शुक्रवार, 16 अगस्त 2019

अभिनय सम्राट

हमारे भारत में ‘अभिनय सम्राट’ कहते ही लाखों-करोड़ों के दिलो-दिमाग में एक ही नाम कौंध जाता है, और वो है दिलीप कुमार का. दिलीप कुमार ने फ़िल्म ‘देवदास’ में पारो से बिछड़ने के गम में शराब क्या पी ली, लोगबाग जानबूझ कर अपनी-अपनी प्रेमिकाओं से बिछड़कर उनके गम में शराब पीने लगे. तमाम टैक्सी ड्राइवर्स ने फ़िल्म ‘नया दौर’ देख कर टैक्सी चलाने का धंधा छोड़ कर तांगा चलाना शुरू कर दिया. लेकिन सबसे ज़्यादा नुक्सान तो फ़िल्म ‘गंगा-जमुना’ के उन प्रशंसकों का हुआ जो कि अपना अच्छा-ख़ासा, लगा-लगाया, काम-धंधा छोड़ कर डाकू हो गए.
हमारे बुजुर्गों में कई लोग मोतीलाल के अभिनय के दीवाने हुआ करते थे तो कई लोग बलराज साहनी को नेचुरल एक्टिंग का बादशाह मानते थे. हमारी पीढ़ी के लोग संजीव कुमार के फैन हुआ करते थे. कुछ लोग तो ऐसा मानते हैं कि समानांतर सिनेमा के प्रारंभ होने के बाद नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी और अमोल पालेकर जैसे अभिनेताओं ने ही स्वाभाविक अभिनय के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं.
अपने छात्र-जीवन में हम भी एक फ़िल्मी-कीड़ा हुआ करते थे. उस टीवी विहीन दौर में सप्ताह में दो फ़िल्में देखने का तो हमारा औसत हुआ ही करता था. हाईस्कूल-इंटर तक हम भी दिलीप कुमार के दीवाने हुआ करते थे और उनकी जैसी एक्टिंग करने की और उनके जैसे डायलौग बोलने की कोशिश भी किया करते थे लेकिन उनका जैसा अभिनय कर पाना कभी हमारे बस में नहीं हो पाया और संवाद के मामले में फ़िल्म ‘मुगले आज़म’ में उनकी जैसी न तो हमारी उर्दू गाढ़ी हो पाई और न ही फ़िल्म ‘गंगा-जमुना’ में उनकी जैसी फ़र्राटेदार पुरबिया बोली हम बोल पाए.
फ़िल्म ‘मुगले आज़म’ का शहज़ादा सलीम तो हमारे दिलो-दिमाग में इस क़दर छा गया था कि हम पिताजी को मुगले आज़म समझ कर और ख़ुद को शहज़ादा सलीम समझ कर उन्हें बदतमीज़ी से जवाब भी देने लगे थे. एक बार उन्होंने हमको पढ़ाई के वक़्त आवारागर्दी करने पर टोका तो हमने सलीम की हेकड़ी वाले अंदाज़ में जवाब दिया –
‘ये हमारा ज़ाती मामला है.’
लेकिन पिताजी के एक करारे झापड़ ने हमको अर्श से फर्श पर ला दिया. फिर न तो हम शहज़ादे सलीम के नक्शे-क़दम पर चले और न ही फिर हमने दिलीप कुमार को अभिनय सम्राट माना.
दिलीप कुमार हमारे बस में नहीं आए तो हमने अपना अभिनय सम्राट किसी और को बना लिया. दिलीप कुमार से भी कहीं ज़्यादा ख़ूबसूरत, उनसे कहीं अधिक जवान और उन से दस गुनी फ़िल्में करने वाले, हमारे अभिनय सम्राट का अगर आप नाम सुनेंगे तो चौंक जाएंगे और हो सकता है कि आप अपना सर भी पीटने लगें. हमारे अभिनय सम्राट थे – लाखों-करोड़ों के चहेते, अपने जम्पिंग जैक, जीतू भाई, यानी कि जीतेंद्र !
हीरो के रूप में जीतेंद्र की पहली फ़िल्म थी – ‘गीत गाया पत्थरों ने’. व्ही शांताराम की फ़िल्मों के पात्र मराठी के अंदाज़ में हिंदी के संवाद बोला करते थे. उस फ़िल्म का सुन्दर और कमसिन हीरो हमको बहुत ख़ूबसूरत लगा. उसकी तोतली बोली पर तो हम फ़िदा हो गए. इस फ़िल्म का नायक संगतराश था और उसके चेहरे के भाव तो पत्थर की मूरत से भी अधिक भाव-हीन थे.
हमारे नायक की पहली फ़िल्म हिट रही लेकिन स्टार बनने के लिए उसे अभी बहुत इंतज़ार करना था. जेम्स बांड की तर्ज़ पर बनी फ़िल्म ‘फ़र्ज़’ से वह स्टार बन गया. माना कि हमारे नायक में शेओन कॉनरी जैसी चुस्ती-फ़ुर्ती नहीं थी लेकिन ‘मस्त बहारों का मैं आशिक़’ गीत में उसने जो उछल-कूद की थी और ‘कुक्कू ---’ की जो पुरज़ोर चीख निकाली थी, वैसी उछल-कूद करना और वैसी चीख निकालना, उस असली जेम्स बांड के बस में हो ही नहीं सकता था.
फ़िल्म ‘फ़र्ज़’ के सुपर हिट होने के बाद हमारे अभिनय सम्राट ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. एक से एक हिट फ़िल्में उसके खाते में आती रहीं. फ़िल्म ‘जिगरी दोस्त’ में हमारे अभिनय सम्राट का डबल रोल था. किसान की भूमिका में तो उसने फ़िल्म ‘दो बीघा ज़मीन’ के बलराज साहनी को भी मात कर दिया था. हमारा किसान नायक जब –
‘मेरे देस में पवन चले पुरवाई-----’
