लन्दन, पेरिस, रोम न हुए, नैनीताल,
मसूरी, शिमला हो गए –
12 दिन यूरोप में बिताकर ऐसा लगा ही नहीं कि हम परदेस में आ गए हैं.
इंग्लॅण्ड, फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रिया और इटली में, सब जगह भारतीय ही
भारतीय. एयर इंडिया की फ्लाइट से जब हम दिल्ली से लन्दन जा रहे थे तो हमारे सभी
सहयात्री भारतीय थे. हीथ्रो एअरपोर्ट से बाहर निकलने के लिए भी सैकड़ों भारतीय
हमारे साथ कतार में लगे थे. हमको हीथ्रो एअरपोर्ट के निकट ‘रेनेसां’ होटल में
टिकाया गया. वहां रिसेप्शन पर एक भारतीय ही बैठा था और हमारे रूम की देखभाल का काम
एक नेपाली महिला कर रही थी. विदेशी सैलानियों में तमाम भारतीय भरे पड़े थे. पूरे
यूरोप टूर में हम खाना खाने हर बार भारतीय भोजनालयों में ही गए. वहां तो हिंदी में
ही सबसे बातचीत होती थी. लन्दन में हम एक भारतीय बाज़ार में गए जहाँ पर तवा बजा-बजा
कर आलू की टिक्कियाँ और क़बाब बेचे जा रहे थे. पेरिस का नज़ारा भी कोई ख़ास अलग नहीं
था. एफिल टावर और लूव्र म्यूजियम के पास सोवेनियर्स और पानी की बोतल बेचने वाले
भारतीय ही थे. हरयाणा के एक छोरे से हमने एक यूरो में आधा लीटर पानी की एक बोतल
खरीदी थी. एफिल टावर पर ऊपर पहुंचे तो एक फ्रांसीसी सज्जन हमें देखकर ‘ईचक दाना,
बीचक दाना, दाने ऊपर दाना’ गाने लगे. मज़े की बात थी कि सोवेनियर्स बेचने वाले
अश्वेत नौजवान भी हमसे बात करते समय ‘नमस्ते इंडिया’ कह रहे थे और सामान बेचते समय
सौदेबाज़ी के दौरान - ’10 यूरो में दो ले लो, अच्छा चलो तीन ले लो’ कह रहे थे. एक
बात और बता दूँ, भारतीयों से बात करते समय इंग्लैंड और फ्रांस के स्ट्रीट हाकर्स
मोदीजी का ज़िक्र ज़रूर करते हैं.
स्विट्ज़रलैंड को तो यश चोपड़ाजी ने भारतीयों के लिए नैनीताल, शिमला बना दिया
है. वहां तो हर जगह भारतीय ही भरे पड़े थे. आल्प्स पर्वत के शिखर पर भारतीय मसाला
चाय का आनंद लेने की हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे पर अपनी जेब को हल्का करके हमने
वह लुत्फ़ भी उठा ही लिया. यश चोपड़ाजी ने भारतीयों में स्विट्ज़रलैंड टूरिज्म इतना
लोकप्रिय बना दिया है कि कृतग्य स्विट्ज़रलैंडवासियों ने उनकी वहां एक मूर्ति खड़ी
कर दी है. ऑस्ट्रिया में हमको ज्यादा घूमने को नहीं मिला किन्तु इटली में वेनिस,
पीसा और रोम, सभी में भारतीयों का मजमा लगा हुआ था.
यूरोप में कई बार मुझे ऐसा लगता था कि मैं भारत में ही घूम रहा हूँ पर जब कोई
अपरिचित भारतीय बड़े प्यार से हमसे पूछता था कि ‘आपका टूर पैकेज कितने दिन का है और
कितने रूपये का है?’ तो हमको पता चल जाता था कि हम भारत से बाहर हैं.
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