सोमवार, 3 दिसंबर 2018

एक बार फिर से - राजेन्द्र बाबू

राजेन्द्र बाबू के 135 वें जन्मदिन पर एक बार फिर से -
राजेंद्र प्रसाद को लोग प्यार और सम्मान से राजेंद्र बाबू पुकारा करते थे. राजेंद्र बाबू अपने ज़माने के सबसे बड़े वकीलों में गिने जाते थे. उनके वैभव और उनके ठाठ-बाट के चर्चे पूरे बिहार में मशहूर थे.
1917 में बिहार में, विशेषकर चंपारन में, ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक गहरा असंतोष पनप रहा था इस का मूल कारण नील की खेती करने वाले किसानों का निलहे साहबों द्वारा अमानवीय शोषण था पर राजेंद्र बाबू को इस ओर देखने का समय ही कहाँ था वो तो अपनी फलती-फूलती वकालत के सुख भोगने में मगन थे.
एक शाम उनके बंगले पर एक अजनबी आया और बाहर गेट पर खड़े दरबान से उसने राजेंद्र बाबू से मिलने की इच्छा व्यक्त की. दरबान ने गौर से उस अजनबी को देखा. धोती, छोटा सा कुरता, सर पर बड़ा सा पग्गड़, पैरों में देसी जूते पहने हुए यह आदमी उसे बाबूजी का कोई देहाती मुवक्किल लगा. दरबान ने उससे कहा –
‘बाबूजी शाम को किसी से नहीं मिलते. कल सुबह आना.’
अजनबी ने कहा –
‘मैं बड़ी दूर से आया हूँ. बाबूजी से मिलने दो, मैं उनका ज्यादा समय नहीं लूँगा.’
दरबान ने दृढ़ता के साथ उस अजनबी को वापस लौटा दिया. अगले दिन सुबह से ही वो अजनबी फिर बंगले के गेट पर बाबूजी से मिलने की अरदास लेकर खड़ा हो गया. दरबान ने उसे आश्वस्त किया कि वह बाबूजी के कोर्ट जाने से पहले उसे उनसे मिलवा देगा. राजेंद्र बाबू की कार जब बंगले के दरवाज़े पर पहुंची तो उस अजनबी को दरबान ने उनके सामने पेश कर दिया.
राजेन्द्र बाबू ने कार में बैठे-बैठे ही उस अजनबी से पूछा –
‘कहो भाई क्या बात है, तुम मुझसे क्यूँ मिलना चाहते हो?
अजनबी ने जवाब दिया –
‘मैं चंपारन के किसानों के बारे में आपसे बात करना चाहता हूँ.’
राजेंद्र बाबू ने उस अजनबी को उनसे अपना मुकदमा लड़ने की प्रार्थना लेकर आया हुआ कोई आम आदमी समझा था पर यहाँ तो बात कुछ और थी. उन्होंने उस अजनबी को गौर से देखा, उनको लगा कि इसको कहीं देखा है, पर कहाँ, यह उनके समझ में नहीं आ रहा था. अब राजेन्द्र बाबू के पूछने का लहजा बदल चुका था उन्होंने अपनी कार से उतरकर अजनबी से कहा –
‘मैंने आपको कहीं देखा है. मेहरबानी करके अपना परिचय दीजिये.’
अजनबी ने कहा –
‘मैं मोहनदास करम चंद गांधी हूँ. हो सकता है अख़बार में आपने मेरा कोई फोटो देखा हो. मेरा आपसे पत्र व्यवहार भी हो चुका है.’
यह सोचकर राजेन्द्र बाबू का चेहरा शर्म से लाल पड़ गया कि उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह की अलख जगाने वाले इस महानायक के साथ कैसा व्यवहार किया था. उन्होंने गांधीजी से माफ़ी मांगते हुए पूछा –
‘आप सुबह कैसे यहाँ आ गए. आपकी तरफ से आनेवाली ट्रेन तो शाम को आती है?’
गांधीजी ने मुस्कुराकर जवाब दिया –
‘मैं तो कल शाम से ही आपसे मिलने की प्रतीक्षा कर रहा था.’
राजेन्द्र बाबू ने हैरानी से पूछा –
‘कल शाम ही से? फिर सुबह तक आप कहाँ थे?
गांधीजी ने जवाब दिया –
‘पता चला कि शाम को आप किसी से मिलते नहीं हैं इसलिए आपके बंगले के बाहर पडी एक बेंच पर रात गुज़ारकर अब आपकी सेवा में उपस्थित हूँ.’
राजेन्द्र बाबू ने गांधीजी के चरणों में अपना सर रख दिया और आँखों में आंसू भरकर, हाथ जोड़कर उनसे क्षमा मांगते हुए कहा –
‘मैं किस तरह अपने दरबान के और अपने अपराध के लिए आपसे माफ़ी मांग सकता हूँ?’
गांधीजी ने राजेन्द्र बाबू का हाथ पकड़कर हँसते हुए कहा –
‘माफ़ी तो आपको तभी मिलेगी जब चम्पारन आन्दोलन में आप मेरा साथ देंगे. आप जैसा प्रभावशाली स्थानीय नेतृत्व हमारे आन्दोलन को बहुत ताक़त देगा.’
राजेन्द्र बाबू ने दृढ़ता के साथ कहा –
‘आप आदेश दें. अब यह जीवन आपको समर्पित है.’
गांधीजी ने कहा –
‘सोच लीजिये राजेन्द्र बाबू, मेरे आन्दोलन में कूदेंगे तो आपको यह शानो-शौकत, यह फलती-फूलती वकालत भी छोड़नी पड़ सकती है.’
राजेन्द्र बाबू ने कहा –
‘आप तो बैरिस्टर हैं. आप अगर शानो-शौकत और वकालत छोड़ सकते हैं तो मैं क्यों नहीं?’
उस दिन से राजेन्द्र बाबू ने अपना सम्पूर्ण जीवन गांधीजी के आंदोलनों और उनके आदर्शों के नाम कर दिया.

