महात्मा गाँधी अपने दक्षिण अफ्रीका प्रवास में गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर के बहुत बड़े प्रशंसक थे. 19 जुलाई, 1905 को तत्कालीन गवर्नर-जनरल लार्ड कर्ज़न ने सांप्रदायिक आधार पर बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा की थी. बंगाल के निवासियों में धर्म के आधार पर फूट डालने के इस षड्यंत्र के विरोध में गुरुदेव टैगोर ने जन-जागृत अभियान का नेतृत्व किया था. बंगाल-विभाजन के विरुद्ध आन्दोलन के दौरान गुरुदेव का गीत -
‘आमार शोनार बांगला,
आमि तोमार भालोबाशी’
स्वदेशी आन्दोलन कर रहे आन्दोलनकारियों का अभियान गीत बन गया था.
दूर विदेश में रह रहे सत्याग्रह की अलख जगाने वाले गांधीजी को गुरुदेव के स्वदेशी अभियान ने अत्यधिक प्रभावित किया था. जब गुरुदेव ने स्वदेशी शिक्षा-पद्धति के आधुनिक रूप में शांति निकेतन (विश्वभारती) की स्थापना की थी तब तक गांधीजी स्वदेश लौट आए थे. गांधीजी स्वदेशी-शिक्षा का जो सपना देखते थे उसको गुरुदेव ने मानो शांति निकेतन की स्थापना कर साकार कर दिया था.
1919 में जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के विरोध में जब गुरुदेव ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदत्त ‘सर’ की उपाधि का परित्याग किया तो गांधीजी उनके और भी बड़े प्रशंसक बन गए.
1920 में गांधीजी द्वारा प्रारम्भ किया गए असहयोग आन्दोलन का गुरुदेव ने स्वागत किया. सत्य, अहिंसा, स्वदेशी, नारी-उत्थान, दलितोद्धार, मद्य-निषेध और सांप्रदायिक सदभाव के साथ स्वराज्य के लक्ष्य को दोनों ही प्राप्त करना चाहते थे.
दोनों में अंतर केवल इतना था कि गुरुदेव मूलतः स्वप्नदर्शी थे और गांधीजी उन सपनों को साकार करने में प्राण-प्रण से जुटे रहने वाले एक अहिंसक योद्धा थे.
1927 में साइमन कमीशन के गठन से अंग्रेज़ सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह भारत में राजनीतिक, संवैधानिक, प्रशासनिक एवं राजनीतिक सुधारों की प्रक्रिया में भारतीयों की भागेदारी स्वीकार नहीं करेगी. साइमन कमीशन के देश-व्यापी विरोध के बाद हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन का अगला पड़ाव था - पूर्ण-स्वराज्य की मांग. इस पूर्ण-स्वराज्य की मांग को लेकर महात्मा गाँधी ने डांडी-यात्रा कर शोषक ‘नमक कानून’ तोड़कर अपना नमक सत्याग्रह प्रारम्भ किया.
अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से अपने मुट्ठीभर साथियों के साथ महात्मा गाँधी ने पद-यात्रा कर डांडी में समुद्र तट पर पहुँचने का निश्चय किया. डांडी पहुंचकर उन्होंने सरकार के नमक बनाने और उसे बेचने के एकाधिकार को तोड़कर आन्दोलन देश-व्यापी बनाने की योजना बनाई.
अंग्रेज़ सरकार ने ही नहीं अपितु अनेक राष्ट्रवादी भारतीयों ने भी महात्मा गाँधी की इस योजना को अव्यावहारिक बताया. महात्मा गाँधी ने अपनी पदयात्रा को जन-जागृति अभियान कहा था किन्तु अधिकांश इसे उनका पागलपन मान रहे थे. इतनी सशक्त अंग्रेज़ सरकार को मुट्ठी-भर आन्दोलनकारियों की पदयात्रा कैसे हिला सकती थी?
गुरुदेव टैगोर को महात्मा गाँधी के इस निर्णय की आलोचना स्वीकार्य नहीं थी. उन्हें पूर्ण विश्वास था कि महात्माजी का जन-जागृति अभियान समस्त भारतवासियों को पूर्ण-स्वराज्य प्राप्ति के अभियान से जोड़ देगा. उन्होंने गांधीजी के समर्थन में इस अमर गीत की रचना की -
जोदी तोर डाक सुने केउ ना आसे
तोबे एकला चलो रे
तोबे एकला चलो, एकला चलो,
एकला चलो, एकला चलो रे
जोदी केउ कोथा ना कोए
ओ रे … ओ ओभागा
केउ कोथा न कोए …
जोदी सोबाई थाके मुख फिराए
सोबाई कोरे भोई
तोबे पोरान खुले …
ओ तुई मुख फूटे तोर मोनेर कोथा
एकला बोलो रे
जोदी सोबाई फिरे जाए
ओ रे ओ ओभागा …
सोबाई फिरे जाई
जोदी गोहान पोथे जाबार काले केउ
फिरे ना चाय
तोबे पोथेर काँटा …
ओ तुई रोक्तो माखा चोरोनतोले
एकला डोलो रे
जोदी आलो ना धोरे, ओ रे …
ओ ओभागा
आलो ना धोरे
जोड़ी झोर-बादोले आंधार राते
दुयार देये घोरे
तोबे बज्रानोले …
आपोन बुकेर पाजोर जालिये निये
एकला जोलो रे
जोदी तोर डाक सुने केउ ना आसे
तोबे एकला चलो रे
तोबे एकला चलो, एकला चलो
एकला चलो, एकला चलो रे
(हिंदी भावार्थ -
अगर तेरी पुकार पर कोई भी नहीं आए तो फिर तू अकेला ही चला चल
यदि तेरी पुकार का कोई भी जवाब न दे तो फिर तू अकेला ही चला चल
यदि सभी तुझसे मुख मोड़ लें,
सब डरकर, तेरा साथ देने के लिए बाहर भी न निकलें,
तो फिर तू अकेला ही चला चल
तब तू बिना किसी से डरे हुए,
खुले गले से अपनी बात सब से कह,
यदि तेरा साथ देने से सब लोग इंकार कर दें,
सब लोग लौट जाएं तो हे हतभाग्य ! फिर तू अकेला ही चला चल
यदि रात अँधेरी हो, कुछ भी सूझता न हो
पथ में बिछे कांटे तेरे पैर लहूलुहान भी कर दें,
तो भी तू अपने घायल पैरों से अकेला ही चला चल.
