रविवार, 5 नवंबर 2017

आज़ादी का मोल



आज़ादी का मोल

                नेहा एक नन्हीं सी, प्यारी सी पर बड़ी जि़द्दी लड़की थी। उसकी रोज़ाना की फ़रमाइशों को पूरा करते-करते उसके मम्मी-पापा थक गए थे मगर उसकी फ़रमाइशें तो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थीं। अगर मम्मी-पापा फ़ौरन उसकी फ़रमाइश पूरी नहीं करते तो वह आसमान सर पर उठा लेती थी। पचासों तरह के खिलौनों,  गुडियों,  कम्प्यूटर गेम्स और न जाने क्या-क्या अटरम-शटरम चीज़ों से भरा उसका कमरा पूरा अजायबघर मालूम पड़ता था। किसी की क्या मजाल जो उसके किसी भी सामान को हाथ लगा सके। हाँ, अगर खुद उसका मन किसी चीज़ से भर जाए तो उसे कूड़े के ढेर में फेंकते हुए उसे एक सेकिण्ड भी नहीं लगता था।
                एक रविवार की सुबह नेहा अपने पापा के साथ बोटैनिकल गार्डेन में घूम रही थी। पेड़-पौधों के बीच पत्थर की पगडंडियों पर दौड़ लगाना उसे बहुत अच्छा लग रहा था। फूलों पर मँडराती तितलियाँ और पेड़ों पर चहकती चिड़िया उसे बहुत भा रही थीं । हरे-हरे तोते और काली-काली मैनाओं की इंसान जैसी बोलियों ने तो उसका दिल ही जीत लिया था । उसने अपने पापा से पूछा- 
पापा! क्या यह सच है कि तोते और मैना हमारी बोली बोल सकते हैं?“
उसके पापा ने जवाब दिया-
बिलकुल हमारी तरह से तो नहीं पर अगर उन्हें सिखाया जाय तो उनकी काफ़ी बातें हमारी समझ में आ सकती हैं।
                नेहा के पापा ने ऐसा कह कर अपनी जान आफ़त में डाल ली। अब नेहा जि़द पकड़ कर बैठ गई कि उसे एक तोता और एक मैना अपने घर में चाहिए ही चाहिए। उसके पापा ने उसे लाख समझाया पर वह अपनी जि़द से टस से मस नहीं हुई। नेहा की मम्मी ने उससे कहा-
नेहा! पंछी तो खुले आकाश में ही अच्छे लगते हैं। तोते और मैना को पिंजड़े में कैद करके तुम क्यों उनकी आज़ादी छीनना चाहती हो?“
नेहा के पास मम्मी के सवाल का जवाब तैयार था-
मम्मी! मैंने पढ़ा है कि सुबह से शाम तक मेहनत करने बाद भी दो-चार दाने ही जुटा पाते हैं ये बेचारे पंछी। मैं इनको पालूंगी तो इनको अच्छे से अच्छा खाने को दूंगी,  इनको बढि़या पिंजड़े में रक्खूंगी। इन्हें किसी चील-कौए या किसी बिल्ली से खतरा भी नहीं होगा। इन्हें गर्मी लगेगी तो ए. सी. चला दूँगी और अगर सर्दी लगी तो हीटर ऑन कर दूंगी।
                नेहा की मम्मी ने कहा-
बेटी ! इन पंछियों को तुम्हारे पकवानों और ए. सी.-हीटर की कोई ज़रूरत नहीं है। इनको तो बस खुले आकाश में अपने साथियों का साथ और पेड़ों पर अपना बसेरा चाहिए।
                नेहा की मम्मी की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि मेन गेट पर एक बहेलिया पंछी बेचता हुआ आ गया। नेहा की तो मानो लाटरी खुल गई। बहेलिये के पास एक से एक सुन्दर तोते और मैनाएं थीं। अब तो हर हाल में नेहा को पंछी चाहिए ही थे। रोने-धोने से काम नहीं बना तो भूख-हड़ताल का सहारा लेकर उसने अपनी जि़द पूरी करवा ही ली। बहेलिये को दो सौ रुपये देकर नेहा की मम्मी ने उसके लिए एक तोता और एक मैना खरीद ही लिए। बड़े ज़ोर-शोर के साथ दोनों पंछियों के लिए एक-एक सुन्दर पिंजड़ा  खरीदा गया,  उनमें अच्छा सा बिछौना बिछाया गया और खाने-पीने का सब इंतज़ाम भी किया गया। नेहा तो अपना सारा खाली समय इन दोनों पंछियों की सेवा में लगाने लगी थी। उसने तोते का नाम मिठ्ठू और मैना का नाम मिन्नी रक्खा था। उसको इन दोनों पंछियों के बोलने का इंतज़ार था। वह रोज़ाना सुबह-शाम उन्हें छोटे-छोटे शब्द सिखाने की कोशिश करती थी। दस दिनों की लगातार कोशिश के बाद भी दोनों पंछी अपना नाम दोहराना नहीं सीख पाए तो नेहा को गुस्सा आने लगा। उसने अपने पापा से कहा-
पापा ! उस चिड़िये वाले से दूसरे पंछी खरीद कर लाइए। ये पंछी तो हमारी जैसी बोली नहीं सीख पा रहे हैं,  न गाना गाना,  बस, टें-टें करते रहते हैं। ये दिन-भर बैठे-बैठे खाते रहते हैं,  बढ़िया बिछौनों पर सोते हैं,  कूलर की हवा के मज़े लूटते हैं पर फिर भी हमेशा उदास-उदास रहते हैं।