14 टिप्‍पणियां:

  1. परी कथा जैसी। इस जमाने में तो अब राक्षस कथायें ज्यादा प्रचलित हो रही हैं।

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    1. एक राजेन्द्र बाबू थे और एक हमारे वर्तमान राष्ट्रपति हैं जिनका का नाम याद रखने के लिए रोज़ च्यवनप्राश खाना पड़ता है.

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  2. वाह्हह्ह्ह....ऐसे करिश्माई किरदार भी हैं हमारे इतिहास में...काश कि उनके कुछ अवगुण भी आज के जनसेवकों नाम से प्रचलित जोंकों में होते तो जनता निहाल हो जाती।
    बहुत आभार आपका सर बहुत अच्छा लगा हृदयपरिवर्तन की कथा पढ़कर।

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    1. श्वेता जी, क़ुरबानी का वो जज़्बा अब अपने लिए न होकर हमारे लिए हो गया है. आज के नेता देशभक्ति के नाम पर, हमें क़ुर्बान कर, हमसे बनाई गयी बिरयानी खा रहे हैं.

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  3. हृदय परिवर्तन और महानता का अद्भुत संगम !!!

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    1. मीना जी, मेरा तो भारत माता से बस एक ही प्रश्न है -
      हे भारत माता ! तूने अब ऐसे सपूत उत्पन्न करने बंद क्यों कर दिए?

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  4. आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २२५० वीं बुलेटिन ... तो पढ़ना न भूलें ...


    यादगार मुलाक़ातें - 2250 वीं ब्लॉग बुलेटिन " , में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. आज के 'ब्लॉग बुलेटिन' के अंक में मेरी रचना सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ! मैं आज ही इसको पढ़ने का आनंद उठाऊँगा.

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  6. बहुत आभार आदरणीय आपका बहुत अच्छा लगा हृदयपरिवर्तन की कथा पढ़कर।
    सादर

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    1. धन्यवाद अनिता जी,
      हमारे पहले तीन राष्ट्रपति और फिर बहुत दिनों बाद में ए. पी. जे. अब्दुल क़लाम, ये चार महानुभाव, निर्विवाद रूप से सबके आदर के पात्र थे.

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  7. वाह ...
    बहुत ही सुन्दर संस्मरण है ... ऐसे ही होते हैं जो तन मन न्योछावर करते हैं ...
    नमन राजेन्द्र बाबू को ...

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    1. धन्यवाद दिगंबर नसवा जी. कोई कहे कि आज के नेताओं की तारीफ़ में जितने सच्चे शब्द लिखोगे, उतनी अशर्फियाँ मिलेंगी तो दिन भर में क्या, सारी उम्र भी कोई कमाई नहीं हो पाएगी.

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  8. आदरणीय गोपेश जी -- बहुत प्रेरक प्रसंग है | सचमुच माँ भारती के अनमोल लाल , जिनके आदर्श और नैतिकता इतने उच्च थे -- वो कहाँ चले गये और सबसे दुखद है उनका अनुसरण करने वाला कोई क्यों पैदा नहीं हुआ ? डॉ राजेन्द्र बाबू को कोटि कोटि नमन और गाँधी जी की विनम्रता के आगे पूरा विश्व नत है , इन्ही गुणों न उन्हें गाँधी बनाया | सादर --

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    1. धन्यवाद रेनू जी.
      क्लास में मैं अपने विद्यार्थियों के अनुरोध पर ऐसे प्रेरक ऐतिहासिक प्रसंग ज़रूर सुनाता था पर पता नहीं क्यों, मैं और मेरे विद्यार्थी उस समय बहुत भावुक हो जाते थे.
      ऐसे प्रसंगों को कलमबद्ध करते समय मेरी आँखें बार-बार भर आती हैं लेकिन आज के नेताओं का तो स्मरण करते ही खून खौलने लगता है.
      पुराने नेतागण सूरज-चाँद थे और आज के नेता तो काजल की कोठरी से सजे-सजाए निकलते हैं.

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