हिंदी दिवस -
सूर की राधा दुखी, तुलसी की सीता रो रही है।
शोर डिस्को का मचा है, किन्तु मीरा सो रही है।
सभ्यता पश्चिम की, विष के बीज कैसे बो रही है ,
आज अपने देश में, हिन्दी प्रतिष्ठा खो रही है।।
हाय ! माँ, अपने ही बेटों में, अपरिचित हो रही है।
बोझ इस अपमान का, किस शाप से वह ढो रही है?
सिर्फ़ इंग्लिश के सहारे भाग्य बनता है यहाँ,
देश तो आज़ाद है, फिर क्यूं ग़ुलामी हो रही है?
हिंदी पखवाड़ा -
आज माँ की दुर्दशा पर, पुत्र अविरल रोएगा,
उसके अधिकारों की खातिर, चैन अपना खोएगा.
बोझ हिंदी भक्त का, पन्द्रह दिनों तक ढोएगा,
फिर मदर इंग्लिश के, चरणों में पड़ा, वह सोएगा.
सूर की राधा दुखी, तुलसी की सीता रो रही है।
शोर डिस्को का मचा है, किन्तु मीरा सो रही है।
सभ्यता पश्चिम की, विष के बीज कैसे बो रही है ,
आज अपने देश में, हिन्दी प्रतिष्ठा खो रही है।।
हाय ! माँ, अपने ही बेटों में, अपरिचित हो रही है।
बोझ इस अपमान का, किस शाप से वह ढो रही है?
सिर्फ़ इंग्लिश के सहारे भाग्य बनता है यहाँ,
देश तो आज़ाद है, फिर क्यूं ग़ुलामी हो रही है?
हिंदी पखवाड़ा -
आज माँ की दुर्दशा पर, पुत्र अविरल रोएगा,
उसके अधिकारों की खातिर, चैन अपना खोएगा.
बोझ हिंदी भक्त का, पन्द्रह दिनों तक ढोएगा,
फिर मदर इंग्लिश के, चरणों में पड़ा, वह सोएगा.
गुड गुड :)
जवाब देंहटाएंआज 'गुड़, गुड' नहीं चलेगा. 'सुन्दर' अथवा 'बहुत अच्छा' जैसा कुछ लिखो.
जवाब देंहटाएंअप्रतिम..
जवाब देंहटाएंसादर
प्रशंसा के लिए धन्यवाद यशोदाजी. आपकी अनुमति के बिना ही अपनी यह कविता मैंने आपके ब्लॉग पर भी पोस्ट कर दी है.
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जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 15 सितम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं'हलचल' से जुड़कर मुझे प्रसन्नता होगी. मेरी रचना आप के माध्यम से सुधी पाठकगण तक पहुंचे, इस से अच्छी बात और क्या हो सकती है? मैं नियमित रूप से आपके ब्लॉग से जुड़ा रहूँगा.
जवाब देंहटाएंआपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति ब्लॉग बुलेटिन - हिन्दी दिवस में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
जवाब देंहटाएं'ब्लॉग बुलेटिन - हिंदी दिवस' में मेरी कविताओं को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद हर्षवर्धनजी. जय हिंदी.
हटाएंबेहतरीन...... बहुत सुंदर.... शब्द संयोजन कमाल का है प्रवाहमय
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद झा साहब. शास्त्रीय मापदंड पर मेरी कविता तो कहीं नहीं टिकती होगी पर चूँकि यह दिल से निकली है, इसलिए शायद आप लोगों को अच्छी लगी है.
हटाएंटिप्पणी देने में कंजूसी करने से बचें जहाँ जहाँ आप की कृति को सम्मान दिया जाता है बस एक आभार ही तो कहना होता है जा कर कहें :)
जवाब देंहटाएंहर टिप्पणी का प्यार से जवाब दे रहा हूँ और अब अनेक ब्लॉग से भी जुड़ रहा हूँ. लगता है कि सुशील बाबू मेरा रचनात्मक एकांतवास समाप्त कर के ही मानेंगे.
हटाएं:) जी आपको धनिये के पेड़ पर चढ़ाने का मेरा कोई मकसद नहीं है आप का लेखन आप की भाषा शैली और शब्दों का चयन सच में लाजवाब है और ज्यादा से ज्यादा पाठकों तक वहाँ पहुँचना ही चाहिये जहाँ बहुत सारा कूड़ा परोसा जा रहा हो ।
हटाएंअपने संस्मरण प्रकाशित हो जायं तो मज़ा आ जाय. शायद तुम जैसे कद्रदानों की दुआ काम कर जाए और हम भी छप जाएं. वैसे विभिन्न ब्लॉग से संपर्क करने का तुम्हारा मशवरा तो मेरा जन-संपर्क बढ़ाने का काम तो कर ही रहा है.
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