रविवार, 1 नवंबर 2015

फैंटम साहब

फैंटम साहब –
फैंटम साहब आज से साठ-सत्तर साल पुराने ज़माने के हिप्पी कहे जा सकते हैं. भव्य व्यक्तित्व के धनी, एंग्लो-इंडियन, फैंटम साहब, उत्तर प्रदेश प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे. अपनी बेबाकी, फक्कड़पन, मस्ती और स्पष्टवादिता के लिए वो सारे उत्तर प्रदेश में विख्यात नहीं बल्कि कुख्यात थे. उनके उच्च पदाधिकारी अगर उन पर अपना रौब झाड़ने की कोशिश भी करते थे तो फिर फैंटमी वाक्-प्रहारों से उन्हें कोई नहीं बचा सकता था. अपने अक्खड़पन के कारण कभी भी किसी महत्वपूर्ण पद पर उनकी नियुक्ति नहीं हुई. फैंटम साहब ने किसी से दबना तो सीखा ही नहीं था पर अपने साथियों की वो बहुत इज्ज़त करते थे और अपने मातहत कर्मचारियों को वो बड़े भाई या पिता जैसा प्यार देते थे. फैंटम साहब की ईमानदारी के किस्से बड़े मशहूर थे लेकिन उससे भी ज़्यादा मशहूर थी उनकी विनोदप्रियता. फैंटम साहब शादीशुदा थे लेकिन उनकी पत्नी उनके साथ नहीं रहती थीं. उनके साथ सिर्फ उनका एक निजी नौकर रहता था.
फैंटम साहब की लम्बी काली दाढ़ी उन्हें कवि निराला वाली छवि देती थी. धोती-कुरता उनका  प्रिय लिबास था. हिन्दुस्तानी संगीत से उन्हें बहुत लगाव था और तबला वादक के रूप में उनकी बड़ी प्रतिष्ठा थी. फैंटम साहब को पाश्चात्य खाना पसंद था पर उसके न मिलने पर वो रोजाना कामचलाऊ व्यवस्था कर लेते थे. उनका कामचलाऊ नाश्ता-खाना बड़ा मज़ेदार होता था. उबले चने, उबले अंडे, फल और दूध ही उनका मुख्य आहार हुआ करते थे.
श्री गोबिंद बल्लभ पन्त उत्तर प्रदेश के पहले मुख्य मंत्री थे. उन दिनों फैंटम साहब को मुख्य मंत्री के कार्यालय के एक ऐसे विभाग से सम्बद्ध कर दिया गया जहाँ पर मक्खियाँ मारने के सिवा उन्हें कोई काम ही नहीं था. खाली बैठे फैंटम साहब ने मुख्य मंत्रीजी की गतिविधियों पर आधारित कार्टून्स बनाकर सरकारी स्टेशनरी का सदुपयोग शुरू कर दिया. धीरे-धीरे उनके कार्टून्स की ख्याति पंतजी तक भी पहुँच गयी. पंतजी बहुत शालीन व्यक्ति थे. उन्होंने फैंटम साहब को बुलवाकर उनकी खैर-खबर ली –
‘मिस्टर फैंटम, आपको हमारे ऑफिस में कोई परेशानी तो नहीं है?’
फैंटम साहब ने तपाक से जवाब दिया –‘नहीं सर, कोई परेशानी नहीं है. दिन में एकाद फाइल पर सिग्नेचर करने के बाद जो टाइम बच जाता है, उसमें मैं कार्टून्स बना लेता हूँ.’
पंतजी ने पूछा – ‘क्या मैं आपके बनाये कार्टून्स देख सकता हूँ?’
फैंटम साहब ने उत्साह से पंतजी को उन्हीं पर बने कार्टून्स दिखाए. पंतजी ने झूठ-मूठ की तारीफ की तो फैंटम साहब ने उनसे एक फरमाइश कर दी –
सर, अगर मुझे कुछ बड़े कागज़ प्रोवाइड किये जाएँ तो मैं इससे भी अच्छे कार्टून बना सकता हूँ. छोटे साइज़ के पेपर पर आपके साइज़ जैसी पर्सनैलिटी के कार्टून्स अच्छे नहीं बन पाते हैं.’
पंतजी ने अपने माथे का पसीना पोछते हुए फैंटम साहब से कहा – आप जिस जिले में चाहेंगे वहां आपकी पोस्टिंग कर दी जाएगी. बस ये कार्टून बनाने वाली अपनी कला को अभी विश्राम दे दीजिये.’
1960 में फैंटम साहब की नियुक्ति इटावा के सिटी मजिस्ट्रेट के रूप में हुई. उन दिनों मेरे पिताजी वहां जुडीशियल मजिस्ट्रेट थे. फैंटम साहब ने इटावा में घुसते ही वहां के गुंडों और पुलिस की नाक में दम कर दिया. लड़कियां छेड़ने वाले शोहदों की तो उन्होंने ऐसी आवभगत करवाई कि फिर सपने में भी उन्हें लड़की दिखाई का देना तक बंद हो गया. लफंगों के लिए पुलिस वालों को उन्होंने निर्देश दिए –
अगर कोई लड़का पहली बार लड़की छेड़ता हुआ पकड़ा जाये तो उसका नाम नोट कर, उसे दो थप्पड़ मारकर और वार्निंग देकर छोड़ दो. अगर दूसरी बार वो ऐसी हरक़त करे तो मौका-ए-वारदात पर ले जाकर उसकी सबके सामने पिटाई करो, उसको गंजा कर दो और उसके माँ-बाप को उसकी करतूत की खबर कर दो. और फिर अगर आगे भी वो ऐसी ही हरक़त करे तो उस पर कोई संगीन जुर्म लगाकर उसे जेल में डाल दो.’
