बुधवार, 14 सितंबर 2022

हिंदी-दिवस पर हिंदी प्रेमियों से एक अनुरोध

 मित्रों, आज हिंदी दिवस है. नेताओं के और आचार्यों के भाषण तैयार हैं

और विद्यार्थी भी वाद-विवाद, भाषण प्रतियोगिता, निबंध प्रतियोगिता तथा काव्य-पाठ आदि के लिए तैयार हैं.

पर आप लोगों से मेरा विनम्र निवेदन है कि आप कहीं भी –

1.    अल्लामा इक़बाल के क़ौमी तराने की पंक्ति –

'हिंदी हैं हम, वतन है, हिन्दोस्तां हमारा'

का प्रयोग हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए नहीं करें, क्योंकि इस पंक्ति में 'हिंदी' से तात्पर्य हिंदी भाषा से नहीं बल्कि हिन्द के अर्थात् भारत के निवासियों से है.

2. हिंदी को हिंदुस्तान के माथे की बिंदी बताने वाला जुमला सुनते-सुनते हमारे कान पक चुके हैं और इसे पढ़ते-पढ़ते हमारी आँखें थक चुकी हैं. अगर हो सके तो इसको दोहराएं नहीं.

3. भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा कही गयी पंक्तियां -

'निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल,

बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटे न भव को सूल'

को भी यदि उद्धृत न किया जाय तो बड़ी कृपा होगी. क्योंकि इसको भी सबने असंख्य बार सुना होगा और अनगिनत बार पढ़ा होगा.

4. 14 सितम्बर, 1949 का महत्व और उसका इतिहास भी बार-बार बताए जाने की आवश्यकता नहीं है.

5. जाने में अथवा अनजाने में, हिंदी भाषा को तथा देवनागरी लिपि को, केवल हिन्दू धर्म से जोड़ने की धृष्टता और मूर्खता मत कीजिएगा.

यह याद रखिएगा कि आज राष्ट्रभाषा हिंदी जैसी बोली और लिखी जाती है, उसे विकसित करने में सबसे बड़ा योगदान - एक तुर्क, एक मुसलमान, अमीर ख़ुसरो का है. अगर आपको मेरी बात पर विश्वास न हो तो आज से सात सौ साल से भी अधिक पहले उसके द्वारा पूछी गयी इस पहेली को फिर से पढ़ लीजिएगा –

एक थाल मोती से भरा, सब के सर पर औंधा धरा,

चारों ओर वह थाली फिरे, मोती उस से एक न गिरे.’

मलिक मुहम्मद जायसी नामक एक मुसलमान ने गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस से बहुत पहले पद्मावत के रूप में अवधी में महाकाव्य लिखा था.

हिंदी के विकास में अब्दुर्रहीम खानखाना और रसखान जैसे मुसलमानों के योगदान की चर्चा करते-करते तो एक युग बीत सकता है.

यह भी मत भूलिएगा कि

सब ठाठ पड़ा रह जाएगा, जब लाद चलेगा बंजारा

कहने वाला जनकवि नज़ीर अकबराबादी एक मुसलमान था.

6.  याद रखिएगा - 'हिंदी दिवस' पर किसी भारतीय भाषा की और किसी भारतीय भाषा की लिपि की (विशेषकर उर्दू भाषा की और अरबी-फ़ारसी लिपि की) महत्ता कम करने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए.

हिंदी भाषा को और देवनागरी लिपि को किसी पर थोपने से या किसी पर लादने से, अधिक यह आवश्यक है कि उन्हें मांज कर, उन्हें तराश कर, ऐसा बना दिया जाए कि वो दोनों, अहिन्दीभाषियों के दिल में स्वयं अपनी जगह बना लें.

7. यदि हो सके तो इस हिंदी दिवस पर हम हिंदी भाषियों को एक अन्य भारतीय भाषा सीखने का और देवनागरी लिपि के अतिरिक्त एक अन्य भारतीय लिपि सीखने का संकल्प करना चाहिए.

8.  यह दिन अंग्रेज़ी भाषा को या रोमन लिपि को, कोसने का नहीं है बल्कि हमको अपनी सैकड़ों साल से चली आ रही अपनी मानसिक दासता की और घोर आलस्य की प्रवृत्ति का परित्याग करने का है.

हमको हिंदी में साहित्य, विज्ञान, मानविकी, वाणिज्य, विधि, चिकित्सा, तकनीक ही नहीं, बल्कि हर विषय में, हर क्षेत्र में, प्रामाणिक, मौलिक तथा स्तरीय ग्रंथों की रचना करनी है.

हमें हिंदी को और देवनागरी लिपि को, अंग्रेज़ी भाषा के और रोमन लिपि के समान, विकसित, समर्थ, लोकप्रिय, सर्वग्राह्य तथा विश्वव्यापी बनाने के लिए अनथक प्रयास करना है और उन्हें हिमालय की बुलंदियों तक पहुँचाना है.

जय हिंदी ! जय भारत !  

8 टिप्‍पणियां:

  1. अत्यंत प्रेरणदायक आलेख

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    1. मेरे आलेख की प्रशंसा के लिए धन्यवाद अनिता जी.

