बुधवार, 2 अक्तूबर 2024

गांधी जयन्ती

आज की ख़बर –
तेरी छाती पे गोलियां बरसा,
तेरी समाधि पे जाते हैं, फूल बरसाने,
तू अमन और अहिंसा की, बात करता है,
वो चल पड़े, तुझे बम की ज़ुबान सिखलाने.
आगे बढ़ो बाबा -
एक हाथ में लाठी ठक-ठक,
और एक में,
सत्य, अहिंसा तथा धर्म का,
टूटा-फूटा, लिए कटोरा.
धोती फटी सी, लटी दुपटी,
अरु पायं उपानहिं की, नहिं सामा,
राजा की नगरी फिर आया,
बिना बुलाए एक सुदामा.
बतलाता वो ख़ुद को, बापू,
जिसे भुला बैठे हैं बेटे,
रात किसी महफ़िल में थे वो,
अब जा कर बिस्तर पर लेटे.
लाठी की कर्कश ठक-ठक से,
नींद को उनके, उड़ जाना था,
गुस्ताख़ी करने वाले पर,
गुस्सा तो, बेशक़ आना था.
टॉमी को, खुलवा मजबूरन,
उसके पीछे, दौड़ाना था,
लेकिन एक भले मानुस को,
जान बचाने आ जाना था.
टॉमी को इक घुड़की दे कर,
बाबा से फिर दूर भगाया,
गिरा हुआ चश्मा उसका फिर,
उसके हाथों में थमवाया.
बाबा लौटा ठक-ठक कर के,
नयन कटोरों में जल भर के,
जीते जी कब चैन मिला था,
दुःख ही झेला उसने मर के.
भारत दो टुकड़े करवाया,
शत्रु-देश को धन दिलवाया,
नाथू जैसे देश-रत्न को,
मर कर फांसी पर चढ़वाया.
राष्ट्रपिता कहलाता था वह,
राष्ट्र-शत्रु पर अब कहलाए,
बहुत दिनों गुमराह किया था,
कलई खुल गयी वापस जाए.
विश्व उसे जानता नहीं है,
देश उसे मानता नहीं है,
उसकी राह पे चलने का प्रण,
अब कोई ठानता नहीं है.
बाबा अति प्राचीन हो गया,
पुरातत्व का सीन हो गया,
उसे समझना मुश्किल है अब,
भैंस के आगे बीन हो गया.
दो अक्टूबर का अब यह दिन,
उसे भुलाने का ही दिन है,
त्याग-तपस्या को दफ़ना कर,
मधुशाला जाने का दिन है.
आओ उसकी लाठी ले कर,
इक-दूजे का हम सर फोड़ें,
विघटित, खंडित, आहत, भारत,
नए सिरे से, फिर हम तोड़ें.
विघटित, खंडित, आहत, भारत,
नए सिरे से, फिर हम तोड़ें.

12 टिप्‍पणियां:

  1. आओ उसकी लाठी ले कर,
    इक-दूजे का हम सर फोड़ें,
    क्या बात है,
    वंदन

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    1. गांधी-दर्शन के हत्यारों पर कही गयी मेरी बात की प्रशंसा के लिए धन्यवाद दिग्विजय जी.

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 03 अक्टूबर 2024 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    1. 'पांच लिंकों का आनंद' में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी.

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  3. और जगह अच्‍छे प्‍यारे लगे न लगे लोगों को, लेकिन नोटों पर सबको प्‍यारे लगते हैं बापू ....... समय बडा बलवान .... आज के हालातों में बहुत अच्‍छी चिंतनशील प्रस्‍तुति

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    1. कविता जी, नोटों पर ही सही, कहीं न कहीं आज भी गांधी की कीमत तो है. पर सवाल उठता है कि यह कीमत कब तक रहेगी. जल्द ही कोई बहुरूपिया मीडिया की तरह नोटों पर भी छा जाएगा.

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  4. उत्तर
    1. मेरे उदगार की प्रशंसा के लिए धन्यवाद अनिता जी.
      गांधी पर फूल बरसाने वाले आज कम हैं पर उन पर गोलियां बरसाने वाले बहुत हैं.

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  5. मो ई दादा की पारटी वाले बहुत कूटेंगे |

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    1. मोई की पारटी वाले कूटेंगे तो क्या फिक्र?
      नवरात्रि में कूटू की कचौड़ी तो सभी व्रती खाते हैं.

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  6. सार्थक यथार्थ परक, समसामयिक व्यंग्यात्मक रचना आदरणीय सादर

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    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद अभिलाषा जी.
      मेरी इस रचना में व्यंग्य तो है लेकिन बहुत दर्द भरा.

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