सोमवार, 24 अक्तूबर 2016

बड़ी-बड़ी आँखें


बचपन में उपेन्द्र नाथ अश्क़ का एक बहुत खूबसूरत रूमानी उपन्यास – ‘बड़ी-बड़ी आँखें’ पढ़ा था. तब 10-12 साल की उम्र में रोमांस को समझने की अक्ल तो नहीं थी पर इतना ज़रुर समझ में आ गया था कि बड़ी-बड़ी आँखें किसी की भी खूबसूरती में चार चाँद लगा सकती हैं. देवी-देवताओं के चित्र देखिए. जितने बड़े देवी-देवता, उनकी उतनी बड़ी आँखें. अब चाहे भगवान राम हो या श्री कृष्ण, चाहे माँ शारदे हों या लक्ष्मी माता, सभी अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से हमको सम्मोहित करते हैं.

अब अपने मुंह से क्या कहूँ पर लोगबाग कहते हैं कि मेरी भी बड़ी-बड़ी आँखें हैं. अश्क़ का उपन्यास पढ़ने के बाद आइने में अपनी आँखों का मुआयना करने का कोई मौक़ा मैं आसानी से जाने नहीं देता था-

‘वाह क्या आँखें हैं? बड़ी-बड़ी, चमकदार, पर ये भूरी-भूरी क्यूँ हैं? देवी-देवताओं में किसी की भी आँखें भूरी क्यूँ नहीं होतीं? पर क्या काली-काली आँखों ने ही खूबसूरती का ठेका ले रक्खा है? मेरी आँखें भी खूबसूरत हैं. हॉलीवुड के बहुत से हीरो-हेरोइन मेरी तरह से भूरी आँखों वाले हैं, अमेरिका के सुपर डैशिंग राष्ट्रपति केनेडी भी कंजे हैं पर इस भारतवर्ष में भूरी, कंजी आँखों का कोई क़द्रदान क्यूँ नहीं है?’

अंग्रेजी में पशु-पक्षियों पर एक बहुत सुन्दर पुस्तक हमारे घर में थी जिसमें उनके तमाम रंगीन फ़ोटो भी थे. उसमें कैट फैमिली के जितने भी फ़ोटो थे, उनमें सबकी आँखें भूरी थीं, किसी की हल्की भूरी, किसी की गहरी भूरी. अपनी आँखों के भूरे रंग का होने की मुझे क्या कीमत चुकानी पड़ी है, इस दर्द का मैं शब्दों में पूरी तरह बयान करने में सर्वथा असमर्थ हूँ. पर स्कूल में मेरे साथी जब मुझे ‘भूरी बिल्ली’ कह कर बुलाते थे और मेरे द्वारा उनकी शिकायत करने पर गुरुजन उन दुष्टों के कान खींचने के बजाय खुद हंसने लगते थे तो मैं भगवान द्वारा अपने साथ की गयी नाइंसाफ़ी पर दुखी होने के अलावा और कुछ भी नहीं कर पाता था.

मेरी माँ की नज़रों में मुझसे सुन्दर बच्चा और कोई नहीं हो सकता था. मेरी आँखों की सुन्दरता बढ़ाने के लिए वो मेरे पीछे काजल की डिबिया लेकर भागती रहती थीं. मुझे आँखों में काजल लगवाने से बड़ी चिढ़ थी पर यह सोचकर कि लगातार काजल लगवाने से मेरी भूरी आँखें शायद काली हो जाएंगी, मैंने माँ के अत्याचार को भी सहन कर लिया पर फिर आइने में उसका परिणाम देखा तो रुलाई छूट गयी. मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि भूरी आँखों वाला अगर अपनी आँखों में काजल लगा ले तो वो सिर्फ़ जोकर लग सकता है और कुछ नहीं.