हे हतभाग्य ! तेरे मार्ग में यदि कहीं एक दिया भी नहीं न जल रहा हो,
यदि तेज़ बारिश में तुझे शरण देने के लिए कोई भी अपने घर का द्वार तक न खोले,
तब तू अपने हृदय को वज्र बना ले और अपनी राह पर चलता चला चल
अगर तेरी पुकार पर कोई भी नहीं आए तो फिर तू अकेला ही चला चल.)
गुरुदेव के इस गीत ने न केवल महात्मा गाँधी का उत्साह बढ़ाया अपितु समस्त देशवासियों में देशभक्ति की एक ऐसी लहर उत्पन्न कर दी कि लाखों-करोड़ों भारतीय महात्मा जी के इस जन -जागृति व पूर्ण-स्वराज्य अभियान से जुड़ गए. शहर-शहर, क़स्बा-क़स्बा, गाँव-गाँव चौराहों पर, गलियों में नमक क़ानून तोड़ा जाने लगा. लाठियों और गोलियों की किसी आन्दोलनकारी ने परवाह नहीं की और देश की सभी जेलें महात्माजी के अहिंसक सैनानियों से भर गईं.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंरंगों के महापर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आलेख की प्रशंसा के लिए धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' !
हटाएंआपको और आपके परिवार को भी होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ !
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मित्र !
जवाब देंहटाएंतुमको और तुम्हारे परिवार को होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ !
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-3-21) को "कली केसरी पिचकारी"(चर्चा अंक-4021) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
'कली केसरी पिचकारी' (चर्चा अंक - 4021) में मेरे आलेख को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद कामिनी जी.
हटाएंसुंदर प्रस्तुति आपको होली की हार्दिक शुभकामनाएं परिवार सहित
जवाब देंहटाएंमेरे आलेख की प्रशंसा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद सवाल सिंह राजपुरोहित जी.
हटाएंहोली की आपको सपरिवार हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ !
आदरणीय सर,
जवाब देंहटाएंमुझे ये गीत बहुत पसंद है।
आभार बहुत सारा सर आपका गीत साझा करने के लिए।
प्रणाम
सादर।
श्वेता, यह अमर गीत भला किसे नहीं भाता होगा?
हटाएंमैंने तो इतिहास के विद्यार्थी के रूप में बस, इस गीत की रचना की पृष्ठभूमि से सबको परिचित कराने का प्रयास किया है.
बहुत सुन्दर....मुझे नहीं पता था कि यह प्रेरणादायक गीत गांधी जी के सन्दर्भ में रचा गया था...इस जानकारी से अवगत करवाने के लिए हार्दिक धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंविकास नैनवाल 'अंजान' जी, इस गीत की रचना को 91 साल से भी अधिक हो चुके हैं किन्तु आज भी इसे सुन कर हम भाव-विभोर हो जाते हैं.
हटाएंअलग-अलग मार्ग पर चलने वाले दो युग-पुरुषों के दिल-दिमाग किस तरह आपस में मिलते थे, यह गीत उसका अनूठा उदाहरण है.
इस गीत से जुड़े प्रेरणात्मक संदर्भ से परिचित कराने के लिए आपका बहुत धन्यवाद आदरणीय गोपेश मोहन जैसवाल जी,बहुत ही देशभक्ति भरा गीत है,ये ।और इसके पीछे की कहां भी देशप्रेम से ओतप्रोत है,आपको हार्दिक नमन एवम वंदन ।
जवाब देंहटाएंआलेख की प्रशंसा के लिए धन्यवाद जिज्ञासा.
हटाएंआज की युवा पीढ़ी राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रेरक प्रसंगों से लगभग अनभिज्ञ है और आज के नेता देशभक्ति के नाम पर जो दिखावा कर रहे हैं उस से गुलाम भारत के नेताओं के बारे में भी लोगबाग कुछ बुरा ही सोचते हैं.
अपने विद्यार्थियों को राष्ट्रीय आन्दोलन के ऐसे बहुत से प्रेरक प्रसंगों से मैं परिचित कराता था.
अब रिटायर होने के बाद क्लास लेने को नहीं मिलता तो फ़ेसबुक और अपने ब्लॉग पर ही अपने मित्रों की ऐसी कक्षाएं ले लेता हूँ.