बुधवार, 24 फ़रवरी 2021

अजंता



(आज से लगभग 15 साल पहले मैंने यह आलेख इतिहास के विद्यार्थियों के लाभार्थ लिखा था. अवकाश-प्राप्ति के बाद विद्यार्थियों से तो मेरा संपर्क पूरी तरह टूट गया है इसलिए फ़ेसबुक पर और अपने ब्लॉग पर ही मैं यदाकदा क्लास ले लिया करता हूँ. अपने मित्रों से मेरा अनुरोध है कि वो इस जानकारी को बच्चों के साथ ज़रूर साझा करें.)

अजंता - 

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मानव सभ्यता के प्रारम्भिक काल में मनुष्य हज़ारों साल तक प्राकृतिक गुफ़ाओं में रहता रहा है. अपने निवास को सजाने-सँवारने की उसकी स्वाभाविक अभिरुचि ने इन गुफ़ाओं में भाँति-भाँति के चित्र बनाने के लिए प्रेरित किया. आगे चलकर ऐसी गुफ़ाओं में उसने मूर्तियाँ भी बनाईं. जब मनुष्य ने छैनी और हथौड़ी का प्रयोग करके पत्थर काटना और तराशना सीख लिया तो उसने पहाड़ों और चट्टानों को काटकर कृत्रिम गुफ़ाएं बनाईं. इन गुफ़ाओं को भी उसने चित्रों और मूर्तियों से सजाया और सँवारा. गुफ़ाओं के अन्दर उसने बड़े-बड़े भवन और पूजा-स्थल भी बनाए. संसार के अनेक देशों में ऐसी गुफ़ाएं हैं. 

भारत में ऐसी प्राकृतिक और मानव निर्मित गुफ़ाओं की संख्या हज़ारों में है जहाँ कि मनुष्य ने अपनी कला से उन्हें सजाया और सँवारा है.

भारत में मानव-निर्मित गुफ़ाओं का निर्माण ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में प्रारम्भ हुआ था.
मौर्य काल में अशोक और उसके उत्तराधिकारियों के संरक्षण में बिहार की बराबर और नागार्जुनी पहाडि़यों में कृत्रिम गुफ़ाएं खोदने का कार्य प्रारम्भ हुआ. ये गुफ़ाएं बौद्ध भिक्षुओं के रहने के लिए बनाई गई थीं.
जैन और बौद्ध धर्म के प्रसार के साथ गुफ़ाएं बनाने की प्रथा का भी प्रसार होता चला गया.
ईसा पूर्व की दूसरी और पहली शताब्दी में अर्थात् शुंग-काण्व काल में उड़ीसा की खण्डगिरि और उदयगिरि पहाडि़यों में जैन साधुओं के निवास के लिए पैंतीस गुफ़ाएं खोदी गईं.
इसी काल में और इसके बाद की कुछ शताब्दियों में महाराष्ट्र और अन्य क्षेत्रों में भी बौद्ध भिक्षुओं के रहने और पूजा करने के लिए बड़े पैमाने पर गुफ़ाएं खोदी गईं.
इन मानव-निर्मित गुफ़ाओं के निर्माण को हम शैल-स्थापत्य कला (चट्टानों को काट-काट कर गुफ़ा, मन्दिर आदि बनाने की कला) के अन्तर्गत लेते हैं.
महाराष्ट्र में भाजा, अजंता, पितलखोरा, नासिक, कान्हेरी, एलीफ़ैण्टा, एलोरा, कोलाबा तथा अन्य क्षेत्रों में ऐसी सैकड़ों गुफ़ाएं खोदी गईं. 
इन मानव-निर्मित गुफ़ाओं में कलात्मक दृष्टि से अजंता की गुफ़ाएं अद्वितीय हैं. 

महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित अजंता की गुफ़ाएं औरंगाबाद नगर से 106 किलोमीटर तथा जलगाँव रेल्वे स्टेशन से 61 किलोमीटर की दूरी पर हैं. ये गुफ़ाएं दक्खिनी पठार को ख़ानदेश के मैदान से पृथक करने वाली पर्वतमाला को काटकर बनाई गईं हैं. 

अजंता समुद्रतल से 460 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और इसकी गुफ़ाएं 76 मीटर ऊँची, सीधी और खड़ी चट्टान को काटकर बनाई गई हैं. ये गुफ़ाएं अर्धवृत्ताकार कगार में खोदी गई हैं. चट्टान के सामने बाघोरा नामक नदी बहती है जिसके नाम पर इस क्षेत्र को प्राचीन काल में व्याघ्रपुर कहा जाता था और इन गुफ़ाओं की खोज से पहले इन गुफ़ाओं को बाघों का घर कहा जाता था. 