मुहम्मद रफ़ी का एक बहुत खूबसूरत गाना है -

'गोरी तोरे नैन, कजर बिन कारे, कारे, कजरारे'

पुराने ज़माने में इस गाने को सुनकर मेरे तन-बदन में आग लग जाती थी. मुझे ऐसा लगता था कि रफ़ी साहब मुझे चिढ़ाते हुए गा रहे हैं -

'गोपू तोरे नैन, कजर लगवा के भी न भये कारे'

लखनऊ यूनिवर्सिटी में एम. ए. करने के दौरान बड़ी बहननुमा हमारी आपा को मेरी बड़ी-बड़ी आँखें बहुत प्यारी लगती थीं. मेरे साथ मेरे दोस्त खान साहब हमेशा मेरे साये की तरह मेरे साथ लगे रहते थे और आपा थीं कि उन्हें खान साहब को देखना भी गवारा नहीं था. खान साहब अपनी ज़्यादा उम्र, चुंदी और खिंची-खिंची आँखों के कारण लड़कियों में ‘बाबुल चंगेज़ी’ के नाम से मशहूर थे.

एक बार आपा ने उनसे कहा – ‘खान तू अपनी चुंदी-चुंदी आँखों के साथ इतनी बड़ी-बड़ी आँखों वाले गोपू के साथ मत रहा कर. तेरी और गोपू की जोड़ी जमती नहीं है.’

खान साहब ने पलटकर उनसे पूछ लिया – ‘आपा, तुम्हें ये बड़ी-बड़ी भूरी आँखों वाला बैल पता नहीं क्यूँ अच्छा लगता है? अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से क्या इसे दो के चार नज़र आते हैं और हमको सिर्फ़ एक?’

आपा ने उन्हें झिड़कते हुए कहा – ‘हाय, इतने प्यारे से ईरानी बिल्ले को तू बैल कह रहा है?’

‘हाय, मेरी घोर प्रशंसिका आपा भी मुझे बिल्ला ही मानती हैं. हे प्रभू ! मैं अब कहाँ जाऊं?’

अपनी आँखों पर निरंतर की जाने वाली टिप्पणियों से दुखी होकर मैंने उनको गौगल्स लगाकर ढकने का तरीक़ा अपनाया जो कि काफ़ी हिट रहा.

वैसे बड़ी-बड़ी आँखें कभी-कभी वरदान होने के स्थान पर संकट और विपत्ति का कारण भी बन जाती हैं. हमारी पौराणिक गाथाएं इस बात की गवाह हैं. बेचारी मछली की आंख को द्रौपदी के स्वयंवर में निशाना साधने के लिए इसलिए ही तो प्रयोग लाया गया क्योंकि वह अपने बड़े आकार के लिए प्रसिद्द थी.

हमारी फ़िल्मों में आँखों को लेकर कितने झूठ बोले जाते हैं, इसका हिसाब करना मुश्किल है. पुराने ज़माने में राजश्री अपनी खूबसूरत आँखों के लिए बड़ी मशहूर थी. एक साहब ने उसको लेकर फ़िल्म बनानी शुरू की –‘नैना’. फ़िल्म आधी छोड़कर राजश्री शादी करके अमेरिका भाग गईं और निर्माता महोदय ने चुंदी आँखों वाली मौशमी चटर्जी को लेकर बाक़ी फ़िल्म पूरी की. कहानी में नायक शशि कपूर एक हादसे में नैना की मौत से बहुत ग़मगीन है पर जब वह मौशमी चटर्जी की आँखों में नैना की आँखें देखता है तो उसकी ज़िन्दगी फिर से पटरे पर आ जाती है.

फ़िल्म ‘बाज़ीगर’ में आँखों के वर्णन में तो कमाल ही हो गया है. मेरी जैसी भूरी आँखों वाली काजोल को देखकर शाहरुख खान गाते हैं – ‘ये काली-काली आँखें, ये गोरे-गोरे गाल’ अब आप बताइए न तो काजोल की ऑंखें ही काली-काली हैं न उनके गाल ही गोरे-गोरे हैं पर गाना तो कमबख्त हिट हो ही गया.

