव्य है –
1. पहलौटी के बच्चे को बिजली के सामने न आने दो क्यूँकि जेठे पर अक्सर बिजली
गिरती है । पहलौटी बच्चे की बहुत हिफ़ाज़त करो.
2. जिन्न वा प्रेत को यह (पहलौटी बच्चा) प्यारा होता है, भेंट (बलि)
इसकी चढ़ाई जाती है, नज़र इसको लगती है.
गरज़ कि सबसे
ज़्यादा आफतें इस पर आती हैं.
3. तीतरा बेटा (तीन लड़कियों के बाद पैदा होने वाला) मँगाता (भीख मँगाता) और तीतरी
बेटी (तीन लड़कों के बाद पैदा होने वाली) राज कराती है.
4.. बहुत पानी बरसे तो उसके पानी में तेल डाल दो, थम जाएगा.
5. सख़्त आँधी आए तो झाड़ू खड़ी कर दो, रुक जाएगी.
6. शबे बरात को परछाईं देखो, अगर नज़र आए तो जानो कि इस साल ज़िदा रहोगे
वरना समझ लो कि हमारी उम्र पूरी हो गई.
7. अगर कोई टोके यानी तारीफ़ करे तो कह दो कि अपनी ऐड़ी देखो, इसमें क्या
लगा है, ताकि उसकी टोक और नज़र न लगे. (हमारे घर में बुज़ुर्ग महिलाएं ऐसी स्थिति में - 'तेरी आँख में
चटर-पटर' कहती थीं.)
8. नाखुन कुतरो तो पोटली बाँध कर ज़मीन में दबा दो ताकि क़यामत के दिन फ़रिश्ते
ढूढ़ते न फिरें और तुमको इसका इज़ाब न हो (स्वीकृति न हो)
9. छिपकली छू जाय तो सोने के पानी से धो डालो.
10. छिपकली का नाम मुरदारी लो (कहो)
11. हाथ की चूडी टूटे तो ठन्डी हुई कहो क्योंकि बेवा होने पर चूड़ियाँ तोड़ी जाती
हैं.
12. दुपट्टा कहीं से जल जाय तो दूध से धो डालो.
13. काली खाँसी हो जाए तो काले कुत्ते को दही चटा दो.
14. जब कोई अज़ीज़ सफ़र को जाय तो उसकी पीठ को आइना दिखाओ ताकि जिस तरह जाते की पीठ
देखी है, आते का मुँह देखो.
15. जिस वक़्त ज़लज़ला (तूफ़ान) आए तो पुकार कर कहो ‘ज़ल्ले जलाल तू, आई बला को टाल तू'
16.बिल्ली रास्ता काट दे तो आगे न जाओ. बचकर निकल जाओ.
17. तीसरी तारीख़ का चाँद देखना मनहूस है.
18. कोई चीज़ तीन, तेरह लो न दो कि मुफ़ारक़त (विच्छेद) की अलामत (लक्षण) है.
19. गहन के दिन अक्सर बच्चा गहनाया (दोषयुक्त) हुआ पैदा होता है.
20. औरत की दाहिनी, मर्द की बाईं आँख फड़कनी अच्छी है, बिछड़ा हुआ अज़ीज़ मिलता है.
उसके बरख़िलाफ़
हो तो रेज़ व सदमें (बिछोह और शोक) की अलामत है.
21. मूली की पेंदी (जड़) खाने से माँ-बाप मर जाते हैं.
मर्त ब्याही
(जिसके बच्चे जीवित न रहते हों) औरत कीपरछाईं से बचो नहीं तो तुम्हारे बच्चे भी
नहीं बचेंगे.
22. जिस वक़्त बच्चा पैदा हो, फ़ौरन तवा बजा दो ताकि आवाज़ से मानूस (हिला
हुआ) हो जाय.
23. कव्वा बोले तो किसी अज़ीज़ परदेसी के आने का शगुन समझो और नाम लेकर पूछो कि क्या
फलाँ शख़्स आता है, अगर उसके नाम पर उड़ जाय तो जानो कि वह आता है.
24. साँप कुवाँरी बाली के (लड़की) साये से अंधा हो जाता है.
25. खाना खाकर हाथ न झटको, इससे नहूसत (मनहूसियत) आती है.
अन्धविश्वास के प्रति सजग करती उपयोगी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' !
हटाएंमेरा इरादा इस तरह के कई आलेख प्रस्तुत करने का है.
मजेदार अंधविश्वासों को पढ़कर मनोरंजन तो हुआ। इनमें से कई तो पहली बार पता चले।
जवाब देंहटाएंमीना जी, ऐसे मूर्खतापूर्ण विश्वासों के बारे में जान कर पहले तो हंसी आती है फिर गुस्सा आता है.
