शबनम के आँसू फूल पर, ये तो वही क़िस्सा हुआ,
आँखें मिरी भीगी हुई, चेहरा तिरा उतरा हुआ !
बशीर बद्र
चश्मे-बद्दूर -
आँखें मिरी भीगी हुई, चेहरा तिरा उतरा हुआ !
बशीर बद्र
चश्मे-बद्दूर -
विज्ञान-युग
में टोटका, ये तो वही किस्सा हुआ,
राफ़ेल
के पहियों के आगे, नीबू हो रक्खा हुआ
!
हमारा
संकल्प -
नीबू-मिरची
के टोटके, कर
के,
विघ्न
सब, दूर
हम, भगाएंगे,
बुद्धि
को, सबसे
ऊंची ताक पे रख,
देश
फिर, विश्व-गुरु, बनाएंगे.
काले
जादू औ तंत्र-मंत्र का हम,
एक
गुरुकुल, नया बसाएंगे,
पढ़ के निकलेंगे, उस से जो ओझा,
देश भी अब वही, चलाएंगे.
हाहाहा... कतई स्वादे ई बिठा दिया गुरु जी आपने। 😂
जवाब देंहटाएंएक बेवकूफ़ी माफ़ भी की जा सकती है पर जब बार-बार उसका जाहिलाना स्पष्टीकरण दिया जाए और उसे नए-नए कुतर्कों से बुद्धि-संगत ठहराया जाए फिर तो हमारे लिए चुप रहना मुश्किल हो जाता है.
हटाएंविज्ञान-युग में टोटका, ये तो वही किस्सा हुआ,
जवाब देंहटाएंराफ़ेल के पहियों के आगे, नीबू हो रक्खा हुआ !
रखा भी तो क्या रखा, नींबू !!!
राफेल है या आम आदमी का स्कूटर ?
रखना ही था तो कम से कम खरबूजा रखते, इज्जत की वाट लगा दी !!! (ये मुंबइया हिंदी है)
मीना जी, रक्षा-मंत्री तक हमारी गुफ़्तगू पहुँच चुकी है. अब हमारे हर फ़ाइटर-जेट में नीबू और मिर्च टाँगे जाने की व्यवस्था होगी.
जवाब देंहटाएंखरबूज़ा सिर्फ़ फलों की टोकरी में रक्खा जाएगा.
वो तो चलायेंगे ही। हम आप यूँ ही बैठे बैठे भुनबुनायेंगे भी :)
जवाब देंहटाएंवो चलाएंगे, देश पलटेगा,
जवाब देंहटाएंइस समस्या से कौन निपटेगा?
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (14-10-2019) को "बुरी नज़र वाले" (चर्चा अंक- 3488) पर भी होगी।
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रवीन्द्र सिंह यादव
'बुरी नज़र' शीर्षक, चर्चा अंक-3488 में मेरी व्यंग्य रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी. मैं इस अंक की सभी रचनाओं का रसास्वादन लूँगा.
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद ओंकार जी.
हटाएंसर हम भी अपनी पड़ोसियों की बुरी नज़र से अपनी कार को बचाने के लिए नींबू मिर्च लगा ही रहे थे कि पर क्या बतायें सर...कमब्ख़त एक पड़ोसी ने बीमारी के बहाना बनाकर नींबू हथिया लिया और दूसरे ने सलाद में डालने के लिए मिर्च...बाद में पूरा मार्केट छान मारे कि दूसरा नींबू मिर्च लगा दें पर पता चला सारा माल आउट ऑफ स्टॉक...☺
जवाब देंहटाएंश्वेता, हमारे रक्षा-मंत्री नीबू का भारी स्टॉक लेकर फ़्रांस गए थे, वहां काफ़ी नीबू बचे हुए हैं. तुम वहां जाकर उन नीबुओं को अपनी कार में लगाने के लिए ला सकती हो और मिर्ची की जगह नेताओं की कड़वी ज़ुबानें लगा सकती हो.
हटाएंनींबू मिर्च दोनों के दाम बहुत बढ़ गये हैं सर, हम उनका फोटो ही लगा कर काम चला लेते हैं, कई कई बार काम आ जाता है , यहां तो इसी फार्मूले पर काम करते हैं कि आम के आम गुठलियों के दाम टोटका भी हुवा घर में घाटा भी नहीं और ना नींबू मिर्च की दुर्दशा सलाद भी थोड़ी मतलब की बन जाती है ।
जवाब देंहटाएंजबरदस्त ।
टोटके के काम में, मुश्किल अचानक आ गईं,
हटाएंनीबू-मिर्ची थे भी जितने,श्रीमती खा गईं.
"निंबू मिर्ची सज गई रफाल की छत पर
जवाब देंहटाएंहोगा बेड़ा गर्क दुश्मन के हर वार पर..."
☺️😊☺️..हहह नींबू मिर्ची का टोटका हमारे घर आंगन तक ही सीमित रहे है तो शायद अच्छा लगे... परंतु विश्व पटल पर यह करना काफी बचकाना लगता है बहुत ही तीखा प्रभाव डालती हुई आपकी रचना
धन्यवाद अनिता लागुरी जी.
हटाएंबुरी नज़र की काट के लिए -
नीबू-मिरची दे भगवान,
सन्मति का अब रहा न काम.
अधिकांश तो वही हैं, जो देश चला रहें हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सही
कविता जी, ये देश चला नहीं रहे हैं बल्कि देश घुमा रहे हैं या फिर उसको धंसा रहे हैं.
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