                नेहा के पापा ने कहा-
तुमने उनकी आज़ादी छीन ली और अब मुठ्ठी भर दानों और थोड़े आराम के बदले तुम उनका गाना सुनना चाहती हो। क्या तुम एक दिन के लिए भी अपने घर में ही कैद रहकर खुशी से गाना गा सकती हो?“
                नेहा ने कहा-
क्यों नहीं? आप मेरे लिए अच्छा-अच्छा खाना और मेरे सारे खिलौने मेरे पास छोड़ दीजिए फिर देखिए मैं खुश रहती हूं कि नहीं?“
                नेहा के पापा ने कहा-
ठीक है! मैं और तुम्हारी मम्मी कल दोपहर एक शादी में जा रहे हैं। तुम्हारे लिए तरह-तरह के पकवान होंगे,  तुम्हारे खिलौने होंगे,  देखने के लिए टीवी होगा और कम्पनी के लिए तुम्हारे ये प्यारे पंछी भी तुम्हारे पास होंगे। बस! तुमको आठ घण्टों के लिए अकेले घर में कैद रहना होगा। अगर तुम खुश-खुश रह लोगी तो इन पंछियों के बदले तुम्हारे लिए दूसरे पंछी ले आएंगे।
                नेहा ने पापा की चुनौती स्वीकार कर ली। मम्मी-पापा उसे अकेला छोड़कर चले गए। नेहा ने मज़े ले-लेकर कार्टून चैनल पर मिकी-डोनाल्ड की फि़ल्म देखी। फि़ल्म देखने से मन भर गया तो फिर उसने कुछ देर कंप्यूटर गेम्स से मन बहलाया। कुछ देर तक मम्मी के बनाए पकवानों का भी मज़ा लिया। न कोई टोकने वाला था न कोई उपदेश देने वाला फिर भी न जाने क्यों उसे आनन्द नहीं आ रहा था। आज उसका मन पंछियों को अपनी बोली और गाना सिखाने का भी नहीं हो रहा था। खिलौनों को तो देखने का भी मन नहीं हो रहा था। सांय-सांय करता हुआ खाली घर उसे बड़ा डरावना लग रहा था। इतने बड़े घर में अकेली लड़की छोड़कर मम्मी-पापा ने अच्छा नहीं किया था। नेहा ने मम्मी-पापा को जितनी बार भी फ़ोन लगाया तो वो स्विच ऑफ़ निकला. चार घंटे अकेले रहकर नेहा रानी को अपना ही घर कैदखाना लगने लगा। आठ घण्टे की कैद का समय पूरा होते-होते तो नेहा रानी घबरा कर रोने लगीं। उनके रुदनगान के साथ-साथ उनके पालतू पंछियों की टें-टें बड़ी मीठी लग रही थी। मम्मी-पापा जब घर लौटे तो नेहा दौड़कर उनके पैरों से लिपट गई। वह रोते हुए उनसे बोली-
मम्मी-पापा! आप दोनों बहुत गन्दे हैं। आपने अपनी इत्ती सी नेहा गुडि़या को इतने बड़े घर में अकेले कैद कर दिया।
नेहा के पापा ने उससे पूछा-
क्यों बेटी! तुम्हारे पास तो तुम्हारी आज़ादी के अलावा सब कुछ था। तुम्हें तो खुशी से गाने गाने चाहिए थे फिर तुम रो क्यों रही हो?“
                नेहा ने नाराज़ होकर कहा-
कैद में रहकर भला कोई खुशी से गाना गा सकता है?“
नेहा के पापा ने मुस्कुरा कर कहा-
क्यों नहीं? तुम भी तो अपने पंछियों को कैद करके उन्हें खाना-पीना और तरह-तरह के आराम देकर उनसे गाना गवाना चाहती हो। हमने भी तो तुम्हारे साथ यही किया था फिर तुमने खुश होकर गाना क्यों नहीं गाया?“
नेहा अपने पापा का इशारा समझ गई। उसने चुपचाप आगे बढकर पंछियों के पिंजड़े खोलकर उन्हें आज़ाद कर दिया। नेहा को आज़ादी का मोल समझ में आ गया था।

4 टिप्‍पणियां:

  1. बच्चों के लिये एक सन्देश देती हुई एक बहुत अच्छी कहानी लिखी है। अपनी ब्लॉग सूची बढ़ाइये ताकि आपका ब्लॉग भी लोगों की पहुँच तक फैले।

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  2. प्रशंसा के लिए धन्यवाद सुशील बाबू. मेरे ब्लॉग पर दो-चार मित्र तो और बने हैं किन्तु इस क्षेत्र में मैं नितांत आलसी हूँ. फिर भी तुम्हे सलाह मानकर मैं प्रयास कर मित्रों की संख्या बढ़ाऊंगा.

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, संसार के सबसे बड़े पापी “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. धन्यवाद, ब्लॉग बुलेटिन' में मेरी रचना का शामिल होना मेरे लिए सम्मान की बात है.

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