इस चुनावी माहौल में आप कहाँ हैं दुष्यंत
कुमार? –
1.
हो गयी है भीड़,
नेताओं की,
छटनी चाहिए,
बन गए जो ख़ुद, ख़ुदा,
औक़ात, घटनी चाहिए.
2.
कुम्हार (नेता) ! अब माटी (जनता) की बारी –
ज़ुल्म की काली, अँधेरी, रात,
ढलनी चाहिए,
मुझको अब छाती पे तेरी,
दाल दलनी चाहिए.
3.
भैंस मौसी की उपयोगिता -
अक्ल के पीछे पड़े हैं,
लट्ठ ले कर देशभक्त.
इन के घर में गाय क्या,
बस, भैंस पलनी चाहिए.
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (29-12-2021) को चर्चा मंच "भीड़ नेताओं की छटनी चाहिए" (चर्चा अंक-4293) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी व्यंग्य-रचना को 'नेताओं की छटनी चाहिए' (चर्चा अंक - 4293) में सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद डॉक्टर रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक' !
जवाब देंहटाएंलाजवाब
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद मित्र !
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद मनीषा !
हटाएंबढ़िया कहा है आपने आदरणीय🙏
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा, बढ़िया तो दुष्यंत कुमार कहते थे. मैं तो घटिया लोगों के बारे में कहता हूँ.
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आलोक सिन्हा जी.
हटाएं