शुक्रवार, 1 जुलाई 2016

बेटे का फ़र्ज़

बेटे का फ़र्ज़  –
लगभग साठ-बासठ साल पहले की बात है. उन दिनों मेरे पिताजी उत्तर प्रदेश के बिजनोर जिले में पोस्टेड थे. उनके साथ ही वहां कार्यरत थे, हमारे नायक, डिप्टी कलक्टर मौलाना फ़तेह अली बेग साहब. बेग साहब सबको बताया करते थे कि उनके पुरखे ईरान से आए थे और वो बेगम नूरजहाँ के खानदान से थे.
बादशाह जहाँगीर की चहेती बेगम नूरजहाँ ने हिंदुस्तान को बहुत कुछ दिया है, मसलन गुलाब के इत्र की ईजाद उन्होंने ने ही की थी, फ़ैशन डिजाइनिंग में तो आज भी उनका कोई सानी नहीं है और अपने वालिद एत्मात-उद-दौला तथा अपने शौहर बादशाह जहाँगीर के खूबसूरत मकबरे भी उन्होंने ही बनवाए थे. लेकिन इतिहास में उनका सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने रिश्वत को ‘नज़राना’ के रूप में प्रतिष्ठित कर उसे प्रशासन और समाज में एक सम्मानजनक स्थान दिलाया था.
हमारे बेग साहब अपनी पुरखिन बेगम नूरजहाँ के नक्शे-क़दम पर चलकर हर एक गरज़मंद से ‘नजराना’ लेना अपना हक़ ही बल्कि अपना फ़र्ज़ समझते थे. बेग साहब ने अपना कैरियर कानूनगो से शुरू किया था. बड़े-बड़े हाकिमों की जूतियाँ उठाते हुए उन्होंने निर्बाध रूप से प्रमोशन हासिल किए और रिटायर होने से कुछ साल पहले वो डिप्टी कलक्टर के ओहदे पर पहुँच गए थे. बेग साहब ने अपने आला हाकिमों के तमाम घपलों को सफलतापूर्वक इति-सिद्धम् तक पहुँचाया था और इस बहती गंगा में निरंतर अपने भी हाथ धो-धो कर उन्होंने अपने लिए भी संपत्ति का एक पहाड़ जमा कर लिया था.
बेग साहब की संपत्ति के पहाड़ में सबसे ज्यादा कीमती थे हीरे, जवाहरात और सोने के बेशुमार गहने, इसके अलावा सौ-सौ से लेकर दस-दस के नोटों की पता नहीं कितनी गड्डियां उसमें थीं. बैंक के लाकर में गहने रखने का तब शायद ज्यादा चलन नहीं था या फिर बेग साहब को लाकर पर छापा पड़ने का डर रहता था, इसलिए वो अपनी धर्म की कमाई को अपने पलंग के नीचे, ज़ंजीरों और अलीगढ़ी तालों से बंधी एक बेहद मज़बूत तिजोरी में रखते थे और उस तिजोरी की चाबी को हमेशा घर में ही रहने वाली उनकी अस्सी साल की अम्मी अपने गले में सोने की एक मोटी सी हंसली में लटकाए रहती थीं.       
ज्यों-ज्यों बेग साहब के रिटायरमेंट के दिन नज़दीक आ रहे थे, उनके नज़राने का रेट बढ़ता जा रहा था लेकिन परेशानी की बात यह थी कि अब इस लूट में उन्होंने मिल-बाँट कर खाने की लोक-सम्मत व्यवस्था को ताक पर रखकर सारा माल खुद ही हड़पने की खतरनाक नीति अपना ली थी. कर्त्तव्य-परायण, कर्मठ अधीनस्थ कर्मचारियों और मुस्तैद पुलिस वालों को यह नई व्यवस्था बिलकुल भी रास नहीं आ रही थी. उन्होंने बेग साहब से विनम्र निवेदन किया कि वो इस सरकारी लूट में उनको भी हिस्सा देते रहें पर बेग साहब नहीं पसीजे, उलटे उन्होंने अपने अधीनस्थ कर्मचारियों, दीवानजियों, दरोगाओं और यहाँ तक कि कोतवाल साहब को भी अपनी-अपनी औक़ात में रहने की सीख भी दे डाली.
कोतवाल साहब को बेग साहब की डांट-फटकार क़तई हज़म नहीं हुई. उन्होंने शहर के सबसे नामी सेंधमार चोर को तलब किया और फिर उससे उन्होंने बेग साहब की तिजोरी से माल उड़ाने की रणनीति पर सविस्तार चर्चा की.
और फिर अनहोनी हो गई. एक रात बेग साहब के यहाँ किसी ने उनकी अम्मी के शयन कक्ष की दीवाल में सेंध मारकर एक बड़ा सा प्रवेश द्वार बना दिया था. वो भी तब जब कि उनका पूरा कुनबा घर में ही मौजूद था. बेग साहब के पूरे घर में एक अजीब सी नशीली गंध आ रही थी. उस रात घर में जो भी मौजूद था वो सूरज चढ़ने तक भी सो रहा था. बेग साहब की अम्मी के गले में तिजोरी की चाबी पहले की तरह ही पड़ी हुई थी, तिजोरी अभी भी तालों और ज़ंजीरों से जकड़ी हुई थी पर जब तिजोरी को चाबी लगा कर खोला गया तो वह पूरी तरह खाली थी.
