अलाउद्दीन सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी का भतीजा था और उसका दामाद भी था. सुल्तान अपने इस भतीजे को बहुत प्यार करता था. सुल्तान ने अलाउद्दीन की बहादुरी से खुश होकर उसे अपनी सल्तनत में सबसे ऊंचा ओहदा दे दिया था. लेकिन अलाउद्दीन ने मौक़ा पाकर अपने चाचा की हत्या करवा दी और खुद सुल्तान बन बैठा.
सुल्तान अलाउद्दीन का सबसे बहादुर सिपहसालार ज़फ़र खान था. लोग कहते थे कि अगर ज़फ़र ख़ान जैसा बहादुर का साथ न होता तो अलाउद्दीन खिलजी सुल्तान ही नहीं बन पाता।
अलाउद्दीन के सबसे बड़े दुश्मन मंगोल तो ज़फ़र ख़ान के नाम तक से कांपते थे. लेकिन अलाउद्दीन को ज़फ़र ख़ान की कामयाबी से जलन होने लगी थी और अपने लिए ख़तरे का एहसास भी. अलाउद्दीन ने एक जंग के दौरान ज़फ़र ख़ान को चारों तरफ़ से दुश्मनों से घिरा देखा पर उसने उसकी मदद के लिए अपनी कोई फ़ौजी टुकड़ी नहीं भेजी। बेचारा ज़फ़र ख़ान बहादुरी से लड़ता हुआ मैदान में ही मारा गया.
तो बच्चों ! कैसी लगी तुम्हे इस ज़ालिम सुल्तान अलाउद्दीन की कहानी?'
एक होनहार बालक -
'गुरु जी ! इस कहानी में तो गलतियां ही गलतियां हैं. अलाउद्दीन खिलजी ने सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी को मरवाया थोड़ी था. उसने तो उसे मार्ग-दर्शक बना दिया था. और रही ज़फ़र ख़ान की बात तो उसको भी उसने मैदान में मरने के लिए नहीं छोड़ा था बल्कि एक उप-चुनाव में उसके हारने का पक्का इंतज़ाम भर कर दिया था.'
बढ़िया गुरु जी :)
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुशील बाबू !
हटाएंआदरणीय गोपेश जी -- इतिहास को वर्तमान के सन्दर्भ में बहुत बेहतरीन ढंग से लिखा अपने |उस समय की सियासत और आज की सियासत का यही रंग है | सादर
जवाब देंहटाएंरेनू जी रहीम के एक प्रसिद्द दोहे -
हटाएं'जे रहीम उत्तम प्रकृति, का कर सकत कुसंग,
चन्दन बिस ब्यापे नहीं, लपटे रहत भुजंग.'
का मैंने सुधार किया है -
सत्ता-दल, प्रति-पक्ष में व्यर्थ आपसी जंग,
सियासती हम्माम में , हर कोई नंग-धड़ंग.
बस, मेरी कहानी का भाव भी यही है.