नेहरूजी और इंदिरा गाँधी के मंत्रिमंडल के सदस्य के रूप में श्री महावीर त्यागी ने एक सफल प्रशासक के रूप में ख्याति प्राप्त की थी. लेखक और पत्रकार त्यागीजी का नाम गाँधीवादी आन्दोलनकारियों में बड़े आदर से लिया जाता है. प्रथम विश्वयुद्ध में त्यागीजी ब्रिटिश भारतीय सेना में भर्ती हुए थे लेकिन जलियांवालाबाग हत्याकांड के बाद उन्होंने सेना से त्यागपत्र दे दिया जिसके कारण उनका कोर्टमार्शल भी हुआ था. गांधीजी के आंदोलनों में भाग लेने के कारण त्यागीजी कुल 11 बार जेल गए थे. यह प्रसंग 1930 का है. नमक बनाने और उसे बेचने का एकाधिकार सरकार के पास सुरक्षित था. इस शोषक कानून के कारण नमक की असली कीमत से उसका बाज़ार भाव 40 गुना था. महंगे नमक को न तो गरीब आदमी अपने प्रयोग के लिए पर्याप्त खरीद पाता था और न ही वो अपने मवेशियों को उसे दे पाता. कम नमक मिलने के कारण मनुष्यों और मवेशियों के शरीर में आयोडीन की कमी हो जाती थी जिसके परिणामस्वरूप उन्हें घेंघा और कई अन्य घातक रोग हो जाते थे. मार्च, 1930 में गांधीजी ने भारत को पूर्ण स्वराज्य दिए जाने की मांग को लेकर अँगरेज़ सरकार के इस सबसे शोषक और अमानवीय कानून ‘नमक कानून’ को तोड़ने का निश्चय किया था.
देहरादून में इस आन्दोलन का नेतृत्व त्यागीजी कर रहे थे. आन्दोलनकारी किसी सार्वजनिक स्थल पर आग जलाकर एक बड़े कड़ाह में पानी में नमक डाल कर उसे उबालते थे और जब पानी जलकर केवल नमक शेष रह जाता था तो उसे एक पुड़िया में एकत्र कर लेते थे. बाद में नमक कानून तोड़कर इस नमक को बेचा जाता था. पुलिस नमक कानून तोड़ने वालों को गिरफ्तार कर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करती थी. आन्दोलनकारी अपना जुर्म कुबूल कर लेता था और उसे दण्डित कर जेल भेज दिया जाता था. त्यागीजी को देहरादून के एक चौराहे पर नमक बनाते हुए पुलिस ने गिरफ्तार कर, नमक की पुड़िया सहित मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया. मजिस्ट्रेट एक भारतीय थे. मजिस्ट्रेट साहब ने त्यागीजी से नमक कानून तोड़ने के अपराध के विषय में पूछा तो उन्होंने अपना अपराध स्वीकार नहीं किया, उल्टे यह कहा कि जो सफ़ेद चूर्ण पुलिस ने कड़ाह में से बरामद किया है वो नमक है ही नहीं. त्यागीजी जैसा बार-बार जेल जाने के लिए तैयार बैठा आन्दोलनकारी अपना ऐसा झूठा बचाव करेगा, ऐसी किसी को आशा नहीं थी. मजिस्ट्रेट साहब ने त्यागीजी से कहा –
‘ आप नमक ही बना रहे थे. आपने नमक कानून तोड़ा है, आप अपना जुर्म कुबूल क्यूँ नहीं कर लेते?’
त्यागीजी ने कहा – जनाब जो पाउडर पुलिस को मौक़ा-ए-वारदात पर मिला है वो नमक है ही नहीं. इसलिए मैंने नमक कानून नहीं तोड़ा है.’
मजिस्ट्रेट ने कहा – ‘लेकिन ये तो नमक ही लग रहा है.’
त्यागीजी ने कहा – ‘आप इसे चखकर देख लीजिये. ये नमक नहीं है.’
मजिस्ट्रेट ने पुड़िया में रखे उस सफ़ेद पाउडर पर ऊँगली लगाकर अपनी जीभ पर रखी और फिर नाराज़ होकर उन्होंने त्यागीजी से कहा – ‘आप खुद को बचाने के लिए झूठ बोल रहे हैं? ये तो नमक ही है.’
त्यागीजी ने मुस्कुराते हुए कहा – ‘जी हाँ यह नमक ही है. मैं नमक कानून तोड़ने का अपना जुर्म कुबूल करता हूँ. मजिस्ट्रेट साहब, अब तक आपने अंग्रेजों का नमक खाया था पर आज आपने गाँधी का नमक खाया है. गाँधी के नमक के साथ नमक हरामी मत कीजियेगा.’
मजिस्ट्रेट साहब ने त्यागीजी को नमक कानून तोड़ने के अपराध में सज़ा देकर जेल भेज दिया पर फिर गाँधी के नमक का हक अदा करने के लिए उन्होंने खुद सरकारी सेवा से त्यागपत्र दे दिया.
रोचक प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रोफ़ेसर सुशील जोशी.
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सरकार भरोसे नौजवान - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन में सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद.
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