रविवार, 7 मार्च 2021

मुस्तैद पुलिस

 1971 की बात है. मेरे बड़े भाई साहब श्री कमल कान्त जैसवाल बरेली में एस. डी. एम. बहेड़ी की हैसियत से पोस्टेड थे. अत्यंत सुरक्षित माने जाने वाले और प्रतिष्ठित क्षेत्र ए. डी. एम. कंपाउंड में उनका बंगला था.

हमारी भाभी घर में नया मेहमान लाने वाली थीं.
भाभी को जब अस्पताल ले जाने का समय आया तो घर में भाई साहब, भाभी के अलावा सिर्फ़ मेरे छोटे भाई साहब थे और घरेलू नौकर राम आसरे था.
राम आसरे पर घर की निगरानी छोड़ कर परिवार के सदस्य अस्पताल चले गए.
उसी रात हमारे परिवार में एक सुन्दर सा बालक शामिल हो गया.
भाभी को और छोटे भाई साहब को अस्पताल में छोड़ कर भाई साहब कुछ ज़रूरी सामान लाने के लिए जब अगली सुबह घर पहुंचे तो घर के दरवाज़े चौपट खुले हुए थे और स्टील की अल्मारी का लॉकर तोड़ कर उसका सारा कीमती सामान साफ़ कर दिया गया था.
भाई साहब ने बैंक-लॉकर भी नहीं लिया था इसलिए भाभी के सभी गहने भी घर की अल्मारी के लॉकर में ही थे और चोरों ने उन पर भी हाथ साफ़ कर दिया था.
हैरत की बात यह थी कि भाई राम आसरे खर्राटे भरते हुए तब भी सो रहे थे.
पूरे बरेली में हाहाकार मच गया.
कमिश्नर, जिलाधीश, एस. पी. और न जाने किस-किस वी. आई. पी. के बंगलों के आसपास के महा-सुरक्षित बंगले में एक आई. ए. एस. ऑफ़िसर के घर में चोरी और वह भी तब जब कि रखवाली के लिए नौकर मौजूद था.
पुलिस की बड़ी थू-थू हुई.
एड़ी-चोटी का जोर लगाने के बावजूद पुलिस चोरों को पकड़ नहीं पाई. फिर एक चमत्कार हुआ.
चोरी की घटना के कुछ दिनों बाद एक लड़के ने पुलिस-स्टेशन पर जाकर ख़ुद कुबूल किया कि ए. डी. एम. कंपाउंड में हुई चोरी में उसका और उसके तीन साथियों का हाथ था.
उस लड़के को अपने साथियों से यह शिकायत थी कि उन्होंने उसे चोरी के माल में बराबर का हिस्सा नहीं दिया था.
पुलिस ने आनन-फ़ानन में उस चोर के बाक़ी तीनों साथियों को धर-दबोचा लेकिन एक कैमरे के अलावा चोरी का कोई भी सामान उन से बरामद नहीं हुआ.
पुलिस वालों की दुबारा थू-थू हुई.
जब बरेली जेल में भाई साहब की और चोरों की भेंट कराई गयी तो चार पुलिसिये उन चोरों को उल्टा लटका कर लाठियों से पीट रहे थे.
भाई साहब ने जेलर से पूछा –
‘इन चोरों की इस बेरहम पिटाई से क्या मेरा चोरी हुआ माल वापस आ जाएगा?
आप फ़ौरन इस दरिन्दगी को रोकिए नहीं तो मैं आलाकमान से आपकी शिक़ायत कर दूंगा.’
चारों चोर दयालु साहब के मुरीद हो गए.
भाई साहब को केस के सिलसिले में जब भी जेल जाना पड़ा तो वो चोर दौड़ कर –
‘हमारे साहब आ गए ! हमारे साहब आ गए !’
कह कर उनके चरण पकड़ लेते थे.
भाई साहब को अपने घर में हुई चोरी का उतना दुःख नहीं था जितना कि इन चोरों से – ‘हमारे साहब’ कहलाने का.
1974 में हमारे भाई साहब को छोटे भाई साहब की शादी में मेरठ जाना था.
उन दिनों भाई साहब वाराणसी में रीजनल फ़ूड कंट्रोलर थे.
वाराणसी के एस. एस. पी. साहब को पता चला कि जैसवाल साहब भाई की शादी में मेरठ जा रहे हैं तो उन्होंने उनके बंगले के दो कमरे अपनी बेटी की होने वाली शादी में मेहमान टिकाने के लिए मांग लिए.
शादी के समारोह में शामिल होने के बाद भाई साहब जब वाराणसी लौटे तो पता चला कि उनके घर में चोरी हो गयी है.
वाराणसी का एक बड़ा पुलिसिया महकमा भाई साहब के बंगले पर मौजूद था लेकिन उन से दो कमरे मांगने वाले एस. एस. पी. साहब गायब थे.
पुलिस की लाख कोशिशों के बाद न तो चोर मिले और न ही चोरी का कोई सामान बरामद हुआ.
एक हफ़्ते बाद माननीय एस. एस. पी. महोदय भाई साहब के सामने पेश हुए.
भाई साहब ने उन से पूछा –
‘आपको अपने बंगले के दो कमरे देकर मैंने आपकी निगरानी में उसे छोड़ा था और आप चोरी होने के एक हफ़्ते बाद तशरीफ़ ला रहे हैं.
क्या यही पुलिस की मुस्तैदी है?’
एस. एस. पी. साहब ने अफ़सोस जताते हुए कहा –
‘जैसवाल साहब, किस मुंह से मैं आपको अपना मुंह दिखाता?
बेटी की शादी की भाग-दौड़ में मुझ से तो आपके उन दो कमरों के तालों की चाबियाँ भी खो गयी हैं.’
अब आख़िरी क़िस्सा 1998 का जो कि मेरे साथ हुआ.
श्रीमती जी के गॉल ब्लैडर के ऑपरेशन के सिलसिले में हमारा परिवार अल्मोड़ा से दिल्ली पहुंचा था.
दिल्ली में हमको खबर मिली कि हमारे घर में चोरी हो गयी है.
श्रीमती जी को दिल्ली में ही छोड़ कर मैं दोनों बेटियों को लेकर अल्मोड़ा पहुंचा.
चोरों ने ज़बर्दस्त तरीक़े से घर खंगाला था.
दिल्ली जाने की जल्दी में बैंक लॉकर के बजाय कुछ जेवरात, कुछ नक़दी और चांदी के सिक्के घर में ही छूट गए थे.
जेवर, नक़दी और चांदी के सिक्के ही क्या, चोरों ने तो श्रीमती जी की लिपस्टिक और मेरा आफ्टर शेव लोशन तक नहीं छोड़ा था.
मेरे लाख मना करने पर भी बड़े भाई साहब ने अल्मोड़ा के जिलाधीश को फ़ोन कर दिया कि इस चोरी के मामले में छानबीन कराने में वो मेरी मदद करें.
केंद्र सरकार के एक जॉइंट सेक्रेटरी के अनुरोध पर जिलाधीश महोदय और एस. पी. महोदय इतने सक्रिय हुए कि अगले दिन ही कोतवाल साहब मेरे दुगालखोला के गरीबखाने पर तशरीफ़ ले आए.
चोर को पकड़ने के लिए और उस से सामान बरामद करने के लिए कोतवाल साहब तो काल्पनिक जासूस शरलॉक होम्स की सेवाएँ भी लेने को तत्पर थे लेकिन हुआ कुछ भी नहीं.
न तो चोर पकड़ा गया और न ही मेरा कोई सामान मिला.
हाँ, चोरी हुए सामान के साथ मेरा एक और नुक्सान यह हुआ कि मुझे तीन-चार बार मुस्तैद पुलिस वालों की चाय बिस्किट्स और नमकीन से सेवा भी करनी पड़ी.
एक कहावत है –
‘हाकिम की अगाड़ी और घोड़े की पिछाड़ी, दोनों खतरनाक हैं.’
मुस्तैद पुलिस के साथ पारिवारिक अनुभव के बाद मैं कहता हूँ –
मुस्तैद पुलिस की अगाड़ी, पिछाड़ी ही नहीं, बल्कि उसके अगल-बगल खड़े होने में भी जान-माल का ख़तरा है.’
Abhilasha Chauhan

