सूर की राधा दुखी, तुलसी की सीता रो रही है ।
शोर डिस्को का मचा है, किन्तु मीरा सो रही है ।
सभ्यता पश्चिम की, विष के बीज कैसे बो रही है ,
आज अपने देश में, हिन्दी प्रतिष्ठा खो रही है ।।
आज मां अपने ही बेटों में, अपरिचित हो रही है ।
बोझ इस अपमान का, किस शाप से वह ढो रही है ।
सिर्फ इंग्लिश के सहारे भाग्य बनता है यहां ,
देश तो आज़ाद है, फिर क्यूं ग़ुलामी हो रही है ।।
हिंदी दिवस पर शुभकामनाऐं ।
जवाब देंहटाएंरोज क्यों नहीं आते हैं यहाँ :) ?
हिंदी दिवस पर आपको भी बधाई। रोज़ आकर क्या करें, सुशील जोशी जैसे क़द्रदान बहुत कम हैं.
हटाएंजब तक गुलामी को शान समझा जाएगा हालात नही सुधरेंगे।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा आपने आदरणीय सर। सादर प्रणाम 🙏