रविवार, 23 अगस्त 2015

चम्बल के पार


मार्च, 1994 में मुझे एम. ए. फाइनल, इतिहास के विद्यार्थियों को राजस्थान और आगरा, फतेहपुर सीकरी के टूर पर ले जाने का मौका मिला था. बच्चों की शरारतें, उनकी मस्तियाँ और उनकी जिंदादिली ने इस सफ़र को यादगार बना दिया था. राजस्थान में हमारा आखिरी पड़ाव चित्तौड़ गढ़ था. वहां से कोटा जाकर हमको कोटा-आगरा पैसेंजर पकडनी थी. हमारे कम्पार्टमेंट में कोटा जा रहा एक गुजराती नवदंपत्ति था, प्यारा सा लेकिन थोडा देहाती किस्म का. हमारे लड़के-लड़कियां इतने दुष्ट थे कि उनकी खिंचाई करते हुए उन्हीं के पकवान उड़ाए जा रहे थे. रास्ते में ट्रेन दो घंटे लेट हो गयी अब हमारे लिए मुश्किल था कि हम कोटा पहुंचकर कोटा-आगरा पैसेंजर पकड़ सकें. सहयात्रियों ने हमको सलाह दी कि हम चम्बल नदी से पहले ही एक स्टेशन पर उतर जाएँ. कोटा-आगरा पैसेंजर वहां से गुज़रती थी इसलिए हम वहीँ से उसपर सवार हो सकते थे. हमारे पास टिकट तो पहले से ही थे. स्टेशन आने पर हमने सामान उतारना शुरू किया कि ट्रेन चल पड़ी. जल्दी-जल्दी सामान उतारने में एक लड़की का सूटकेस ट्रेन में ही छूट गया. सारे टूर का मज़ा जाता रहा. पीड़ित लड़की से ज्यादा तो मैं दुखी था. पहला एजुकेशनल टूर और उस में ऐसा हादसा. स्टेशन पर एक गुड्स ट्रेन कोटा जाने के लिए तैयार खडी थी. उसके गार्ड स्मार्ट से एक सरदारजी थे, उन्होंने सलाह दी कि अब उस सूटकेस को भुलाकर बच्चे कोटा-आगरा पैसेंजर में चढ़ जाएँ और मैं सूटकेस की तलाश में उनके साथ उनकी गुड्स ट्रेन में कोटा के लिए चल दूं. हो सकता था कि कोई सहयात्री इतना मेहरबान हो कि उस सूटकेस को जीआरपी थाने में जमा करवा दे. यही तै हुआ. बच्चे उसी स्टेशन से कोटा-आगरा पैसेंजर में सवार करा दिए गए. आगरा में हमको आगरा फोर्ट के पास जैन धर्मशाला में टिकना था. मैंने अपने ग्रुप के सबसे स्मार्ट लड़के की यह ड्यूटी लगाई कि वो आगरा में सबको लेकर जैन धर्मशाला पहुंचे और मेरे वहां पहुँचने तक आगे के कार्यक्रम का इंतज़ार करे. मैंने पहली बार गुड्स ट्रेन में सफ़र किया वह भी बिलकुल खुले से केबिन में कुर्सी पर बैठकर. खुले केबिन में बैठकर चम्बल नदी पार करना एक रोमांचक अनुभव था. ट्रेन के गार्ड सरदारजी, इंडियन रेलवेज की हॉकी टीम से खेल चुके थे. उनके साथ तीस मिनट का छोटा सा सफ़र बड़ा यादगार रहा. हम कोटा पहुंचे तो सरदारजी मुझे जीआरपी थाने लेकर पहुंचे. वहां एक दीवानजी ऊंघते हुए मिले. सरदारजी ने मेरी व्यथा उन्हें सुनाई. दीवानजी ने कहा –


’हाँ एक गुजराती जोड़ा एक सूटकेस जमा तो करा गया है. आधे घंटे के करीब उन लोगों ने आप का इंतज़ार भी किया पर फिर वो अपने घर चले गए.’


यह सुनकर मेरी तो मानो लाटरी लग गयी. मैंने सूटकेस का रंग. उसका साइज़ और उसका ब्रांड बताया तो दीवानजी ने सरदारजी के कहने पर बिना लिखा-पढ़ी के सूटकेस मेरे हवाले कर दिया. मैं सरदारजी को धन्यवाद देने लगा तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर मुझे घसीटते हुए कहा –


‘थैंक यू बाद में गुरूजी, पहले मैं आपको अहमदाबाद-निजामुद्दीन एक्सप्रेस में चढ़ा दूँ. आप जल्दी से श्री महावीरजी तक का टिकट ले आइये. आपकी यह ट्रेन, कोटा-आगरा पैसेंजर से पहले वहां पहुँच जाएगी. श्री महावीरजी पर उतरकर आप कोटा-आगरा पैसेंजर में बैठ जाइएगा.’

सरदारजी ने अहमदाबाद-निजामुद्दीन एक्सप्रेस की चेयर कार के टीटीई से कहकर बिना रिजर्वेशन ही उसमें मुझे बिठवा दिया. रात के तीन बजे मैं श्री महावीरजी स्टेशन पर उतर गया. मेरे पास कोटा-आगरा पैसेंजर का टिकट तो था ही. कोटा-आगरा पैसेंजर पहुँचते ही मैं उसमें सवार हो गया. सुबह की रौशनी में आगरा से पहले ईदगाह स्टेशन पर मैंने बच्चों वाला डिब्बा भी खोज लिया. फिर ऐसा नज़ारा हुआ जो मैंने ज़िन्दगी में कभी नहीं देखा था. सूटकेस के साथ मुझे देखकर बच्चे मुझसे लिपटकर रो भी रहे थे, हंस भी रहे थे और मेरी जैसे भारी-भरकम शख्सियत को गोद में उठा भी रहे थे. मैं भी बिला-तकल्लुफ, हवा में लटका हुआ, रोये जा रहा था, रोये जा रहा था. आगरा में सूटकेस मिलने का जश्न मनाया गया और आगे भी अल्मोड़ा वापस पहुँचने तक हम सब जश्न मनाने के ही मूड में रहे पर उस गुजराती जोड़े और सरदारजी को अपने साथ न पाकर हमारी खुशी अधूरी रह गयी थी. हमारे पास न तो गुजराती नवदंपत्ति का कोई पता-ठिकाना था और न ही सरदारजी का. हम कैसे उनका एहसान चुका सकते थे? शायद किसी अपरिचित की ऐसे ही मदद कर के उनका क़र्ज़ किसी हद तक चुकाया जा सकता था. आज भी वो गुजराती जोड़ा और सरदारजी मेरे दिल में बसे हुए हैं. उनके बारे में सोचता हूँ तो लगता है कि कबीर ठीक ही कहते हैं. दुनिया में बुरे लोगों की खोज करना बेकार है, हो सकता है कि हमको कोई बुरा न मिले बल्कि रास्ते में कोई नारायण मिल जाए.

2 टिप्‍पणियां:

  1. नेताओं की छत्र छाया से बचा हुआ हर आदमी हमारे देश में इंसान है । नेता के संम्पर्क में आते ही भगवान हो जाता है । आप भाग्यशाली रहे ।

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  2. भगवान् बचाए इन नेता रुपी भगवानों से. निस्स्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करनेवाले इंसानों के एकाद ऐसे ही प्रेरणादायक प्रसंग तुम्हारी सेवा में जल्द ही प्रस्तुत किये जायेंगे.

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