15 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. संस्मरण की प्रशंसा के लिए धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' !

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  2. क्या क्या ना करवायें जायसवाल जी? :) हा हा ।

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    1. मित्र, मेरी नुकसान-गाथा पढ़ कर आंसू बहाने की जगह - 'हा हा !'?
      बहुत नाइन्साफ़ी है !

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 08 -03 -2021 ) को 'आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है' (चर्चा अंक- 3999) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. 'आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है' (चर्चा अंक 3999) में मेरे संस्मरण को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी.

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  4. 😃😃😃जब कथित संभ्रात लोग इतने पीड़ित है पुलिस से तो आमजनों की व्यथा कौन सुने?? रोचक प्रसंग जो आपकी लेखनी का स्पर्श पाकर अविस्मरणीय हो गये। सादर आभार और शुभकामनाएं आदरणीय गोपेश जी🙏🙏

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    1. मेरी कलम के उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद रेणु जी !
      हमारी मुस्तैद पुलिस समदर्शी है. बिना पत्र-पुष्प अर्पण के या ख़ुद पर डंडे पड़ने की आशंका के, वह प्रधानमंत्री का भी कोई काम नहीं कर सकती.
      वक़्त बीत जाने पर ऐसे हादसे कब ख़ुद को और दूसरों को आनंदित करने लगते हैं, पता ही नहीं चलता.

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    1. संस्मरण का आनंद लेने के लिए धन्यवाद ओंकार जी.

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  6. लाजवाब संस्मरण ल‍िखा...हूबहू..वाह

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    1. मेरे संस्मरण की ऐसी तारीफ़ के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अलकनंदा जी.

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  7. आग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें
    आभार

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    1. मेरे संस्मरण की प्रशंसा के लिए धन्यवाद ज्योति जी.
      अपने ब्लॉग के डिटेल्स दीजिए. मैं आपकी रचनाओं का अवश्य आनंद लूँगा.

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