मेरी श्रीमतीजी मेरी आँखों की भारी प्रशंसक हैं. मैं कभी बिलकुल सामान्य दृष्टि से भी उन्हें देखूं तो वो मुझसे पूछती हैं – ‘ऐसा मैंने क्या कर दिया जो आप मुझे ऐसे घूर रहे हैं?’

‘आँखें तरेरना’ , आँखें निकालना’ , आँखों से अंगारे बरसाना’ आदि मुहावरों का प्रयोग हमारे यहाँ केवल मेरे लिए ही किया जाता है.

सबसे ज़्यादा दुःख की बात यह है कि मेरी श्रीमतीजी की दृष्टि में कोई कंजा कभी शरीफ़ नहीं हो सकता.

अब जब कि मेरे सर की खेती सूख गयी है, ‘कंजे और गंजे’ वाला कॉम्बिनेशन मुझे और दुखी कर रहा है.

मेरी बेटी गीतिका की आँखें कुछ-कुछ मेरी जैसी ही हैं. उसकी आँखों की जब तारीफ़ की जाती है तो मुझे हैरत होती है. पर शोध करने के बाद मुझे पता चला है कि कंजे लड़के और कंजे मर्द बदमाश होते हैं किन्तु कंजी लड़कियां क्यूट होती हैं. वैसे गीतिका की एक प्रशंसिका का यहाँ ज़िक्र करना ज़रूरी हो जाता है. मेरी एक हृष्ट-पुष्ट छोटी बहन हैं, बिल्कुल बीजापुर के गोल गुम्बद जैसी. गीतिका करीब-करीब एक साल की होगी जब उसने अपनी गोल गुम्बद बुआजी के दर्शन किए होंगे. गोल गुम्बद बुआजी ने बच्ची को बड़े गौर से देखा फिर मेरी तरफ़ मुखातिब होकर वो बोलीं -

'भाई साहब, ये बंदरिया तो बिल्कुल आप पर गयी है. वही नाक-नक्श. वैसी ही गोल-गोल, कौड़ियों जैसी बड़ी-बड़ी आँखें --'

बेचारी गोल गुम्बद बुआजी अपना वाक्य भी पूरा नहीं कर पाईं क्योंकि उनके भाई साहब ने उन्हें ऐसी लताड़ लगाई कि वो उनसे आज भी रूठी हुई हैं.

आजकल कांटेक्ट लेंस लगाने का ज़माना है. नई तकनीक का लाभ उठाकर मैं भी अपनी भूरी, कंजी आँखों का रंग बदलकर उन्हें काला कर सकता हूँ पर अब शायद थोड़ी देर हो चुकी है. अब तो ता-उम्र कंजा ही रहना होगा. और वैसे भी अगर भूरी बिल्ली होगी तो घर में चूहों का खौफ़ नहीं रहेगा.

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 25 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. धन्यवाद दिग्विजय अग्रवाल जी. 'पांच लिंकों का आनंद' से तो मैं अपने दिल से जुड़ा हूँ. ज़रूर आऊंगा.

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    1. आप ऐसे ही हौसला-अफज़ाई करते रहिए, हम यूँ ही लिखते रहेंगे.

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  3. "आ तेरी उम्र मै लिख दूँ चाँद सितारों से
    तेरा जनम दिन मै मनाऊं फूलों से बहारो से

    हर एक खूबसूरती दुनिया से मै ले आऊं
    सजाऊं यह महफ़िल मै हर हँसी नजारों से

    उम्र मिले तुम्हे हजारों हजारों साल ...
    हरेक साल के दिन हो पचास हजार !!"

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  4. यशोदाजी आपकी शुभकामनाओं से तो मैं खुद को 66 साल के स्थान पर 16 का समझ रहा हूँ. आप जैसे कद्रदान मुझको बूढ़ा नहीं होने देंगे. बस, एक ही खतरा है कि कहीं उत्तराखंड सरकार मेरी किशोरावस्था देखकर मेरी पेंशन न बंद कर दे. इतनी सुन्दर काव्यात्मक शुभकामनाओं के लिए मैं आभार किन शब्दों में व्यक्त करूँ?

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