सिसक-सिसक गेंहू कहें,
फफक-फफक कर धान,
खेतों में फ़सलें नहीं,
उगने लगे मकान.
(कुंवर बेचैन)
कवि से मेरा प्रश्न -
खेतों में उगते मकान, क्यों आप दुखी हैं,
देश प्रगति कर रहा, देख, नृप बड़े सुखी हैं.
फ़सलों का रोना क्यूं रोएँ, उस महफ़िल में,
जहाँ छलकते जाम, थिरकती, चन्द्रमुखी हैं.
फफक-फफक कर धान,
खेतों में फ़सलें नहीं,
उगने लगे मकान.
(कुंवर बेचैन)
कवि से मेरा प्रश्न -
खेतों में उगते मकान, क्यों आप दुखी हैं,
देश प्रगति कर रहा, देख, नृप बड़े सुखी हैं.
फ़सलों का रोना क्यूं रोएँ, उस महफ़िल में,
जहाँ छलकते जाम, थिरकती, चन्द्रमुखी हैं.
छलकाये जा गाना याद आ रहा है :)
जवाब देंहटाएंप्रश्न वाजिब है । बैचेन ने बैचेनी में लिख दिया होगा । आप पूछते रहिये ।
सवाल तो हम पूछते रहेंगे, कुंवर बेचैन चाहे उत्तर दें या न दें. लेकिन उनका दुखी होना वाजिब है.
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