अगर दुष्यंत कुमार नहीं समझाएं तो हर कोई यही समझेगा कि आम आदमी उनके सजदे
में झुका है.
उसने रैली में फ़क़त, मज़हब-धरम की बात की,
ये न पूछा किस के घर चूल्हा जला, अरमां नहीं !
दीन-ईमां बिक रहे हैं, अब चुनावी हाट में,
सच, वफ़ा, इंसानियत का, पर कोई सामां नहीं !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 09 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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'पांच लिंकों का आनंद' के रविवार, 9-1-22 के अंक में मेरी व्यंग्य-रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंमित्र, 'बहुत ख़ूब' के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !
हटाएं'वो अमृता जिसे हम अंडरएस्टीमेट करते रहे' (चर्चा अंक - 4304) में मेरी व्यंग्य रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद कामिनी जी.
जवाब देंहटाएंतारीफ़ के लिए शुक्रिया मनीषा !
जवाब देंहटाएंहम-तुम इन चिकने घड़ों पर चाहे जितने भी छींटे मारें, इन पर कोई भी असर नहीं होने वाला.
बहुत सार्थक रचना! हार्दिक साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंहौसलाअफ़ज़ाई का शुक्रिया ब्रजेन्द्रनाथ जी.
हटाएंधारदार लेखनी, हमेशा की तरह रोष के सार्थक स्वर।
जवाब देंहटाएंअसाधारण।
प्रशंसा के लिए धन्यवाद कुसुम जी !
हटाएंवैसे किसी की धारदार लेखनी की चोट तो इन धूर्तों के सिर्फ़ गुदगुदी कर सकती है, इस से ज़्यादा और कुछ नहीं !
बिलकुल सारगर्भित प्रश्न करती आपकी कलम का अभिनंदन ।
जवाब देंहटाएंकाश की कलम की आवाज नेताओं तक पहुंचे ।
तारीफ़ के लिए शुक्रिया जिज्ञासा !
जवाब देंहटाएंहमारी कलम की यह आवाज़ अगर नेताओं तक पहुँच गयी तो फिर हम काल-कोठरी तक पहुँच जाएँगे.