अजंता का एक प्राचीन नाम अजितजंय भी था. अजितजंय नाम से ही ‘अजंता’ शब्द निकला है.
अजंता की गुफ़ाएं ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से लेकर सातवीं शताब्दी के बीच में बनाई गई हैं.
हर्षवर्धन के काल में अर्थात सातवीं शताब्दी में भारत-प्रवास के लिए आए हुए चीनी यात्री ह्नेनसांग ने इन गुफ़ाओं का उल्लेख किया है. बौद्ध धर्म की अवनति के बाद इन गुफ़ाओं का सार्वजनिक महत्व कम होता चला गया और धीरे-धीरे इनके बारे में लोगों की जानकारी कम होती चली गई. 

उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ तक यह क्षेत्र पूरी तरह से जंगली क्षेत्र बन चुका था. यहाँ शेर आदि जंगली पशु खुले-आम घूमते थे और स्थानीय गरडि़ए कभी-कभी विश्राम करने के लिए यहाँ की गुफ़ाओं में ठहर जाते थे.
28 अप्रैल, सन् 1819 को 28 वीं घुड़सवार सेना के अधिकारी जॉन स्मिथ ने इन गुफ़ाओं की फिर से खोज की. 

सन् 1829 में ‘जर्नल ऑफ़ रॉयल एशियाटिक सोसायटी’ में जे. ई. एलेक्ज़ेण्डर के एक लेख ने इन गुफ़ाओं की कलात्मक श्रेष्ठता को दुनिया के सामने रक्खा.
जेम्स फ़र्ग्यूसन ने सन् 1843 में इन गुफ़ाओं के ऊपर एक दीर्घ निबन्ध लिखा.
आज अजंता की गुफ़ाएं विश्व भर में अपनी कला के लिए प्रसिद्ध हैं.
विश्व की सांस्कृतिक धरोहरों में अजंता का नाम बहुत आदर के साथ लिया जाता है.


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अजंता की सभी तीसों गुफ़ाएं स्थापत्य, शिल्प तथा चित्रकला की दृष्टि से बौद्ध धर्म से सम्बन्धित हैं.
इन गुफ़ाओं में चैत्य (पूजा-स्थल) तथा विहार (निवास) दोनों हैं.
इन गुफ़ाओं में शैल-स्थापत्य कला और मूर्तिकला का उत्कर्ष देखने को मिलता है परन्तु अजंता की मुख्य ख्याति उसके भित्ति चित्रों (दीवालों पर बने चित्र) के कारण है. 

अजंता के भित्ति चित्रों में विषयों की इतनी अधिक विविधता है कि लगता है चित्रकारों की दृष्टि से जीवन का कोई भी पहलू छूटा ही नहीं है.
इन चित्रों में सबसे अधिक चित्र जातक कथाओं (भगवान बुद्ध के ज्ञान प्राप्त करने से पूर्व के जीवन की तथा उनके पूर्व जीवन की घटनाओं पर आधारित 547 कथाओं का संग्रह) पर आधारित हैं.
अजंता में भगवान बुद्ध के जीवन चरित्र और उनके पूर्व जन्मों से सम्बद्ध घटनाओं को तो चित्रित किया ही गया है साथ ही साथ इनमें शासक वर्ग और जन सामान्य के जीवन से जुड़ी हुई घटनाओं का चित्रण भी किया गया है.
किसानों, तपस्वियों, भिक्षुकों, पशु-पक्षियों आदि का चित्रण अजंता की कला को धर्म निर्पेक्ष स्वरूप प्रदान करता है.
इन चित्रों में चित्रकारों ने पात्रों की शारीरिक रचना, उनकी वेशभूषा पर विशेष ध्यान दिया है पर इन चित्रों की सबसे बड़ी विशेषता पात्रों के मनोभावों का सजीव चित्रण है.