इटावा में एक बार कमिश्नर साहब का दौरा लगा. कमिश्नर साहब आई. सी. एस. अफसर थे जो कि अपने अधीनस्थ अधिकारियों को कीड़े-मकौड़े से ज्यादा नहीं समझते थे. किसी की भी खिल्ली उड़ाना वो अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते थे. फैंटम साहब को उनकी हरक़तें बहुत ओछी लग रही थीं पर बेचारे चुप थे. कमिश्नर साहब को फैंटम साहब की लम्बी दाढ़ी पसंद नहीं आई. उन्होंने अफसरों की भरी महफ़िल में फैंटम साहब से कहा –
‘मिस्टर फैंटम, इतनी लम्बी दाढ़ी लगाकर आप बर्नार्ड शॉ क्यूँ बनना चाहते हैं? आप अपनी दाढ़ी कटा लीजिये, बाई गॉड, आप बड़े हैण्डसम लगेंगे’
फैंटम साहब ने जवाब दिया – ‘आज ही अपनी दाढ़ी कटवा लूँगा सर, पर आपको मेरी दाढ़ी के आधे बाल अपनी गंजी चाँद पर और आधे अपने चेहरे पर लगाने होंगे. इससे आपके सर का गंजापन भी छिप जायेगा और आपके चेहरे की बदसूरती भी ढक जाएगी.’
फैंटम साहब के त्वरित न्याय के किस्से से मैं दास्ताने-फैंटम को समाप्त करता हूँ. पुलिस वालों को अक्सर अपनी उपलब्धियों के झूठे-मूठे दावे पेश करने पड़ते हैं. एक तीन मन (लगभग 110 किलो) के दीवानजी (हेड कांस्टेबल) बहुत दिनों से कोई चोर-बदमाश पकड़कर नहीं ला रहे थे. आख़िरकार एक गरीब उनके हत्थे चढ़ ही गया. उसके हाथों में हथकड़ियां डाल कर, उसे रस्सी से बांधकर उन्होंने उसे फैंटम साहब के सामने पेश किया. फैंटम साहब ने पूछा –
‘दीवानजी, क्या कुसूर है इस गरीब का? इस पर कौन सी दफ़ा लगाई है आपने?’
दीवानजी ने कहा – ‘हुज़ूर दफ़ा 109 (अपराध करने की संदेहास्पद गतिविधि को देखकर अपराध करने से रोकने के लिए किसी को पकड़ना) में इसे पकड़ा है. मुझे देखकर यह भागने लगा तो मैंने इसे पहले ललकारा और फिर भाग कर पकड़ लिया. ये कोई शातिर चोर है. इसके पास से ये आलानकब (दीवाल में सेंध मारने के लिए लोहे का नुकीला औजार) भी बरामद हुआ है.’
फैंटम साहब ने दीवानजी की मोटी काया को गौर से देखते हुए पूछा –
‘आपने इसे ललकारा, ये भागा, फिर आपने इसे दौड़कर पकड़ लिया?’
दीवानजी ने फ़रमाया – ‘जी माई-बाप, दौड़कर पकड़ लिया.’
फैंटम साहब तुरंत अपनी कुर्सी से उठे और दीवानजी, मुल्ज़िम तथा अपने पूरे स्टाफ को लेकर दीवानजी के बताए हुए मौका-ए-वारदात पर पहुंचे. वहां जाकर उन्होंने मुल्ज़िम की हथकड़ियाँ खुलवाकर उससे कहा–
‘देख भाई, दीवानजी कहते हैं कि इन्होंने तुझे दौड़कर पकड़ा है. मैं तुझे एक मौका देता हूँ. तू दीवानजी से तीन कदम दूर रहकर भागना शुरू कर. दीवानजी तुझे दौड़कर पकड़ेंगे. अगर इन्होंने तुझे दौड़कर पकड़ लिया तो तुझे चोर की सजा मिलेगी और अगर तू इनकी पकड़  में नहीं आया तो फिर तू आज़ाद है.’
बेचारे दीवानजी उस शातिर चोर को पकड़ने के लिए चार कदम दौड़े फिर पूरी तरह पस्त होकर ज़मीन पर पसर गए और चोर बिजली की स्पीड से उड़न छू हो गया. इटावा के इतिहास में यह किस्सा अमर हो गया. इस वाक़ये के कुछ दिनों बाद फैंटम साहब का तो तबादला हो गया पर उनके प्रशंसकों ने उन दीवानजी को ही फैंटम साहब कहकर पुकारना शुरू कर दिया.

आज के चाटुकारिता के इस युग में फैंटम साहब जैसे दबंग, इमानदार और मस्त-मौला अफ़सरों की बहुत ज़रुरत है पर उनको खोजने के लिए हमको अब शायद किसी और लोक में जाना होगा.  

2 टिप्‍पणियां:

  1. फैंटम साहब क्या करेंगे आज के जमाने में ? आज तो सौ में निन्यानबे कमिश्नर साहब हैं :)

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  2. फैंटम साहब के तो अब किस्से ही बाकी हैं आज अगर वो होंगे तो या तो ससपेंड हो चुके होंगे या अपने डिसमिस होने के बाद कहीं चाट का ठेला लगा रहे होंगे. अलबत्ता सर्वत्र सुलभ कमिश्नर साहिबान चार से लात खायेंगे और चार सौ के लात मारेंगे.

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