शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2021

विजयादशमी के पर्व पर दो अलग मिजाज़ की रचनाएँ

किस की किस पर विजय का पर्व?
पाप बड़ा या पुण्य बड़ा है
प्रश्न अचानक आन खड़ा है
पाप-मूर्ति रावण का पुतला
सदा राम से दिखा बड़ा है
राम तो है दुर्गम वन-वासी
रावण स्वर्ण-नगर का वासी
पर्ण कुटी में व्याप्त उदासी
हर सुख भोगे महा-विलासी
पुण्य बुलबुले सा क्षण-भंगुर
पाप का शासन है स्थायी
पुण्य कंदमूल पर निर्भर
पाप उड़ाता दूध-मलाई
पुण्य है सूने मरघट जैसा
पाप सजे जैसे है मेला
पाप-पुण्य की परिभाषा को
आज बदलने की है वेला
दुखद पुण्य को कौन सहेगा
बुद्धिमान अब यही कहेगा
पुण्य से तुम छुटकारा पाओ
पाप को जीवन में अपनाओ.
(मेरी इस कविता के साथ, कुछ ऐसे ही विचार व्यक्त करती मोहतरमा तबस्सुम आज़मी की एक बहुत ही खूबसूरत और दिल पर असर करने वाली नज़्म पेश है)
कब?
हर साल जलाया जाता है
हर साल मिटाया जाता है
मिट्टी में मिलाया जाता है
और फिर भी वो पाया जाता है
जल कर कर भी कहाँ वो मरता है
बहरूप नया फिर भरता है
इंसान को ऐसे छलता है
इंसान के अन्दर पलता है
इंसान के पैकर (शरीर) में छुप कर
और बैठ के ज़हनों (दिमागों) के अन्दर
बस शोले उगलता रहता है
संसार ये जलता रहता है
दहशत (आतंक) का शरारत का रावन
नफ़रत का अदावत (शत्रुता) का रावन
ये बुग्ज़-ओ-कुदूरत (छुपी हुई शत्रुता) का रावन
इंसां की रिज़ालत (अधमता) का रावन
जिस रोज़ जलेगा ये रावन
नफ़रत का जलेगा जब ज़िन्दन (जिन्न)
जब फूल खिलेंगे घर-आँगन
तब प्यार से महकेगा गुलशन
कब इसको जलाया जाएगा?
कब ऐसा दसहरा आएगा?
कब ऐसा दसहरा आएगा?

10 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१६ -१०-२०२१) को
    'मौन मधु हो जाए'(चर्चा अंक-४२१९)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. दशहरे से सम्बन्धित मेरी और मोहतरमा तबस्सुम आज़मी की रचनाओं को 'मौन मधु हो जाए' (चर्चा अंक - 4219) में सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद अनीता.

    जवाब देंहटाएं
  3. दशहरा को प्रासंगिक बनातीं बहुत बढ़िया, शानदार गीत, शानदार नज़्म 💐💐🙏💐

    जवाब देंहटाएं
  4. हौसलाअफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया जिज्ञासा !

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह जैसवाल जी, पुण्य है सूने मरघट जैसा
    पाप सजे जैसे है मेला
    पाप-पुण्य की परिभाषा को
    आज बदलने की है वेला -----बहुत सुंदर रचना ---रावण दहन के साथ पाप और पुण्‍य दोनों पर मनन करने की आवश्‍यकता आज कुछ अध‍िक ही है। साथ ही तबस्‍सुम जी की "जल कर कर भी कहाँ वो मरता है
    बहरूप नया फिर भरता है
    इंसान को ऐसे छलता है
    इंसान के अन्दर पलता है" बहुत ही सुंदरता से सारा बखान कर गई।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी और मोहतरमा तबस्सुम आज़मी की रचनाओं के उदार आकलन के लिए धन्यवाद अलकनंदा जी.
      आज असत्य पर सत्य की विजय का पर्व एक मज़ाक़ लगता है.

      हटाएं
  6. गोपेश भाई,पुण्य बुलबुले सा क्षण-भंगुर
    पाप का शासन है स्थायी
    पुण्य कंदमूल पर निर्भर
    पाप उड़ाता दूध-मलाई
    बहुत सटीक रचना।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी रचना की प्रशंसा के लिए धन्यवाद धन्यवाद ज्योति !
      मोहतरमा तबस्सुम आज़मी की विचारोत्तेजक नज़्म पर भी कुछ कहो !

      हटाएं