मंगलवार, 16 मार्च 2021

नया सत्र

(गीतिका के बेटे यानी कि हमारे नाती, अमेय ने कक्षा 1 की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है और अब वह अप्रैल में कक्षा 2 में प्रवेश करने जा रहा है.
गीतिका ने इस ख़ुशी के मौक़े पर अमेय के सफल जीवन की कामना की है और साथ में पिछले साल हुई एक दुखद घटना को याद भी किया है.
अंग्रेज़ी में लिखी गयी उसकी इस भावुकतापूर्ण पोस्ट का मैंने हिंदी भावानुवाद किया है.
इस भावानुवाद के बाद मैंने गीतिका के मूल-उदगार भी जोड़ दिए हैं.)
ये एक फ़ुर्सत से भरी सुबह है.
पहले की तरह मुझे अलार्म लगा कर अपने बेटे को स्कूल जाने के लिए तैयार करने की कोई जल्दी नहीं है.
आख़िरकार, वर्ष 2020-21 का शैक्षिक सत्र अब समाप्त हो रहा है.
मैं नींद से उठ कर अपने बेटे को सोता हुआ देख कर आनंदित हो रही हूँ.
उसके भोले से चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान देख कर मैं बहुत भावुक हो रही हूँ.
हे भगवान ! यह कैसा साल था !
कितने उतार-चढ़ाव थे इसमें !
और सच कहूं तो इसमें चढ़ाव तो कम और उतार ही ज़्यादा थे !
मैं बच्चों की समुत्थान शक्ति (गिरने के बाद फिर से उठ खड़े होने की ताक़त) देख कर चकित हूँ.
इस महामारी का दौर हम सब के लिए बहुत कष्टकारी रहा है लेकिन यह बच्चों पर सबसे ज़्यादा भारी पड़ा है.
बच्चों को घर में ही नज़रबंद हुए पूरा एक साल बीत गया है.
न तो उनके हॉबी क्लासेज़ हो पा रहे हैं और न ही वो पहले की तरह से पढ़ने के लिए स्कूल जा पा रहे हैं.
मैं देख रही हूँ कि मेरा बेटा अपने दोस्तों को, अपनी टीचर्स को, अपने क्लास-रूम को और अपनी स्कूल बस को बहुत मिस कर रहा है.
अब उसने इन हालात से समझौता कर लिया है कि इस साल इन सबके बिना ही उसे काम चलाना पड़ेगा.
मैंने देखा है कि वह पढ़ने की नई-नई तकनीक, नई-नई विधियाँ सीख रहा है.
ऑनलाइन स्कूली ज़िंदगी के अनुरूप उसने ख़ुद को ढाल लिया है.
लेकिन मेरे बेटे ने अपनी अद्वितीय समुत्थान-शक्ति का प्रदर्शन तब किया जब पिछले साल उसकी दादी का देहांत हुआ.
उसने देखा कि भली-चंगी दादी एकदम से उसकी और हम सबकी, ज़िंदगी से बहुत दूर चली गईं.
हमारे परिवार के लिए उनका जाना और इस दारुण दुःख से हमारा उबर पाना बहुत दुष्कर कार्य था.
मैं तो इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकती कि मेरा बेटा इस मुश्किल दौर से कैसे गुज़रा होगा.
अमेय अपनी दादी से बहुत हिला हुआ था.
उनका आपसी रिश्ता दादी-पोते का कम और दोस्तों का ज़्यादा था.
दोनों मिल कर धमा-चौकड़ी मचाते थे.
अमेय को हर काम में, हर अभियान में, आगे बढ़ाने में चीयर लीडर की भूमिका उसकी दादी ही निभाया करती थीं.
मुझे यह देख कर बहुत संतोष है कि वह अपनी दादी को खोने के गम से उबर कर अब फिर आगे बढ़ चला है.
अमेय ने अपनी दादी को खोने के दुःख को बहुत शांत हो कर सहा है.
वह आज भी उनकी कमी महसूस करता है और हर रात प्रार्थना करते समय उनको याद भी करता है.
ऑनलाइन क्लास के दौरान उसकी टीचर ने उस से पूछा था –
‘अगर तुमको कोई जादुई चिराग मिल जाए तो तुम उस से क्या मांगोगे?’
अमेय ने जवाब दिया –
‘मैं उस चिराग से मांगूगा कि मेरी दादी वापस आ जाएं.’
अमेय की इस बात को सुन कर मेरा दिल भर आया.
मेरा मन किया कि मैं उसको कस कर अपने सीने से लगा लूं.
मेरी बेटी इरा तो अभी बहुत छोटी है. इस हादसे की गंभीरता को पूरी तरह से समझ पाना उसकी पहुँच के बाहर है.
वह तो यही समझ रही थी कि दादी इंडिया गयी हैं.
लेकिन कुछ दिन पहले उसने मुझे बताया कि उसकी दादी एक तारा बन गयी हैं. मेरी बेटी को यह नया ज्ञान उसके भाई ने दिया था.
मेरे पास अमेय की तारीफ़ के लिए अल्फ़ाज़ नहीं हैं.
मुझे उस पर नाज़ है.
मुझे पता है कि स्वर्ग में विराजमान उसकी दादी को उसकी उपलब्धियों पर मुझ से भी कहीं अधिक नाज़ होगा.
मैं उम्मीद करती हूँ कि आने वाला साल, पिछले साल की तुलना में हम पर और ख़ास कर, हमारे बच्चों पर, बहुत मेहरबान होगा.
It is a lazy morning. No ringing of the alarm and no rush for the early morning classes for my son. Yes the academic year 2020-21 has finally come to an end. I get up and look at my son sleeping blissfully. I am overwhelmed with emotions as I notice a sweet smile on that cherubic face. What an year it has been! Full of high and lows...probably more lows. And I marvel at the resilience of childhood.
Pandemic has been tough for all of us but it has taken the maximum toll on kids. Just imagine being locked up indoors for months, missing all your hobby classes and having to attend the school without actually visiting the school for a whole year. I have seen my son missing his friends, his teachers, classroom and bus and then coming to terms with the fact that he can not meet them this year. I saw him learning new academic apps and getting adjusted to "online school life".
But my boy showed maximum resilience this year when he lost his dadi. He saw her going from being absolutely fine to one day just vanishing from our lives. It was an extremely tough time for my family coming to terms with this massive loss and I can't even imagine what my son went through during that period. He was extremely close to her...they were like best buddies and she was probably his biggest cheerleader. And yet I saw him bouncing back.
He was just so calm while processing his grief. He still misses her and remembers her while saying his prayers every night. The other day his teacher asked him what would be his wish if he got a magic lamp and he said I will bring my dadi back.
It really broke my heart and I just wanted to hug him tight.
My daughter who is still too young to understand the whole situation believed Dadi is in India.
But few days back she told me that Dadi is a star in the sky. Her brother told her that.
I had no words. I really feel so proud of him. And I know his Grandma would have been even prouder of all his achievements this year.
I just hope that the coming year will be kinder to all of us, especially our kids.