हटाएंदुनिया भर में, खासकर भारत में, जन-गण-अधिनायक, सब के मन में, अन्धविश्वास का ही साम्राज्य दिखाई पड़ता है.
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2036...कुछ देर जागकर हम आज भी सो रहे हैं...) पर गुरुवार 11 फ़रवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं'पांच लिंकों का आनंद' (2036 - कुछ देर जाग कर हम भी सो रहे हैं) में मेरे आलेख को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी.
हटाएं. कव्वा बोले तो किसी अज़ीज़ परदेसी के आने का शगुन समझो और नाम लेकर पूछो कि क्या फलाँ शख़्स आता है, अगर उसके नाम पर उड़ जाय तो जानो कि वह आता है...ये अनुभव बचपन में कई बार हुआ..तब विश्वास हो जाता था..चूँकि दादी ऐसा कहती थी..परंतु आज हंसी आती है..वैसे वर्तमान परिवेश में ये भ्रांतियां कम हो रही हैं..जागरूकता बढ़ाने वाला लेख..
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा, हमारे देश में जहालत की परंपरा को निभाते रहने को लोगबाग अपनी संस्कृति-तहज़ीब का संरक्षण-हिफ़ाज़त करना समझते हैं.
हटाएंराजा राममोहन रॉय ने जब सती प्रथा के खिलाफ़ कानून बनवाया था तो उनकी माँ ने अपने लिए मरा हुआ मान कर उनके जीते जी उनका श्राद्ध करवा दिया था.
आज पुरानी भ्रांतियां ज़रूर कम हो रही हैं लेकिन रोज़-रोज़ नई भ्रांतियां जन्म ले रही हैं.
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्यारे दोस्त !
हटाएंअंधविश्वास ने जनमानस में इतनी गहरी पैठ बैठा ली है कि एक इंजीनियर का मन भी इंटरव्यू देने जाते समय यदि छींक आ जाए सशंकित हो उठता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर आलेख,गोपेश भाई।
प्रशंसा के लिए धन्यवाद ज्योति!
हटाएंहमारे-तुम्हारे जैसे अंधविश्वास के विरुद्ध अभियान छेड़ने वाले जागरूक लोग भी कभी-कभार इस मर्ज़ के शिकार हो जाते हैं.
वाह!आदरणीय गोपेश जी ,बचपन में इनमें से कुछ बातें जरूर सुनी थी ,कुछ तो एकदम अनसुनी सी हैं ।पढकर अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद शुभा.
जवाब देंहटाएंअंधविश्वास हमारी घुट्टी में है. इसको जड़ से मिटाने के लिए हमको हिम्मत से काम लेना होगा. बड़े-बूढों की भावनाओं को कभी-कभार ठेस पहुंचाने में भी संकोच नहीं करना होगा.
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जवाब देंहटाएंआदरणीय गोपेश जी. सर सैयद देहलवी जी के स्लेख के सौजन्य से --औरतों के मनगढ़न्त मसले- म्पधकर बहु हँसी आ रही है | मेरी स्वर्गीय दादी माँ हम बहनों को अक्सर ऊँगली उठाकर कहते देख [ हालाँकि इसी नौबत ऊँगली में कोई दिक्कत आने से ही आती थी ] बहुत कुपित हो जाती थी और ऐसा ना करने की सख्त हिदायत देती थी जिसके पीछे तर्क था भाई की उम्र छोटी हो जायेगी | बहुत अच्छा लगा ये रोचक लेख पढ़कर | सादर
जवाब देंहटाएंरेणु जी, मेरी श्रीमती जी की स्वर्गीय बुआ जी हम सबको बहुत प्यार करती थीं.
जवाब देंहटाएंएक बार ससुराल में मैंने नया सफ़ारी सूट पहना तो बुआ जी बोलीं -
गोपेश जी इतने अच्छे लग रहे हैं. कहीं इनको किसी की नज़र न लग जाए.'
इत्तिफ़ाक़ की बात कि इस बात के दो घंटे बाद ही मेरी कमर की नस चलने से वह दर्द से दोहरी हो गयी.
मेरे लाख मना करने पर भी मुझ 33 साल के बच्चे की लाल मिर्च के धुंए से नज़र उतारी गयी, सर के ऊपर चप्पलों से तालियाँ बजाई गईं और न जाने क्या-क्या किया गया.
मेरी कमर का दर्द दो-तीन दिन में अपने आप ठीक हो गया लेकिन इसका सारा श्रेय उन बेवकूफ़ाना और जाहिलाना हरक़तों को दिया गया.