‘महाभारत’ -
‘महाभारत’ विश्व इतिहास का सबसे बड़ा महाकाव्य है.
‘महाभारत’ की भाषा संस्कृत है.
‘महाभारत’ का मुख्य सूत्र भरत वंश की कथा है इसीलिए इस ग्रंथ को ‘महाभारत’ कहा गया है. ईसा पूर्व 3000 वर्ष (हड़प्पा संस्कृति काल) से चौथी ईसवी तक भारतीय संस्कृति का जो विकास और प्रसार हुआ, उसका प्रतिबिम्ब ‘महाभारत’ में मिलता है.
इस महाकाव्य में आर्य पूर्व कालीन, वैदिक और उत्तर वैदिक सांस्कृतिक जीवन की झांकी प्रस्तुत की गई है. इसमें वेद-पूर्व काल से चली आ रही वृक्ष, वनस्पति, नदी, पर्वत तथा अन्य पार्थिव पदार्थों की पूजा करने वालों की संस्कृति , यज्ञ प्रधान वैदिक संस्कृति और निवृत्ति प्रधान श्रमण संस्कृति का विस्तार से उल्लेख किया गया है.
‘महाभारत’ को पाँचवां वेद अथवा ‘काण्व वेद’( चार वेदों से भी श्रेष्ठ) कहा गया है. इसे पुराण भी कहा गया है.
‘महाभारत’ का ग्रंथ प्रथमतः कृष्ण द्वैपायन व्यास ने लिखा था. कुछ विद्वानों के अनुसार इस ग्रंथ में 8000 श्लोक व 18 पर्व थे.
इसमें सम्पूर्ण कृष्ण चरित्र नहीं कहा गया था. व्यासजी ने इसे अपने पाँच शिष्यों सुमंतु, जैमिनी, पैल, शुक और वैशंपायन को सुनाया. इन पाँच शिष्यों ने भारत की पाँच संहिताएं प्रकाशित कीं.
आज का जो ‘महाभारत’ महाकाव्य है, वह मुख्यतः वैशंपायन की भारत संहिता पर आधारित है.
जनश्रुति है कि वैशंपायन ने महाभारत की कथा अर्जुन के प्रपौत्र राजा जनमेजय को सुनाई थी.
राजा जनमेजय ने जब महायज्ञ किया तो उसमें पहली बार जनता के समक्ष ‘महाभारत’ का पाठ किया गया था.
समय के साथ-साथ ‘महाभारत’ के पदों की संख्या बढ़ते-बढ़ते एक लाख तक पहुँच गयी.
पहली शताब्दी में दक्षिण भारत का भ्रमण करने वाले यूनानी यात्री ख्रायस्टोन भारत में एक लाख पदों के एक महाकाव्य का उल्लेख किया है.
‘महाभारत’ के परवर्ती संस्करण में ‘भविष्य पर्व’ के साथ ‘हरिवंश चरित्र’ भी जोड़ दिया गया है. ‘हरिवंश चरित्र’ में सम्पूर्ण कृष्ण चरित्र का वर्णन है.
‘महाभारत’ की रचना का उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारो पुरुषार्थों का संतुलन रखने वाली जीवन पद्धति का विकास करना था. इसमें मुख्य रूप से वैष्णवी विचारधारा का पोषण है पर ‘अनुशासन पर्व’ के ‘उपमन्यु आख्यान’ में श्री कृष्ण द्वारा भगवान शंकर की स्तुति की गई है. भगवान शंकर की स्तुति के अतिरिक्त ‘महाभारत’ के ‘भीष्म पर्व’ में युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए अर्जुन ने दुर्गा से वरदान माँगने के लिए उनकी स्तुति की है.
गणेशजी को ‘महाभारत’ को लेखनीबद्ध करने का श्रेय दिया जाता है. ‘आदि पर्व’ में उनकी महिमा का वर्णन है.
‘महाभारत’ का मुख्य विषय भरत कुल का और विशेषतः कौरव-पाण्डवों का इतिहास ही है पर इसे भारतीय संस्कृति का विश्वकोश कहना अनुचित नहीं होगा.
महाभारत की मुख्य कथा कुछ इस प्रकार है-
राजा विचित्र वीर्य की मृत्यु के उपरान्त कुरु वंश का राज्य धृतराष्ट्र को मिला. परन्तु धृतराष्ट्र अंधे थे. उनके छोटे भाई पाण्डु को राजा बनाया गया परन्तु एक शाप के कारण पाण्डु को सपरिवार राज्य छोड़ना पड़ा और धृतराष्ट्र ने सत्ता सम्भाली.
पाण्डु की मृत्यु के बाद उनके पाँच पुत्र अर्थात् पाण्डव युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों अर्थात् कौरवों के साथ शिक्षा प्राप्त करने के लिए हस्तिनापुर लाए गए.