पूरे बिजनौर में कोहराम मच गया. कोतवाल साहब अपने दल-बल के साथ मुस्तैदी से तफ्तीश में जुट गए. सबसे ख़ास बात यह थी कि चोरों ने तिजोरी के माल के अलावा घर में रक्खे कीमती से कीमती सामान को हाथ भी नहीं लगाया था. बेग साहब के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं, उनकी बेगम साहिबा छाती पीट-पीट कर और उनकी अम्मी सर पटक-पटक कर रो रही थीं. कोतवाल साहब खुद अपनी निगरानी में चोरी हुए ज़ेवरात और नोटों के बंडलों की फेहरिस्त बनवा रहे थे. बेग साहब चोरी हुए सामान की फेहरिस्त तैयार करते वक़्त बोल कम रहे थे और अपनी बेगम साहिबा व अपनी अम्मी को चोरी हुए सामानों के बारे में बोलने से रोक ज़्यादा रहे थे. खैर चोरी हुए सामान की फेहरिस्त तैयार हुई. चालीस तोले के क़रीब सोने के ज़ेवर, दो-चार हीरे-मोती के हार, झुमके और दस हज़ार के क़रीब की नक़दी, बस इतने की ही चोरी लिखवाने  की उनकी हिम्मत हो पाई थी. बेग साहब की अम्मी चोरी हुए सामान की फेहरिस्त में चिल्ला-चिल्ला कर पता नहीं क्या-क्या जुडवाना चाह रही थीं पर बेग साहब के इशारे पर उनकी बेगम ने अम्मीजान का मुंह अपने हाथ से दबाकर उन्हें चुप होने के लिए मजबूर कर दिया.            
कोतवाल साहब ने एक कुटिल मुस्कान के साथ बेग साहब से कहा –
‘हुज़ूर आप जैसी शाही शख्सियत के यहाँ इतनी अदना सी चोरी क्या मायने रखती है. पर आप इत्मीनान रखिए दो दिन में ही चोरी किया हुआ सारा माल बरामद करके आपके सामने न रख दिया तो आप मुझे कोतवाल से हेड कांस्टेबल बनवा दीजिएगा.’
वाक़ई कोतवाल साहब ने दो दिन के अन्दर ही चोर पकड़ लिया और उससे सारा माल भी बरामद कर लिया. कोतवाली में बरामद किया हुआ सारा सामान मेजों पर सजा-सजा कर डिस्प्ले किया गया था. बेग साहब को अपने सामान की शिनाख्त करने के लिए बुलाया गया. कांपते हुए बेग साहब मेज़ों पर सजे लाखों के उस सामान को देख रहे थे जो सारा का सारा उन्हीं का था लेकिन उन्होंने चोरी हुए सामान की जो फेहरिस्त दी थी वो तो सिर्फ तीस-चालीस हज़ार के सामान की और दस हज़ार नक़दी की थी.
फेहरिस्त में लिखाया गया सारा सामान कानूनी कार्रवाही के बाद बेग साहब को सौंप दिया गया. कोतवाल साहब ने सबको बताया कि इस वारदात की रात को ही एक स्थानीय सेठ के यहाँ भी सेंध लगाकर इसी चोर के गैंग ने एक बहुत बड़ी चोरी की थी और डिप्टी साहब के चोरी हुए माल के अलावा जो भी सामान नुमाइश में लगा है, वह उसी सेठ का है. यह बात दूसरी थी कि पूरे बिजनौर में वह सेठ चोरों का लाया हुआ सोना गला कर बेचने वाला एक टुटपुंजिया सुनार  और पुलिस के दलाल के नाम से मशहूर था.  
बेग साहब को उनका माल सौंप दिया गया और नुमाइश में रक्खा हुआ बाक़ी सामान कागज़ी तौर पर उस सेठ को दे दिया गया.
फेहरिस्त के हिसाब से चोरी हुए सारे सामान को वापस पाकर भी बेग साहब के चेहरे पर मातम ही छाया हुआ था. वो मायूस और ग़मगीन होकर अपने घर लौट ही रहे थे कि कोतवाल साहब ने उनका रास्ता रोक कर कहा –
‘हुज़ूर आपकी एक ऐसी नायाब चीज़ मिली है जिसे आप चोरी हुए सामान की फेहरिस्त में शामिल करना भूल गए थे. इसके लिए तो मैं आप से इनाम लेकर रहूँगा.’
बेग साहब को हीरों का अपना बेशकीमती हार याद आ गया. उसे फिर से हासिल करने की उम्मीद में उन्होंने आज़िज़ी के साथ कोतवाल साहब का हाथ पकड़ते हुए कहा –
‘कोतवाल साहब, मैं आप को मालामाल कर दूंगा. बस मेरी वो कीमती चीज़ मुझे दिलवा दीजिए.’
कोतवाल साहब ने आवाज़ देकर एक सिपाही से उस नायाब चीज़ को लाने को कहा. कपड़े से ढकी एक बड़ी सी चीज़ को बेग साहब के सामने रक्खा गया इस बड़ी सी चीज़ देखकर बेग साहब को अपना हीरों का हार वापस मिलने की उम्मीद तो नहीं रही पर अब उन्हें यकीन हो गया कि यह उनकी रत्न-जटित सोने की सुराही होगी. उन्होंने बड़ी बेसब्री से उस चीज़ पर से कपड़ा हटाया तो देखा कि अल्यूमिनियम का एक दचका सा, बड़ा पुराना सा टोंटीदार अकबरी लोटा है.
कोतवाल साहब ने मुस्कुराते हुए कहा –