गीत गाता हुआ एक टीले पर से अपने हाथ ऊपर किए फ़ौजी मुद्रा में नीचे दौड़ता है तो हमारा दिल भी बाग़-बाग़ होकर उसके साथ दौड़ने लगता है.
फ़िल्म निर्माताओं-निर्देशकों ने हमारे अभिनय सम्राट के साथ एक से एक अनोखी सिचुएशंस पर गाने फ़िल्माए थे. इस मामले में फ़िल्म ‘हमजोली’ को कोई भी भूल नहीं सकता. इस फ़िल्म का खेल-प्रेमी नायक एक गाना कबड्डी खेलते हुए गाता है, एक गाना नायिका के साथ बैडमिंटन खेलते हुए गाता है, एक गाना गुंडों से बॉक्सिंग करते हुए गाता है और फिर खेलों से उकताकर एक गाना नायिका के साथ बैलगाड़ी के नीचे बैठकर गाता है. क्या कोई दिलीप कुमार, कोई राज कपूर या कोई देवानंद, ऐसी अनूठी सिचुएशंस में गाना गाने की सोच भी सकता था?
मुझे फ़िल्म ‘जैसे को तैसा’ में अपने अभिनय सम्राट पर फिल्माया गया एक गाना और उसकी सिचुएशन भुलाए नहीं भूलती. फ़िल्म ‘राम और श्याम’ के तर्ज़ पर बनी इस फ़िल्म में सीधे-सादे नायक को खलनायक रोज़ाना कोड़ों से मारता है. कहानी मोड़ लेती है और हमारे भौंदू किस्म के नायक की जगह, उसका हमशक्ल हमारा स्मार्ट नायक ले लेता है. अब स्मार्ट नायक खलनायक के ज़ुल्मों का जवाब देते हुए उसे कोड़े लगाते हुए गाता है –
‘जैसे को तैसा मिला,
कैसा मज़ा आया.
मारूं कि छोडूं, तेरी टांग तोडूँ,
बता तेरी मर्जी है क्या !’
कितना दयालु है हमारा नायक ! खलनायक को कोड़े मारते हुए भी वह उसे छोड़ने के विषय में सोचता है.
एक फ़िल्म आई थी - ‘मेरे हुज़ूर’ जिसमें कि दो नायक थे – बिगड़े हुए नवाब बने थे राजकुमार और शायर बने थे हमारे अभिनय सम्राट. हिंदी फ़िल्म के इतिहास में पहली बार एक ऐसा तोतला शायर रुपहले परदे पर आया था जिसके मुंह से उर्दू अल्फ़ाज़ ऐसे निकलते थे जैसे कोई कुँए में गिरने के बाद कराह-कराह कर और अटक-अटक कर बोलता है.
सन सत्तर के दशक में हमारा अभिनय सम्राट गुल्ज़ारिश हो गया. उसने गुल्ज़ार के साथ तीन फ़िल्में कीं – ‘परिचय’, ‘ख़ुशबू’ और ‘किनारा’. इन फ़िल्मों में हमारे नायक के गुल्ज़ार का चश्मा लग गया और उनकी जैसी मूंछें भी आ गईं. हर संवाद को संभाल-संभाल कर बोलने वाला यह शख्स हमको कभी अपना वाला अभिनय सम्राट लगा ही नहीं. लड़की देखो और उसे छेड़ो नहीं, बिना बात उछलो-कूदो नहीं, बेसिर-पैर की कहानी में ऊट-पटांग हरक़तें न करो, गानों के बोल उल्टे-सीधे न हों तो फिर हमारे अभिनय सम्राट का दम घुटेगा और उसके साथ हम जैसे उसके चाहने वालों का भी. भला हुआ कि तीन फ़िल्मों के बाद ही अभिनय सम्राट ने फ़िल्म ‘किनारा’ के बाद गुल्ज़ार से किनारा कर लिया.
सन अस्सी और सन नव्वे के दशक में हमारे अभिनय सम्राट के चेहरे पर बुज़िर्गियत आने लगी. नुकीली विग और मूंछों वाले गेट-अप से उसे छुपाने की कोशिश की गयी. लेकिन हमारे नायक की उछल-कूद भरे नृत्य में कभी कोई बदलाव नहीं आया. दक्षिण में बनी और दक्षिण मूल की नायिकाओं के साथ बनी फ़िल्मों में हमारे नायक का शामिल होना ज़रूरी समझा गया. हमारे नायक की वजह से घड़े और मटके बनाने वालों की किस्मत खुल गयी. उन्हें हज़ारों घड़े-मटके बनाने के आर्डर मिलने लगे क्यों कि घड़े-मटके के पहाड़ों के बिना हमारे नायक के पाँव थिरकते ही नहीं थे.
हमारे अभिनय सम्राट ने दिलीप कुमार के साथ एक फ़िल्म की थी – ‘धर्माधिकारी’. इस बेकार और बोझिल फ़िल्म में दिलीप कुमार ने भी बहुत बोर किया था. हमने निष्कर्ष निकाला –
‘हमारे अभिनय सम्राट के अभिनय में ट्रेजेडी किंग के अभिनय से ज़्यादा दम है क्यों कि ट्रेजेडी किंग के अभिनय का हमारे अभिनय सम्राट के अभिनय पर तो कोई असर नहीं हुआ लेकिन ट्रेजेडी किंग के अभिनय पर अभिनय सम्राट के महा-बोर अभिनय का असर ज़रूर पड़ गया.’
आजकल हमारे अभिनय सम्राट की नई फ़िल्में नहीं आ रही हैं लेकिन उनके परिवार ने उनकी अभिनय परंपरा को और उन्हीं के अनुकूल कहानी-परंपरा को जीवित रक्खा है.
सदियाँ गुज़र जाएंगी पर रुपहले परदे पर ऐसा अभिनय सम्राट फिर कोई और नहीं दिखाई देगा. हम कितने खुशनसीब थे कि हमने तीन-चार दशक तक इस नायक के दिव्य-अभिनय को देखा है. हमको मालूम है कि हमारी इस ख़ुशकिस्मती पर आने वाली पीढ़ियाँ हम पर रश्क़ करेंगी.