द्रोणाचार्य से अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा प्राप्त करके पाण्डव हर प्रकार से योग्य हो गए. अब कुरुवंश की परंपरा के अनुसार युधिष्ठिर को युवराज बनाया जाना था पर यह बात धृतराष्ट्र के बड़े पुत्र दुर्योधन को स्वीकार नहीं थी. उसने षडयन्त्र करके पाण्डवों को हस्तिनापुर छोड़ने के लिए विवश किया. इसी भ्रमण काल में द्रोपदी पाण्डवों की पत्नी बनी.
पाण्डवों की मित्रता श्री कृष्ण से हुई जो आगे चलकर उनके मार्गदर्शक और सहायक हुए.
कुछ समय बाद धृतराष्ट्र ने अपना राज्य कौरवों और पाण्डवों में बाँट दिया. दुर्योधन की राजधानी हस्तिनापुर थी और युधिष्ठिर को इन्द्रप्रस्थ.
युधिष्ठिर ने अपने भाइयों के साथ मिलकर अपने राज्य को बहुत शक्तिशाली बना लिया. पाण्डवों की उन्नति से जलकर दुर्योधन ने अपने मामा शकुनि के साथ षडयन्त्र रचकर द्यूतक्रीड़ा में पाण्डवों का राज्य जीत लिया और उन्हें तेरह वर्ष का वनवास (जिसमें एक वर्ष का अज्ञातवास भी था) दिया गया. तेरह वर्ष के बाद पाण्डवों को अपना राज्य फिर से मिल जाना था पर जब तेरह वर्ष के वनवास के बाद लौटकर पाण्डवों ने अपना राज्य वापस माँगा तो दुर्योधन ने साफ़ इन्कार कर दिया.
भगवान श्री कृष्ण पाण्डवों के दूत बनकर दुर्योधन के पास गए. राज्य के स्थान पर पाण्डव पाँच गाँव लेने को भी तैयार थे पर दुर्योधन ने पाण्डवों को सूई की नोंक के बराबर ज़मीन देने से भी इन्कार कर दिया.
अब युद्ध आवश्यक हो गया. दोनों पक्षों की ओर से अनेक राजा युद्ध में शामिल हो गए. पाण्डवों को श्री कृष्ण की मित्रता का भरोसा था पर उन्होंने युद्ध में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा कर ली थी. श्रीकृष्ण युद्ध में अर्जुन के सारथी बने. कौरवों की ओर भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण और जयद्रथ जैसे महारथी थे.
अठारह दिन तक यह युद्ध चलता रहा. अन्त में पाण्डवों, अश्वत्थामा और श्रीकृष्ण को छोड़कर कोई महारथी नहीं बचा.
युधिष्ठिर सम्राट बने. बाद में उन्होंने अपना राज्य अर्जुन के पौत्र परीक्षित को सौंपकर द्रौपदी और अन्य पाण्डवों के साथ हिमालय की ओर प्रस्थान किया जहाँ से मेरु पर्वत पहुँच कर उन्होंने स्वर्ग में प्रवेश किया.
महाभारत में मुख्य कथा के अतिरिक्त सैकड़ों कथाएं हैं.
इनमें नल-दमयन्ती की कथा, भीष्म की पितृभक्ति, उनका आजीवन ब्रह्मचारी रहने का व्रत, हस्तिनापुर राज्य के प्रति उनकी निष्ठा, शिखण्डी का उनकी मृत्यु का कारण बनना, कर्ण के जन्म की कथा, उसकी दानशीलता, रणक्षेत्र में उसकी मृत्यु, द्रोपदी का चीर हरण और श्रीकृष्ण द्वारा उसकी सहायता, चक्रव्यूह की रचना और उसके भेदन में अभिमन्यु की वीरता व मृत्यु, अर्जुन द्वारा जयद्रथ वध, भीम द्वारा दुर्योधन का वध, अश्वत्थामा का प्रतिशोध आदि ऐसी अनेक कथाएं और उपकथाएं हैं जो ‘महाभारत’ की रोचकता को प्रारम्भ से अन्त तक बनाए रखती हैं.
‘महाभारत’ में संजय अपनी दिव्य दृष्टि का उपयोग कर धृतराष्ट्र को कुरुक्षेत्र में हो रहे युद्ध का आँखों देखा हाल सुनाते हैं.
‘महाभारत’ में की गई इस कल्पना और आज रेडियो में प्रसारित किसी आँखों-देखे हाल में समानता देख कर आश्चर्य होता है.
‘महाभारत’ रूपी महासागर का अनमोल रत्न ‘भगवद्गीता’ है. ‘गीता’ में ‘उपनिषद’ के दर्शन, योग-दर्शन और सांख्य-दर्शन का समन्वय है. ‘गीता’ में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह उपदेश दिया है कि वह सम्बन्धों के मोह में पड़कर अपने कर्तव्य से डिगे नहीं और कुरुक्षेत्र के रणक्षेत्र में कौरव सेना पर अपनी पूरी शक्ति से प्रहार करे.
‘गीता’ में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को निष्काम कर्म का उपदेश दिया है.
