सोमवार, 27 अप्रैल 2015

मृगतृष्णा

बदरा छावत देखि कै, घड़ा फोड़ खुस होय,
अच्छे दिन की आस में, बचा-खुचा भी खोय.
वादों पर बिस्वास करि, निस्चित दुर्गति होय,
पैर कुल्हाड़ी मारि कै, मिल्खा भया न कोय.


3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर । ब्लाग सूची लम्बी करते चलिये । लोग जुड़ेंगे तभी पढ़ेंगे भी । आप जब दूसरों को दिखेंगे तभी तो वो आपको भी खोजेंगे :)

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  2. बधाई आज आप चर्चा में हैं :)
    http://charchamanch.blogspot.in/2015/04/1959

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  3. बहुत खूब ... अच्छा व्यंग और तेज़ धार ...

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