सोमवार, 12 मई 2025

कल मातृदिवस था

 2006, माँ की मृत्यु से एक साल पहले की यादें -

मैं – माँ ! मैं यूनिवर्सिटी जा रहा हूँ दरवाज़ा बंद कर लीजिए.
माँ – बब्बा ! नाश्ता कर के जइयो !
मैं – नाश्ता तो मैं कबका कर चुका हूँ.
माँ - तूने अपना पर्स रख लिया?
मैं – हाँ, रख लिया.
माँ – चाबी रख ली? और धूप का चश्मा?
मैं – हाँ, ये भी रख लिए.
माँ - और अपना मोबाइल?
मैं – वो भी रख लिया.
माँ – अपनी वाटर बॉटल ज़रूर साथ ले जाना.
मैं – माँ, मैं पचपन साल का हो गया हूँ. आप कब तक मुझे बच्चा ही समझती रहेंगी?
माँ – पचपन का हो गया तो क्या हुआ? बचपना तो तेरा फिर भी नहीं गया है. देखा, अपनी कैप ले जाना तो तू फिर भूल गया.

सोमवार, 5 मई 2025

जंग से कुछ ना हासिल होगा

 

भारत-पाक तनाव को केवल युद्ध के माध्यम से दूर करने की हिमायत करने वालों से मेरे कुछ सवालात -

 जंग हुई फिर जीत गए,

कश्मीर का मसला हल होगा?

फिर न कहीं बमबारी होगी,

कहीं न फिर मातम होगा?

हिन्दू-मुस्लिम, गहरी खाई,

क्या इस से पट जाएगी?

और करोड़ों भूखों को,

हर दिन रोटी मिल जाएगी?

भटक रहे जो रोज़गार को,

रोज़ी उन्हें दिलाएगी?

माँ की कोख में सहमी कन्या,

जनम सदा ले पाएगी?

सूनी गोदें, उजड़ी मांगे,

क्या फिर से भर पाएंगी?

ताबूतों में रक्खी लाशें,

नहीं किसी घर आएंगी?

जंग जीत ली तो हाकिम के,

जल्वे कम हो जाएंगे?

किसे खरीदा, कहाँ बिके ख़ुद,

चर्चे कम हो जाएंगे?

चोरी, लूट, मिलावट, का क्या,

मुंह काला हो जाएगा?

जनता के सुख-दुःख में शामिल,

जन-प्रतिनिधि हो पाएगा?

मेहनतकश इंसान हमेशा,

मेहनत का फल पाएगा?

लोकतंत्र का रूप घिनौना,

क्या सुन्दर हो जाएगा?

राम-राज का सपना क्या,

भारत में सच हो जाएगा?

यह सब अगर नहीं हो पाया,

जीत-हार बेमानी है.

राजा सुखी, प्रजा पिसती है,

हरदम यही कहानी है.

वहशत, नफ़रत, खूंरेज़ी की

हर इक सोच, मिटानी है.

नहीं चाहिए जंग हमें अब,

शांति-ध्वजा फहरानी है.