फेसबुक पर ‘हिंदी कविता’ में उदधृत ज़रीफ़ जबलपुरी की नज़्म में फिल्मों में ‘उल्फ़त कैसे हो सकती है’, इसके नुस्खों पर कुछ रौशनी डाली गई है. पर भूल से या जानबूझ कर इसमें जो नुस्खे छोड़ दिए गए हैं उन्हें आप सबके सामने मैं पेश कर रहा हूँ -
कलामंडी में बन्दर को, हरा पाओ, तो उल्फ़त हो,
अगर तुम बे-वजह नगमा सुना पाओ, तो उल्फ़त हो.
अगर बुर्का पहन, घर उसके घुस जाओ, तो उल्फ़त हो,
हदें, बेशर्मियों की, पार कर जाओ, तो उल्फ़त हो.
कभी शम्मी, कभी इमरान बन पाओ, तो उल्फ़त हो,
हुनर जूडो-कराते का, दिखा पाओ, तो उल्फ़त हो.
अगर रफ़्तार के जल्वे दिखा पाओ, तो उल्फ़त हो,
अगर कुछ डांस के करतब दिखा पाओ, तो उल्फ़त हो.
अगर तालीम से, पीछा छुड़ा पाओ, तो उल्फ़त हो,
गुनहगारों में, अपना नाम कर पाओ, तो उल्फ़त हो.
अगर अन्त्याक्षरी में, मात दे पाओ, तो उल्फ़त हो,
पहनकर शेरवानी, शेर कह पाओ, तो उल्फ़त हो.
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 12 सितम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं'5 लिंकों का आनंद' के 12 सितम्बर, 2016 के अंक में मेरी रचना सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद यशोदाजी. 'मेरी चाहत यही है, पाठकों को मुझसे उल्फ़त हो '
जवाब देंहटाएंलेखकों/पाठकों को भी
हटाएंअपना प्यार दो प्यार लो :)
हर जगह हर किसी के ब्लाग पर
आपकी फोटो एक टकींं हो
फिर देखिये अपना जलवा
ब्लॉग पर दोस्ती और फ़ोटो का काम बिटिया को सौंपा है. वो छुट्टी मनाने बाहर गई है. लौटकर यह काम करेगी.
हटाएंबढ़िया जी ।
जवाब देंहटाएंमेरी ब्लाग सूची को बढ़ाइये
जवाब देंहटाएंब्लागों को जोड़ते चले जाइये
खाली 'उलूक' को ही
हरी लाल मिर्ची ना खिलाइये ।
उलूक तो अपना है ही, औरों को भी अपनाने वाला हूँ. लोगों से ज़्यादा से ज़्यादा जुड़ो और कुछ अपनी कहो, कुछ उनकी सुनो तो अच्छा लगता है.
हटाएंअरे देवानंद जी की फोटो आज आज की हलचल पर छपी है हम तो सलाम ठोक कर आ रहे हैं आप की टिप्पणी वहाँ नहीं दिखी ।
हटाएं