सोमवार, 16 अक्टूबर 2017

नयी सुबह



बाल कथा
नयी सुबह
अलका सात साल की,  सुन्दर सी,  नटखट पर जि़द्दी लड़की थी। अलका के पापा साइंटिस्ट थे,  रिसर्च के सिलसिले में पिछले तीन साल से वह लन्दन में थे। इन तीन सालों से अलका को पालने की जि़म्मेदारी सिर्फ़ उसकी मम्मी की थी। यूं तो उसकी मम्मी छुट्टियों में उसे लेकर कभी उसके दादाजी के यहाँ तो कभी उसके नानाजी के यहाँ रहने चली जाती थीं पर ज़्यादातर दोनों माँ-बेटी अकेले ही अपने घर में रहते थे। अलका की मम्मी उसे बहुत प्यार करती थीं। अलका के पापा विदेश में थे इसलिए उनके हिस्से का प्यार भी उसे अपनी माँ से ही मिलता था। माँ के ज़रूरत से ज़्यादा लाड-प्यार ने उसे अव्वल दर्जे की जि़द्दी और आलसी बना दिया था। बिस्तर पर लेटे-लेटे अलका रानी आवाज़ लगातीं तो मम्मी दौड़कर उनके सामने खड़ी हो जातीं और फ़ौरन उनके हुक्म के मुताबिक उनकी मनपसन्द चीज़ हाजि़र कर देतीं। सात साल की हो जाने पर भी अलका अपना कोई भी काम खुद नहीं करती थी। बस, ‘ मम्मी मुँह धोना है  कहो तो,  मम्मी टूथ-ब्रश और टूथ-पेस्ट लेकर हाजि़र,  मम्मी भूख लगी है कहो तो मम्मी उसकी पसन्द का खाना लेकर हाज़िर,   इतना ही नहीं वह उसे अपने हाथों से खाना खिला भी देती थीं। अक्सर अलका का होमवर्क भी उसकी मम्मी कर देती थीं। अलका का कोई दोस्त नहीं था। उसके साथ के बच्चे उसे पसन्द नहीं करते थे,  वो उसे मम्मी की पैट डॉल कह कर चिढ़ाते थे । अलका भी अपनी उम्र के बच्चों के साथ बैडमिन्टन, क्रिकेट या आइस-पाइस खेलने की जगह अपनी मम्मी के साथ कैरम,  वीडियो गेम्स खेलना या टीवी देखना ही पसन्द करती थी।
                अलका बहुत खुश थी क्योंकि लन्दन से आज उसके पापा वापस भारत आ रहे थे। तीन साल से उसने अपने पापा को सिर्फ़ फ़ोटोग्राफ़्स में देखा था या फ़ोन पर उनसे बात की थी। अलका जानती थी कि उसके पापा उसे बहुत प्यार करते हैं। लन्दन से आए दिन वह उसके लिए गिफ़्ट्स भेजते रहते थे और बहुत प्यारे-प्यारे लैटर्स भी। एअरपोर्ट पर पापा को प्लेन से उतरते देखकर वह उड़कर उनके पास पहुँचना चाहती थी पर उसे उनके आने का इन्तज़ार करना पड़ा। पापा ने देखते ही उसे गोदी में उठा लिया पर कुछ देर बाद ही उन्होंने उसे उसका गिफ्ट देकर गोदी से उतार दिया और लगे मम्मी से बातें करने। उन्हें तो अलका की उंगली पकड़ कर चलने का भी खयाल नहीं आया। आज मम्मी भी अलका की तरफ़ ध्यान देने की जगह बस,  पापा से ही बातें किए जा रही थीं।
                सब लोग घर पहुँचे। घर को दुल्हन की तरह सजाया गया था,  ऐसी डैकोरेशन तो उसके बर्थ-डे पर भी नहीं की गई थी। डिनर का टाइम हो गया था। डायनिंग-टेबिल पर तरह-तरह के पकवान सजे थे, पापा की सभी फ़ेवरिट डिशेज़ थीं पर उसकी पसन्द की एक भी डिश नहीं थी। मम्मी ने आज तीन प्लेट्स लगाई थीं। एक पापा की,  एक अपनी और एक अलका की। अलका ने अलग प्लेट में कभी खाना खाया ही नहीं था। वह मम्मी की प्लेट में ही खाती थी वह भी उन्हीं के हाथ से।  मम्मी-पापा मज़े ले-ले कर खा रहे थे पर अलका ने खाने को हाथ भी नहीं लगाया था। मम्मी ने सिर झुकाए बैठी उदास अलका की परेशानी समझ ली थी पर जानकर भी वह अनजान बनी हुई थीं उधर पापा उससे पूछ रहे थे-