इन गुफ़ाओं में से 6 का सम्बन्ध बौद्ध धर्म के हीनयान सम्प्रदाय से है और शेष का बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय से (हीनयान तथा महायान सम्प्रदाय बौद्ध धर्म के दो प्रमुख सम्प्रदाय हैं जिनमें आचार-विचार की दृष्टि से थोड़ा अन्तर है. इनमें हीनयान सम्प्रदाय पुराना है पर लोकप्रियता महायान सम्प्रदाय को अधिक मिली है).
अजंता में कुल तीस गुफ़ाएं मिली हैं जिनमें कि 29 गुफ़ाओं में आसानी से आया-जाया जा सकता है.
हीनयान सम्प्रदाय से सम्बन्धित विहारों में पत्थरों को काटकर शैया बनाई गई हैं जबकि महायान सम्प्रदाय से सम्बन्धित विहारों में ऐसा नहीं है.
गुफ़ा-1 कलात्मक दृष्टि से अत्यन्त उत्कृष्ट है.
इस गुफ़ा का सभा-मण्डप साठ फ़ुट लम्बा और साठ फ़ुट चौड़ा है.
इस मण्डप में बीस स्तम्भ हैं और चार कुड्य स्तम्भ हैं.
इस गुफ़ा की छत पर पशु, फल और पुष्प का चित्रण किया गया है.
इस गुफ़ा में बोधिसत्व (महात्मा बुद्ध के बोधज्ञान से पूर्व का तथा उनके पूर्वजन्मों का जीवन) पद्मपाणि का चित्र है जो कि अजंता का सबसे प्रसिद्ध चित्र है.
इसी गुफ़ा के भित्ति चित्रों में शिवि जातक कथा का भी चित्रण है.
राजा शिवि ने बाज से कबूतर के प्राण बचाने के लिए अपने शरीर का माँस दिया था. इस कथा को चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है.
इसी गुफ़ा में गौतम बुद्ध के सौतेले भाई नंद की दीक्षा को भी चित्रित किया गया है. इसके अतिरिक्त अन्य जातक कथाओं को भी चित्रित किया गया है.
गुफ़ा-2 के गर्भ गृह में धर्म-चक्र प्रवर्तक बुद्ध का चित्र अत्यन्त मनोहर है. इसी गुफ़ा में एक सुन्दरी का चित्र भी बड़ा आकर्षक है.
गुफ़ा-4 का विहार अपूर्ण है किन्तु यह अजंता का सबसे बड़ा विहार है. इसका सभामण्डप 87 फ़ुट लम्बा और 87 फ़ुट चौड़ा है. इस गुफ़ा में एक संस्कृत अभिलेख मिला है.
गुफ़ा-9 तथा गुफ़ा-10 में शुंग और सातवाहन काल के चित्र हैं. गुफ़ा-9 में सात फनों वाले नागराजा का एक चित्र है.
गुफ़ा-10 में स्त्रियों से घिरे एक राजा का चित्रण है. इसी गुफ़ा में हाथी पर सवार एक राजा का बड़ा सुन्दर चित्र है.
सोलहवीं और सत्रहवीं गुफ़ाएं गुप्तकाल की हैं.
गुफ़ा-16 का मरणासन्न राजकुमारी का चित्र चित्रकला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरणों में गिना जाता है.
कला मर्मज्ञ ग्रिफि़थ ने इसे कलात्मक इतिहास की सर्वश्रेष्ठ कृति माना है.
इसी गुफ़ा में सुतसोम की कथा का चित्रण है.
गुफ़ा-17 के बरामदे में संसार-चक्र का चित्रण है. इसमें दो हाथ संसार रूपी विशाल चक्र को थामे हुए दिखाए गए हैं. इस चित्र में पशु-पक्षी और मनुष्यों का चित्रण तो है ही साथ में मानव-जीवन के हर पहलू का भी चित्रण है. बाज़ार का दृश्य, उद्यान गोष्ठी, किसानों की बस्ती, राजसी जीवन के दृश्य, प्रेमी युगल, ध्यानस्थ ऋषि का चित्रण आदि इस चित्र की विषय-सामग्री हैं.
इसी गुफ़ा में यशोधरा द्वारा अपने पुत्र राहुल को भगवान बुद्ध को सौंपने का बड़ा करुण दृश्य प्रस्तुत किया गया है.
एक चित्र भगवान बुद्ध और उनके शिष्य आनन्द का भी है.
इस गुफ़ा में जातक कथाओं पर आधारित चित्रों का बाहुल्य है.
विश्वंभर जातक, षडदन्त जातक, महाकपि जातक, हरित जातक, हंस जातक, सुतसोम जातक, शरभ जातक, मातृ पोषक जातक, मत्स्य जातक, श्याम जातक और महिष जातक का चित्रण इसी गुफ़ा में किया गया है.
इसी गुफ़ा में एक प्रसाधिका का चित्र है जिसमें दो सेविकाओं और एक कुबड़े सेवक के बीच में त्रिभंग मुद्रा में झीने परिधान में लिपटी, आभूषणों से युक्त सुन्दरी युवती अपने बाएं हाथ में एक गोलाकार दर्पण लेकर उसमें अपना मुख निहार रही है.
इस चित्र को अजंता की सर्वश्रेष्ठ कलाकृतियों में गिना जाता है.
