सोमवार, 8 जून 2015

हमारे कुलपति



कुलपति के पद तक पहुंचना हम जैसे आम अध्यापकों के लिए पिछले सात जन्मों के पुण्यों का फल होता है. जिसके भाग्य में लक्ष्मी और सरस्वती दोनों की कृपा लिखी होती है और जिसे माँ शक्ति का वरदान प्राप्त होता है वही इस मक्खन, मलाईदार पद का हक़दार होता है. आम तौर पर कुलपति पद तक पहुँचने के लिए अकादमिक क्षेत्र में विशेष झंडे गाड़ने की ज़रुरत नहीं पड़ती। सत्ताधारियों की सफलतापूर्वक चाटुकारिता कर पाना ही इस शीर्षस्थ स्थान तक पहुँचने का आधार होता है. 


मैंने कुलपतियों में नम्रता, मितभाषिता और सरलता-सादगी के दर्शन बहुत कम किये हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय में अध्यापन करते समय एक रिटायर्ड कमिश्नर हमारे कुलपति बने तो उन्होंने अपने लिए सायरन युक्त लालबत्ती वाली कार और अपनी सुरक्षा के लिए स्टेन गन्स लिए सुरक्षा कर्मियों की फ़ौज रखना ज़रूरी समझा। 

कुमाऊं विश्विद्यालय के एक कुलपति अपने छह साल के शासन काल में छह बार यूनिवर्सिटी के खर्चे पर विदेश गये थे. कुलपति के कक्ष के अलंकरण और आधुनिकीकरण में उन्होंने आज से 30 साल पहले लाखों खर्च करवा दिए थे.

हमारे एक कुलपति अपने चाटुकारों द्वारा दुनिया भर में यह प्रचार करवाते रहते थे कि उनका नाम भौतिक शास्त्र के नोबल प्राइज के लिए पैनल में आ चुका है. यह बात दूसरी है कि हर साल कोई दूसरा ही इस पुरस्कार पर अपना कब्ज़ा कर लेता था. 

हमारे एक और कुलपति थे जिन्होंने यह हिदायत दे रखी थी कि हर कांफ्रेंस और हर सेमिनार में कुलपति, उनकी पत्नी व विशिष्ट अतिथियों को सुपर फाइन शाल भेंट किए जाएँ. मेरे हिसाब से तीन साल में उन्हें कमसे कम 400-500 शाल तो मिले ही होंगे। हो सकता है कि अब अवकशप्राप्ति के बाद उनकी शाल बेचने की खुद की दुकान हो. 

एक कुलपति को विश्वविद्यालय के हर समारोह में अपना 5 पृष्ठों वाला जीवन परिचय पढ़वाना बहुत अच्छा लगता था. उनके अवकशप्राप्ति से पूर्व ही हमको उनका जीवन परिचय कंठस्थ हो चुका था.
हमारे एक कुलपति कहा करते थे कि यूनिवर्सिटी तो वही अच्छी लगती है जिसके ऑफिस में और जिसके क्लास रूम्स में ताले जड़े हों. वो स्वयं छात्रों, अध्यापकों और छात्रेतर कर्मचारियों को हड़ताल करने के लिए उकसाते रहते थे. 

हर कुलपति के अपने चहेते 4-5 गुंडे अध्यापक होते थे जिनका काम कुलपति के विरोधियों और आलोचकों की खाट खड़ी करना होता था. लेक्चरर से लेकर प्रोफेसर्स तक का खुलेआम अपमान करने वाले कुलपति, छात्र नेताओं के समक्ष भीगी बिल्ली बने रहने में किसी प्रकार का संकोच नहीं करते थे. इन सावधानियों के बावजूद छात्र नेताओं से गाली खाना या उनके हाथों पिटाई हो जाना एक आम घटना मानी जाती थी. 

एक कुलपति महोदय महीने में 20 दिन सपत्नीक दौरे पर रहते थे. नैनीताल में रहते हुए भी शायद ही कभी उनके अपने घर का चूल्हा जला होगा। कहा जाता था कि उनके घर गैस सिलेंडर करीब एक साल चलता है।
हर कुलपति अपने कार्यकाल में 20-25 ऐसे लोगों का अध्यापक के रूप में चयन कर लेता था जिनको अपनी योग्यता के आधार पर चपरासी का पद मिलना भी मुश्किल हो सकता था. हम लोगों की इतनी हिम्मत तो नहीं होती थी कि अपने कुलपतियों की खुलेआम आलोचना कर सकें पर मन ही मन उनको इतनी गालियां और बद-दुआएं देते थे कि अगर भगवान उसके एक प्रतिशत पर भी अमल करता तो वो सब स-शरीर नरकगामी हो चुके होते।

अब मैं अवकाश प्राप्त कर चुका हूँ पर अब भी मुझे कुलपतियों की छवि और उनका स्मरण डराता है. मुझे बेचैन देखकर और नींद न आने की वजह से परेशान होते हुए देखकर मेरी स्वर्गीया माँ मेरे ख़यालों में आकर मुझे डराते हुए कहती है -'सो जा बेटा, नहीं तो तेरा कोई कुलपति बुला लूंगी।' आप विश्वास नहीं करेंगे पर मैं इसके बाद हमेशा डरकर सो जाता हूँ।



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