बेटे! क्या तबियत खराब है ? तुम खाना क्यों नहीं खा रही हो?“
अलका पापा को क्या जवाब देती? न पिज़ा,  न चाउमीन,  न सैण्डविचेज़ और न ही आइसक्रीम,  खाने के लिए बस थे-  कढी-चावल,  मक्के की रोटी,  सरसों का साग,  बाजरे के लड्डू और स्टुपिड रबड़ी। ऊपर से इस कबाड़ को खुद अपने हाथों खाना था। पापा को बिना जवाब दिए अलका चुपचाप सोने चली गई।
पापा के आते ही अलका को अलग कमरे में सुला दिया गया। उसे पापा के आने का कबसे इन्तज़ार था पर जब वह आ गए तो उसे सब कुछ खराब-खराब ही लग रहा था। सुबह मम्मी ने उसे खुद पेस्ट करने के लिए कह दिया। स्कूल जाने के लिए उसे ड्रेस तो दी गई पर उसे पहनना खुद ही पड़ा। अलका स्कूल से लौटी तो उसके साथ कैरम खेलने या टीवी देखने का समय भी मम्मी के पास नहीं था। अलका के हाथ में लूडो का बोर्ड देखकर उसके पापा उससे पूछ रहे थे –
अलका क्या तुम्हारे फ्रेन्ड्स नहीं हैं?  तुम्हें उनके साथ जाकर आउटडोर गेम्स खेलने चाहिए।
अलका को मम्मी पर बहुत गुस्सा आ रहा था,  वह अब उसका कोई काम ही नहीं कर रही थीं और पापा तो उसकी सारी परेशानियों की जड़ थे। जब से आए थे उसे और मम्मी को उपदेश ही दिए जा रहे थे। उन्होंने आते ही उसे मम्मी के कमरे से हटा दिया था। न्यूट्रशस फ़ूड के बहाने उसकी मनपसन्द डिशेज़ बनवाना बन्द करा दी थीं। सुबह उसे बहुत जल्दी उठना पड़ रहा था। उसे खुद अपने हाथों से खाना खाने के लिए कम्पेल किया जा रहा था। उसे अपने सारे काम खुद करने पड़ रहे थे और अब मम्मी से दूर रखने के लिए ज़बर्दस्ती उसे दोस्तों के पास खेलने के लिए भेजा जा रहा था। पापा के आने के अगली रात अलका अपने अलग कमरे में सोने से पहले भगवान से प्रार्थना कर रही थी-
हे भगवान! पापा को रिसर्च के काम से फिर बाहर भेज दो।
अगले दिन सन्डे था,  अलका देर तक सोना चाहती थी पर बड़े सवेरे ही पापा ने उसे जगा दिया। उसके लाख मना करने पर भी वह ज़बर्दस्ती उसे अपने साथ मोर्निंग वाक पर ले गए। अलका का मूड बहुत खराब था,  कितनी अच्छी नींद आ रही थी,  अब चलते-चलते अपनी टाँगे तोड़ो। पर यह क्या! यह गोल-गोल ऊपर उठता हुआ चमकता हुआ सोने का थाल क्या है?  वाह कितना खूबसूरत सीन है! पापा से नाराज़ होते हुए भी उसने उसके बारे में पूछ लिया। पापा ने हँस कर जवाब दिया-
बिटिया रानी इसे सूरज कहते हैं। आप जो सीन देख रही हैं वह सनराइज़ है।
अलका को बड़ी शर्म आई। वह कभी सुबह जल्दी उठी ही नहीं थी,  सनराइज़ कहाँ से देखती। पार्क में टहलते हुए चह-चहाती चिडि़याएं देखकर भी अलका को बहुत अच्छा लगा। एक जगह उसने देखा कि एक बड़ी चिडि़या अपने बच्चे को चोंच से बार-बार मार रही है। अलका ने फिर पापा से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया-