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अजंता के चित्रकारों ने चित्राकंन करने के लिए पहले दीवार को छेनी से काट-काट कर समतल किया है फिर मिट्टी, वनस्पति के रेशे, धान के छिलके, घास, रेत, पत्थरों के चूरे, गोंद, सरेस और चूने के लेप से दीवाल पर पलस्तर किया है. इसके बाद ही चित्रांकन सम्भव हो पाया है.
इन चित्रों में चित्रकार ने प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया है,सफ़ेद रंग के लिए चूना और जिप्सम, काले रंग के लिए काजल, लाल के लिए गेरू, पीले रंग के लिए पीली मिट्टी, हरे रंग के ग्लेकोनाइट का प्रयोग किया गया है.
अजंता के चित्रकारों ने पुरस्कार के लालच में या नाम कमाने के लिए इन चित्रों की रचना नहीं की है. उन्होंने तो अपने अन्दर के कलाकार को कल्पना की ऊँची उड़ान देने के लिए और भगवान बुद्ध के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिए इनकी रचना की है.
अजंता की गुफ़ाओं में मूर्तिकला की छटा भी दिखाई पड़ती है.
भगवान बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित अनेक मूर्तियां यहाँ मिली हैं.
ध्यानस्थ बुद्ध की मूर्तियां,चैत्यों के गर्भ गृहों (गर्भ-गृह - मन्दिर में मुख्य देवी-देवताओं को प्रतिष्ठित किए जाने वाला स्थान) में स्थापित की गई हैं.
बोधिसत्व की मूर्तियों का यहाँ बाहुल्य है.
इनमें बोधिसत्व अवलोकितेश्वर की मूर्तियां सबसे अधिक हैं.
नाग, यक्ष, देवी-देवता, गंधर्व, किन्नर आदि की मूर्तियां भी प्रचुर मात्रा में मिलती हैं.
अजंता में दीवाल को उकेर कर भी शिल्पकार ने अपनी उत्कृष्ट कला का प्रदर्शन किया है.
आसनस्थ बुद्ध, सिद्धार्थ के जीवन के प्रसंग, एक शीर्ष और चार काया वाला हिरण, बुद्ध का महापरिनिर्वाण (भगवान बुद्ध की मृत्यु), जातक कथाएं, बुद्ध, राहुल और यशोधरा आदि इनकी विषयवस्तु हैं.
अजंता में अनेक अभिलेख भी मिलते हैं जो प्रायः शैल-गृहों के निर्माण और दान-कर्ताओं की सूचना देते हैं. कुछ अभिलेख चित्रों के विषयों के बारे में हैं. इन में कुछ चित्रित अभिलेख हैं और कुछ दीवालों पर खोदे गए हैं.
गुफ़ा-2 के सभी अभिलेख चित्रित हैं, इनकी भाषा संस्कृत और लिपि ब्राह्मी है, केवल एक अभिलेख कन्नड़ भाषा में है.
गुफ़ा-4 में बुद्ध की प्रतिमा पर विहार के दान-कर्ता का नाम उत्कीर्ण है.
गु़फ़ा-6, 7, 10, 11, 12, 16, 17, 20, 21, 22, 26 और 27 में भी चित्रित और कहीं-कहीं खुदे हुए अभिलेख मिलते हैं.
इन अभिलेखों से तत्कालीन इतिहास की जानकारी मिलती है.
अजंता की गुफ़ाएं भारतीय कला के चरमोत्कर्ष को प्रदर्शित करती हैं. आज विश्व के सभी कला-समीक्षक अजंता की कला की प्रशंसा करते हैं. पाश्चात्य देशों के निवासी भारत को असभ्य और बर्बर कहते थे किन्तु अजंता की कला ने उनकी आँखें खोल दीं. सारी दुनिया में उन्हें अजंता की इन गुफ़ाओं के गुमनाम चित्रकारों के जोड़ के चित्रकार नहीं मिले.
अजंता की कला ने हम भारतीयों को अपनी संस्कृति और कला पर गर्व करना और सर उठाकर जीना सिखाया है.
हमको तन-मन-धन से अपनी इस सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा करनी चाहिए.


6 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद मित्र !
      भविष्य में ऐसे कुछ और आलेख पोस्ट करूंगा.

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  2. उत्तर
    1. आलेख के उदार आकलन के लिए धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' !

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  3. बहुत बढ़िया पोस्ट, उपयोगी आलेख साथ ही महत्वपूर्ण भी , बहुत बहुत धन्यबाद आपका इसे सांझा करने के लिए, नमन

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    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद ज्योति जी !
      अजंता की कला हमारे लिए आज भी गर्व की बात है.
      आज हम ऐसी कोई कलाकृति बनाए जाने की कल्पना भी नहीं कर सकते.

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