‘हुज़ूर आपकी अम्मीजान ने बताया था कि वो जिस लोटे से वज़ू करके नमाज़ पढ़ती थीं वो चोर ले गए थे. बड़ी मेहनत-मशक्कत के बाद उस कमबख्त चोर से यह लोटा बरामद हुआ है. आपकी अम्मीजान इस लोटे को वापस पाकर बहुत खुश होंगी. उन्हें मेरा सलाम कहिएगा और बताइएगा कि उनके कोतवाल बेटे ने बेटा होने का अपना फ़र्ज़ निभा दिया है.’                                                                                                          

5 टिप्‍पणियां:

  1. कहानी जैसे अभी की मेरे साथ के बेग साहबों और कोतवालों की लग रही है :)

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  2. ये दुनिया बेग साहबों और कोतवाल साहबों से भरी पड़ी है. हाँ, अब कुछ सेंध-मार चोर नेता भी बन गए हैं.

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  3. बहुत बढिया कहानी आज के हालात की।

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  4. आशाजी, यह कहानी नहीं है, बल्कि पुराने ज़माने में हुई एक सत्य-घटना है. यह बात दूसरी है कि भ्रष्टाचार की पुरानी कहानियां लौट-फिर के हमारे आस-पास जीवंत होती रहती हैं.

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  5. आशाजी, यह कहानी नहीं है, बल्कि पुराने ज़माने में हुई एक सत्य-घटना है. यह बात दूसरी है कि भ्रष्टाचार की पुरानी कहानियां लौट-फिर के हमारे आस-पास जीवंत होती रहती हैं.

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