बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

आम आदमी से चंद सवालात



आम आदमी से चंद सवालात -

हर तरफ़ चैन-ओ-अमन, पहरेदार भी मुस्तैद,
घर से बाहर तू निकलता है, तो डरता क्यूं है?
सर पे छत भी नहीं, औ पेट में रोटी भी नहीं,
आखरी सांस तलक, टैक्स तू भरता क्यूँ है?
कितने नीरव औ विजय, रोज़ बनाते हैं वो,
तू करमहीन, गरीबी में ही, मरता क्यूँ है?
उनके जुमलों पे, भरोसा तो दिखाता है तू ,
फिर बता मुझको, कि मुंह फेर के, हँसता क्यूँ है?    

14 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन राष्ट्रीय विज्ञान दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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    1. धन्यवाद हर्षवर्धन जी. 'राष्ट्रीय विज्ञानं दिवस और ब्लॉग बुलेटिन' से जुड़कर मुझे बहुत खुशी हो रही है. मैं ब्लॉग बुलेटिन का नियमित पाठक हूँ और इसे पढ़कर मुझे बहुत आनंद प्राप्त होता है.

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    1. धन्यवाद मीना जी. जब नेताओं के कारनामे देखकर दिल जलता है तभी दिमाग में ऐसे सुलगते हुए विचार आते हैं.

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  3. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरूवार 1 मार्च 2018 को प्रकाशनार्थ 958 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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    1. धन्यवाद रवींद्र सिंह यादव जी. 'पांच लिंकों का आनंद' मेरे लिए आनंद का स्थायी श्रोत है. चर्चा में सम्मिलित होकर मुझे बहुत प्रसन्नता होगी.

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  4. वाह्ह्ह..।बहुत खूब...विचारणीय प्रश्न है आदरणीय।
    पर शायद
    सारे सवाल गर हल हो जाते
    सोचो फिर क्या पल रह जाते

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    1. धन्यवाद श्वेता जी. आप निश्चिन्त रहें, इन देशसेवकों के रहते सारे सवाल, सारे मसले हल नहीं होने वाले बल्कि रोज़ नए मसले, रोज़ नए पचड़े, रोज़ नए घपले, रोज़ नए घोटाले आते रहेंगे और राजनीति के आकाश में काले बादलों की छाते रहेंगे.

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  5. सर पे छत भी नहीं, औ पेट में रोटी भी नहीं,
    आखरी सांस तलक, टैक्स तू भरता क्यूँ है? .... वाह!! अद्भुत कटाक्ष!!! बधाई और आभार!!!

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    1. धन्यवाद विश्व मोहन जी. दिल से जो आह निकलती है, कभी-कभी वो शब्दों का रूप ले लेती है.

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  6. वाह!!!
    बहुत लाजवाब....
    तू करमहीन, गरीबी में ही, मरता क्यूँ है?
    सटीक व्यंग...

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    1. धन्यवाद सुधा जी. इन कुर्सीधारियों ने हम सब आम आदमियों को करमहीन बना कर ही रख छोड़ा है.

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