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  2. "हमें हिंदी को और देवनागरी लिपि को, अंग्रेज़ी भाषा के और रोमन लिपि के समान, विकसित, समर्थ, लोकप्रिय, सर्वग्राह्य तथा विश्वव्यापी बनाने के लिए अनथक प्रयास करना है और उन्हें हिमालय की बुलंदियों तक पहुँचाना है."

    बिल्कुल सही कहा आपने सर, हमें बस यही प्रयास करना चाहिए, विचारणीय संदेश दिया है आपने,सादर नमस्कार 🙏

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    1. कामिनी जी, कुमाऊँ विश्वविद्यालय के अनेक हिंदी-दिवस समारोहों में मैंने भाग लिया है. ऐसे किसी भी समारोह में मैंने न तो व्यक्त विचारों में मौलिकता देखी और न ही हिंदी के बहुमुखी विकास हेतु कोई ठोस सुझाव देखा-सुना.
      यही हाल हमारी सरकार का है और अधिकतर हिंदी भक्तों का भी यही हाल है. सब जगह लफ्फ़ाज़ी है और ड्रामेबाज़ी है.
      आज तक हिंदी का जो भी विकास हुआ है, वह बाज़ार की ज़रुरत के अनुसार हुआ है, इसके लिए किसी की पीठ ठोके जाने की ज़रुरत नहीं है.
      हिंदी के सर्वतोमुखी विकास के लिए तो किसी भागीरथ के प्रयास की आवश्यकता है.

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  3. हिंदी को समृद्ध करता एक- एक वाक्य प्रशंसनीय और संग्रहणीय है, हिंदी दिवस की शुभकामनाएँ🌺👏🏻..

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    1. मेरे लेख की प्रशंसा के लिए धन्यवाद जिज्ञासा !
      हिंदी-दिवस की बधाई और उसके विकास की शुभकामनाएँ तो एक-दूसरे को हम बरसों से दे रहे हैं. सवाल यह उठता है कि सिर्फ़ इस ज़ुबानी खर्च से हिंदी का क्या भला हो रहा है.

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  4. जी,आदरनीय गोपेश जी,हिन्दी दिवस के अवसर पर बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने।अमीर खुसरो और जायसी को भुला कर लोग हिन्दी को महिमामंडित करते हुये बकवास लेख लिख कर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं।हिन्दी को जिन लोगों ने आगे बढ़ाया है उनके योगदान को याद रखा जाना चाहिए।पिछ्ले जुमले भुला कर नये प्रयास दरकार हैं।हिन्दी अखंड भारत को जोडने की मजबूत कड़ी साबित हो सकती है,पर उसके लिये दृढ संकल्प की जरुरत है।हम अपने बच्चों को नर्सरी में ही अंग्रेजी की कविता गाते प्रसन्न होते हैं।अंग्रेजी सीखना अच्छा है पर हिन्दीऔर हिन्दी भाषियों को हेय दृष्टि से देखना बहुत अनैतिक है।बच्चो में हिन्दी के प्रति रूचि और सम्मान होना चाहिये।यदि भाषा को धर्म के चश्मे से देखेंगे तो उसकी प्रगति बाधित हो जायेगी।किसी समय में मेरे दादाजी (जो उर्दू के बहुत बड़े जानकार थे ये सुना जाता है कि उन्होने 1922 में अम्बाला के बोर्डिंग BD hHigh school से दसवीं प्रथम श्रेणी में उर्दू माध्यम से उत्तीर्ण की थी।)ने मुझे उर्दू सीखाने से मना कर दिया था क्योंकि उम्र बढने के साथ -साथऔर स्वतंत्र भारत में हिन्दी के बढ़ते महत्व से उन्हें मेरे उर्दू सीखने का औचित्य समझ नहीं आया और वे उसे गैर मजहबी जुबान मानने लगे थे।उसकी इस संकीर्णता ने मुझे उर्दू सीखने से वंचित रख दिया।कहने का मतलब है कि भाषा के प्रति तंग नजरिया उसके विस्तार को बाधा पहुंचाता है।ज्ञानवर्धक लेख के लिये आपका आभार 🙏🙏

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    1. मेरे आलेख के इतने विश्लेषणात्मक और उदार आकलन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद रेणुबाला .
      तुमने यह बिलकुल सही कहा है कि भारत को एकजुट करने में हिंदी का प्रसार-प्रचार नितांत आवश्यक है.
      अपनी राष्ट्रभाषा के बिना स्वतंत्र भारत की अपनी पहचान हो ही नहीं सकती और इस सम्मान के लिए केवल हिंदी ही सुपात्र है.
      मैंने पराधीन भारत में हिंदी-उर्दू विवाद (इसमें देवनागरी लिपि - अरबी, फ़ारसी लिपि विवाद भी सम्मिलित है) पर काफ़ी काम किया है.
      अंग्रेज़ों ने अपनी 'Divide and Rule' की नीति के अंतर्गत हिंदी भाषा को, देवनागरी लिपि को, हिन्दुओं से और उर्दू भाषा को, अरबी, फ़ारसी लिपि को, मुसलमानों से जोड़ दिया.
      हम सब उनके बहकावे में आ गए.
      आज इस तंग नज़रिए को दूर करने की नितांत आवश्यकता है.
      कल ये न हो कि हम पानी को भी हिन्दू पानी और मुसलमान पानी में बाँट दें.

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