”कर्मण्येवाधिकारस्ते; मा फलेषु कदाचन।“ (अर्थात् कर्म कर परन्तु फल की इच्छा मत कर)
‘गीता’ में भगवान यह भी कहते हैं कि वह सज्जनों की रक्षा, दुष्टों के विनाश और धर्म की रक्षा करने के लिए हर युग में जन्म लेते हैं-
”परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्म संस्थापनार्थाय, सम्भवामि युगे-युगे।।“
आत्मा के अमरत्व और शरीर की नश्वरता पर भी ‘गीता’ में विस्तार से चर्चा की गई है. ‘भगवद्गीता’ भारतीय दर्शन के चरमोत्कर्ष को प्रदर्शित करती है.
‘महाभारत’ में धर्म की विस्तृत व्याख्या की गई है.
एक शासक का क्या धर्म है? प्रजापालन के लिए उसके क्या कर्तव्य हैं?
युद्ध के समय और विजय के उपरान्त उसकी क्या नीति होनी चाहिए?
विवाह में पति-पत्नी के एक दूसरे के प्रति और परिवार के प्रति क्या कर्तव्य होने चाहिए?
एक विद्यार्थी का धर्म क्या है?
एक आचार्य का क्या धर्म है?
भक्त का धर्म क्या है?
भगवान का धर्म क्या है?
वर्ण व्यवस्था का क्या औचित्य है?
युद्ध में धर्म का पालन किस प्रकार किया जाता है?
इन सब प्रश्नों पर ‘महाभारत’ में विचार किया गया है.
भारतीय धर्म और संस्कृति के विषय में ‘महाभारत’ का महत्व तो निर्विवाद है ही साथ ही साथ यह प्राचीन भारतीय राजनीतिक, सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक जीवन पर भी प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध कराता है.
एक ऐतिहासिक स्रोत के रूप में भी ‘महाभारत’ का अत्यन्त महत्व है. विश्व इतिहास में अन्य कोई ग्रंथ ‘महाभारत’ की विशालता, उसकी साहित्यिक उत्कृष्टता, उसकी दार्शनिक परिपक्वता और उसकी ऐतिहासिक उपयोगिता का मुकाबला नहीं कर सकता.
(शब्दावली
पर्व- अध्याय
कौरव-पाण्डव- धृतराष्ट्र के सौ पुत्र कौरव तथा पाण्डु के पाँच पुत्र पाण्डव कहलाते हैं.
निष्काम कर्म- बिना फल की इच्छा रक्खे हुए कर्म करते रहना.
दिव्य दृष्टि- वेदव्यास ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी.
दिव्य दृष्टि से संजय दूर हो रही घटनाओं को देख सकते थे.)
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०९-१२ -२०२१) को
'सादर श्रद्धांजलि!'(चर्चा अंक-४२७३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
'सादर श्रद्धांजलि !' (चर्चा अंक-4273) में मेरे आलेख को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद अनीता.
हटाएंसुन्दर पोस्ट
जवाब देंहटाएंआलेख की प्रशंसा के लिए धन्यवाद मित्र !
हटाएं"महाभारत" की गहनता से समीक्षा की आपने सर,कम शब्दों में बड़ी बात... सादर अभिवादन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कामिनी जी !
हटाएंआप जैसे कद्रदानों की हौसलाअफ़ज़ाई की वजह से ही मेरी कलम चलती रहती है.
दुर्लभ जानकारी । बहुत बढ़िया पोस्ट ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मीना जी. 'महाभारत' के विषय में जानकारी तो सुलभता से उपलब्द्ध है. मेरा प्रयास यह है कि इसे संक्षेप में प्रस्तुत किया जा सके.
हटाएंसम्पूर्ण महाभारत का सार एवं विश्लेषण !!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब
🙏🙏🙏🙏
प्रशंसा के लिए धन्यवाद सुधा जी.
हटाएंयह आलेख मैंने मूलतः किशोरों को दृष्टि में रख कर लिखा था किन्तु इसकी उपयोगिता हम बड़ों के लिए भी हो सकती है.
बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी भरा आलेख आदरणीय सर,सच कहा आपने बच्चों के लिए तो ये बहुत ही जरूरी है कि उनके सम्मुख हर शास्त्र की सही और अर्थपूर्ण जानकारी हो, आपका ये आलेख कई मायने में प्रशंसनीय है, बहुत बहुत आभार आपका 🙏💐
जवाब देंहटाएंआलेख की प्रशंसा के लिए धन्यवाद जिज्ञासा.
जवाब देंहटाएंयह आलेख मैंने 2003 में लिखा था पर इसे अपने ब्लॉग पर और फ़ेसबुक पर पहली बार पोस्ट किया है. बच्चों को ही क्या, हम बड़ों को भी ऐसी बहुत सी बातें नहीं पता होतीं जो कि हमारे धर्म और हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग होती हैं.
अपने साथ अपने मित्रों को भी ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी देने का मेरा तुच्छ प्रयास तुम्हें अच्छा लगा, यह मेरे लिए आनंद का विषय है.