16 टिप्‍पणियां:

  1. लाजवाब अभिव्यक्ति और उतना ही लाजवाब अनुवाद भी। अमेय इसी तरह खुश रहे और परिवार को खुशी दे। उसके लिये आशीष। सभी के लिये ये समय कठिन है। दादी की जगह कौन ले सकता है? यही जीवन है।

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    1. अमेय को आशीष देने के लिए धन्यवाद मित्र !
      अमेय में उसकी दादी के प्राण बसते थे. उनकी बातों में ज़्यादातर ज़िक्र अमेय का ही होता था.
      हम सब लोग माँ-बाप की भूमिका में उतने अच्छे नहीं हो पाते जितने कि दादा-दादी और नाना-नानी की भूमिका में हो पाते हैं.

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-03-2021) को    "अपने घर में ताला और दूसरों के घर में ताँक-झाँक"   (चर्चा अंक-4008)    पर भी होगी। 
    --   
    मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --  

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    1. 'अपने घर में ताला और दूसरों के घर में तांक-झांक' (चर्चा अंक - 4008) में मेरी बेटी गीतिका के आलेख को और मेरे द्वारा उसके हिंदी भावानुवाद को, सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्र्त्री 'मयंक' !

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  3. हृदयग्राही रचना
    साधुवाद 🙏

    सादर,
    डॉ. वर्षा सिंह

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    1. गीतिका के उदगार की प्रशंसा के लिए धन्यवाद वर्षा जी.

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  4. बहुत बढ़िया लेखन गीतिका का। अमेय को शुभाशीष।

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  5. गीतिका के लेखन की प्रशंसा के लिए धन्यवाद ज्योति !
    अमेय और उसकी बहन इरा, दोनों को ही, तुम्हारे आशीष की अपेक्षा है.

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  6. हृदय स्पर्शी रचना,वास्तव में यह साल बड़ों के लिए तो कष्टकारी रहा ही लेकिन अबोध बच्चों के लिए बहुत कष्टदायक उनकी तो चंचलता ही छीन ली जैसे

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    1. अभिलाषा जी, भगवान हमारी परीक्षा पर परीक्षा लिए ही जा रहा है.
      इस महामारी में बच्चे घुट-घुट कर जी रहे हैं और फिर ऐसे में कोई उनका अज़ीज़ उन से हमेशा के लिए बिछड़ जाए तो उनके दुःख की कोई कहाँ थाह पा सकता है?

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  7. नई पीढ़ी में संस्कार पर‍िवार से ही आते हैं और गीत‍िका व अमेय के बीच हुई बातचीत ये द‍िखाने के ल‍िए काफी है क‍ि परवर‍िश क‍ितनी उम्दा हुई है...

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    1. धन्यवाद अलकनंदा जी.
      जन्म से दुबई में ही रहते हुए गीतिका का बेटा अमेय और उसकी बेटी इरा दिल से भारतीय ही हैं.

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  8. कई संदर्भों को रेखांकित करती हुई पोस्ट, जिसमें संस्कार के साथ अपनी सभ्यता एवम अपने बड़ों से स्नेह प्रेम,की बात बताई आपने,जो कि बहुत हृदयस्पर्शी है ।

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    1. जिज्ञासा, मैंने तो अपनी बेटी गीतिका के अंग्रेज़ी में व्यक्त भावों का सिर्फ़ हिंदी-अनुवाद किया है.
      अगर तारीफ़ करनी ही है तो फिर उसकी कलम की करो.

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  9. बहुत ही हृदयस्पर्शी एवं भावपूर्ण लिखा है प्रिय गीतिका ने...।प्रिय अमेय को अनंत शुभाशीष।

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    1. गीतिका के लेखन की प्रशंसा के लिए धन्यवाद सुधा जी.
      अमेय ने दादी को खोने के बाद अपने संयम और धैर्य का परिचय दिया है.
      आपका आशीर्वाद उसे आगे बढ़ते रहने में सहायक सिद्ध होगा.

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