रविवार, 26 जनवरी 2025

अमर रहे गणतंत्र हमारा

 

शासक को मिलते सुख अनंत
जन-गण-मन धक्के खाते हैं
स्कूल न जा मज़दूरी कर
बच्चे दो रोटी पाते हैं
गणतंत्र दिवस की झांकी में
चहुँ ओर प्रगति दिखलाते हैं
अनपढ़ भूखे लाचारों की
संख्या पर नहीं बताते हैं
दिनकर जा पहुंचे स्वर्गलोक
भारत से टूटे नाते हैं
भारत-संतति की क़िस्मत में
धोखे हैं झूठी बातें हैं
निर्धन पर कर का बोझ बढ़े
धनिकों के लिए सौगाते हैं
गणतंत्र दिवस का है उत्सव
अपनी तो काली रातें हैं

(यह कविता महा-कवि दिनकर की अमर रचना - 'श्वानों को मिलता दूध-वस्त्र, भूखे बच्चे अकुलाते हैं - - - '' से प्रेरित है)

बुधवार, 1 जनवरी 2025

सन 24 ताहि बिसारि दे, तू 25 की सुधि लेय

 सन चौबिस का जंजाल गया,

हाथापाई का साल गया,
धक्कामुक्की का साल गया,
दोषारोपण का साल गया.

संसद की गरिमा भंग हुई
खूनी चुनाव की जंग हुई
भारत-मुद्रा बेबस हो कर
डॉलर समक्ष बेरंग हुई
रोहित सा कोई फ़ेल न हो,
निर्दोषों को फिर जेल न हो,
रेवड़ी बाँट का खेल न हो,
दल-बदलू रेलमपेल न हो.
जग में गुकेश का मान बढ़े,
हम्पी की हर कोई चाल पढ़े,
बुमरा की बॉलिंग शीर्ष चढ़े,
नित दीप्तिमान इतिहास गढ़े.
अब महंगाई का राज न हो ,
फ़िरको में बंटा समाज न हो,
रिश्वत से कोई काज न हो,
संस्तुति का भ्रष्ट रिवाज न हो.
अनपढ़ को पढ़ना भा जाए,
इंसाफ़ दलित भी पा जाए,
सुख-शांति देश में छा जाए,
अब राम-राज्य फिर आ जाए.