ये चिडि़या अपने बच्चे को उड़ना सिखा रही है। जब तक यह अपने बच्चे को खुद से अलग नहीं करेगी तब तक वह उसे उड़ना नहीं सिखा पाएगी। कुछ दिन बाद तुम देखना यह चिडि़या का बच्चा उड़ना भी सीख जाएगा और अपने लिए खाना भी खुद ही खोजना शुरू कर देगा।
अलका को मोर्निंग वाक अब बहुत अच्छा लग रहा था। वह पापा से एक के बाद एक सवाल पूछ रही थी और पापा उसके हर सवाल का जवाब दे रहे थे। उसे यह जानकर बहुत आश्चर्य हुआ कि जानवरों और पंछियों के बच्चे बहुत जल्दी अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं। अलका ने सुबह-सुबह छोटे-छोटे बच्चों को काम करते हुए देखा। बिना किसी से पूछे अलका को पता चल गया कि इंसानों में भी बहुत कम बच्चे उसकी तरह आलसी होते हैं।
आज अलका को किसी काम के लिए भी मम्मी की मदद लेना अच्छा नहीं लगा। तीसरे पहर मम्मी उसके साथ ताश खेलना चाहती थीं पर वह अपने दोस्तों के साथ बैडमिन्टन खेलने चली गई। डिनर पर अलका ने पिज़ा छोड़कर पापा की ही तरह दही,  सब्ज़ी के साथ रोटी खाई,  फिर बिना मम्मी की मदद के अपना होमवर्क कर वह अपने कमरे में सोने चली गई पर सोने ने पहले वह भगवान से प्रार्थना करना नहीं भूली-
हे भगवान! मेरे अच्छे पापा को हमेशा मेरे पास रखना और मुझे अपना काम खुद करने का वरदान देना।
अलका की मम्मी उसमें बदलाव देखकर बहुत परेशान थीं। उन्होंने अलका के पापा से कहा-
अलका बहुत बदली-बदली सी लग रही है। मेरी मदद के बिना वह अपने सारे काम कर रही है,  कहीं वह इतना स्ट्रेन करके बीमार नहीं पड़ जाएगी?
अलका के पापा ने कहा-तुमने अपने लाड-प्यार से बच्ची को बीमार बना दिया था। अब वह खुद को ठीक करने की कोशिश कर रही है।
अलका की मम्मी को यह बात अच्छी नहीं लगी,  उन्हें लग रहा था कि अलका के पापा उसके साथ कुछ ज़्यादा ही सख्ती कर रहे हैं। यही सोचते-सोचते उन्हें नींद आ गई।
सुबह बड़े सवेरे अलका की मम्मी को किसी ने जगाया। उन्होंने सोचा कि अलका के पापा होंगे पर नहीं, यह तो अलका थी जो कि अपनी मम्मी-पापा के लिए बैड-टी लेकर खड़ी मुस्कुरा रही थी। अलका का यह नया रूप देखकर मम्मी की आँखों में आँसू आ गए पर पापा प्यार से हँस रहे थे। यह सुबह देखने में और सुबहों की तरह ही थी पर अलका के लिए यह आशा की नयी सुबह थी जो उसे खुले आकाश में खुद उड़ना सिखा रही थी।

7 टिप्‍पणियां:

  1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद सुशील बाबू.

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-10-2017) को भावानुवाद (पाब्लो नेरुदा की नोबल प्राइज प्राप्त कविता); चर्चा मंच 2760 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-10-2017) को भावानुवाद (पाब्लो नेरुदा की नोबल प्राइज प्राप्त कविता); चर्चा मंच 2760 पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. धन्यवाद शास्त्री जी,'चर्च मंच' में मेरी कहानी को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद. 'चर्च मंच' के माध्यम से अधिक से अधिक पाठकों से जुड़कर मुझे प्रसन्नता होगी.

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