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10 टिप्‍पणियां:

  1. काहे शराब को बदनाम कर रहे हैं पिये जो उसे करिये ना :) बहुत सुन्दर तीसरे गियर पर फिर आ गये आप चलिये।

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    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद सुशील बाबू. हम शराब को कहाँ बदनाम कर रहे हैं? हम तो पारो को और देवदास को बदनाम कर रहे हैं.

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 16/08/2019 की बुलेटिन, "प्रथम पुण्यतिथि पर परम आदरणीय स्व॰ अटल बिहारी वाजपाई जी को नमन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. अटल जी की पुण्यतिथि पर उनकी स्मृति को समर्पित 'ब्लॉग बुलेटिन' में मेरे आलेख को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद शिवम् मिश्रा जी.

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  3. अपने अभिनय सम्राट की तारीफ़ में आपके कशीदे काढ़ने का दिलचस्प अंदाज़ अच्छा लगा ! बहुत खूब !

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    1. उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद साधना जी. बुद्धि को ताक पर रख कर हम फ़िल्मी प्रशंसक किसी न किसी नौसिखिए को अभिनय सम्राट मान लेते हैं और कला की हत्या करने में निरंतर अपना योगदान देते रहते हैं.

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-08-2019) को "देशप्रेम का दीप जलेगा, एक समान विधान से" (चर्चा अंक- 3431) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  5. 'चर्चा अंक-3431' में मेरे व्यंग्य-आलेख को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद अनीता जी.

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  6. उत्तर
    1. धन्यवाद संजय भास्कर जी. बहुत दिनों बाद आपने याद किया.

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