जहाँ भी तुम
क़दम रख दो
वहीं पर
राजधानी है
इशारों पर
हिलाना दुम
ये पेशा
खानदानी है
न ही इज्ज़त की
है चिंता
न ही आँखों
में पानी है
चरण-रज नित्य
श्रद्धा से
हमें मस्तक लगानी
है
तुम्हें दिन में दिखें तारे
तो हाँ में
हाँ मिलानी है
भले हो अक्ल घुटने में
कहो जो बेद-बानी है
अगर कबिरा सा
बोलें सांच
तो आफ़त बुलानी
है
तुम्हारी हर
जहालत पर
हमें ताली
बजानी है
'आदमी के डसे का नहीं मन्त्र है' (चर्चा अंक - 4033) में मेरी व्यंग्य-रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' !
जवाब देंहटाएंआजकल के माहौल पर आपकी व्यंग भरी रचना गजब तंज कस रही है ,सादर नमन ।नववर्ष तथा नवरात्रि के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई...जिज्ञासा सिंह ।
जवाब देंहटाएंमेरी व्यंग्य-रचना की प्रशंसा के लिए धन्यवाद जिज्ञासा.
जवाब देंहटाएंनव-संवत्सर और नव-रात्रि की तुमको भी सपरिवार हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ !
वाह👌👌👌 बहुत मारक चाटुकार वंदना गोपेश जी🙏🙏
जवाब देंहटाएंरेणुबाला जी, कब तक सिर्फ़ पेंशन पर गुज़ारा करूं?
हटाएंहो सकता है कि इस चाटुकार-वन्दना की बदौलत मैं किसी प्रदेश का राज्यपाल या फिर किसी केंद्र-शासित प्रदेश का उप-राज्यपाल नियुक्त कर दिया जाऊं.
😃😃😃अब इतनी बडी उम्मीद भी मत रखीये 😃🙏🙏🙏
हटाएंअच्छा यह बताइए कि आपके-हमारे वर्तमान राष्ट्रपति ने राज्यपाल और फिर राष्ट्रपति बनने से पूर्व, किस क्षेत्र में कौन सा तीर मारा था.
हटाएंहमको तो फिर भी सौ-दो सौ लोग जानते थे.