रविवार, 14 जनवरी 2018

मन चंगा तो कठौती में गंगा

मन चंगा तो कठौती में गंगा -
आज मकर संक्रांति का पावन पर्व है. आज गंगा-स्नान का अत्यंत महत्त्व है. पतित पावनी माँ गंगे हमारे जन्म-जन्मान्तर के पाप धोने की क्षमता रखती हैं. आज के दिन गंगा-स्नान करना हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं है. तमाम टीवी चेनल्स पर चिकने-चुपड़े बाबाजी और ज्योतिषी यही सन्देश दे रहे हैं.
भगवान के दरबार में किसी पर्व के अवसर पर पवित्र नदियों में स्नान करने से अथवा तीर्थों की यात्रा करने से पापी से पापी व्यक्ति भी पाप-मुक्त हो सकता है. यह व्यवस्था कितनी सुविधाजनक है ! हम बड़े से बड़ा पाप करें, कोई चिंता नहीं किन्तु जघन्य से जघन्य पाप करने से पहले ही हम अगर तीर्थ-यात्रा और गंगा-स्नान की एडवांस प्लानिंग कर लें तो फिर हमको मृत्य के उपरांत स्वर्ग जाने से कौन रोक सकता है?
कोई कबीर था जिसे इन बाबाजियों, इन ज्योतिषियों की बात पर विश्वास नहीं था और वो अपनी मृत्यु का समय नज़दीक समझ मोक्ष-दायिनी काशी को छोड़ कर मरने के लिए मगहर चला गया था. उस मगहर को, जिस के लिए यह मान्यता थी कि जो वहां मरता है, वह अगले जन्म में गधे की योनि में जन्म लेता है.
कोई रैदास था जो गंगा-स्नान के दिन काशी जी में रहते हुए भी गंगा जी में स्नान करने के लिए जाने के स्थान पर अपने किसी ग्राहक का जूता गांठने के लिए चमड़े को पानी से भरी कठौती में भिगो रहा था. उस बावरे को तो अपने कर्म से बड़ा कोई तीर्थ, कोई गंगा-स्नान दीख ही नहीं रहा था.
'मन चंगा तो कठौती में गंगा' रैदास के इस अमर कथन को हम और हमारे पुरखे करीब पांच सौ साल से दोहराते आ रहे हैं किन्तु फिर भी इस कथन के मर्म को समझने वाले बहुत कम हैं और इसके विपरीत कर्म-काण्ड के चमत्कारी प्रभाव का गुणगान करने वाले करोड़ों हैं.
मुझे कर्म-कांड का विरोध करने वालों से, 'कर का मनका छांड़ के मन का, मनका फेर' कहने वालों से कोई सहानुभूति नहीं है.
हम 'कांकर, पाथर जोरि के, मस्जिद बनाय, ख़ुदा को आवाज़ क्यों न दें?
हम 'जप, माला, छापा, तिलक आदि की महत्ता क्यों अस्वीकार कर दें?
मेरा एक प्रस्ताव है -
तीर्थ यात्रा, गंगा-स्नान, हज्ज, दरवेशों की दरगाहों की ज़ियारत, रविवार को नियमित रूप से चर्च जाना, गुरु पर्व पर गरीबों को भोजन कराने से और दरबार साहब में मत्था टेकने से, जैन धर्मावलम्बियों के लिए सम्मेद शिखर की परिक्रमा करने से यदि भगवान के यहाँ सारे पाप धुल जाते हैं तो ऐसी ही व्यवस्था अदालतों में भी कर दी जाने चाहिए.
अगर कोई क़ातिल अदालत में यह सिद्ध कर दे कि क़त्ल करने से पहले और उसके बाद भी वह नियमित रूप से तीर्थ-यात्रा, गंगा-स्नान, हज्ज करने आदि का पुण्य-सबाब अर्जित करता रहा है तो अदालत को उसे बा-इज्ज़त बरी कर देना चाहिए.
फ़्रांसीसी क्रान्ति से पहले पादरीगण आस्तिकों से पैसे लेकर उन्हें स्वर्ग जाने का परमिट निर्गत किया करते थे.
ऐसी ही कोई व्यवस्था मंदिरों, मठों, खानकाहों आदि के साथ अदालतों के साथ किसी गठबंधन की भी हो जानी चाहिए.
हाँ, अपराध की गंभीरता बढ़ने के साथ तीर्थ-यात्राओं की संख्या और चढ़ावे की रक़म भी बढ़ाए जाने की व्यवस्था हो जानी चाहिए.
मैं अपने क्रांतिकारी विचारों से अन्धविश्वास की बुनियाद हिलाना तो बहुत चाहता था पर क्या करूं, मजबूरी है. पिछले गंगा-स्नान के बाद से किये गए मेरे पापों को राइट ऑफ़ कराने के लिए आज मेरा गंगा-स्नान करना ज़रूरी है. गंगा जी तक जाने के लिए मैंने जो टैक्सी मंगवाई थी, उसका ड्राइवर हॉर्न बजा-बजा कर परेशान कर रहा है. मुझको अब जाना ही होगा.

13 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया जी।

    हमारे यहाँ आज का दिन नरहर के नाम से जाना जाता हैं। दादी माँ सुबह सुबह चेतावनी देती थी उठा कर सुबह सुबह नहा लो नहा लो जो आज के दिन नहीं नहायेगा अगले जन्म भगवान उसे गनेल बना देंगे :)

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    1. छोटी दीपावली पर स्नान न करने वाला/वाली का अपने अगले जन्म मेंछिपकली बनना निश्चित होता है.

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  2. निमंत्रण पत्र :
    मंज़िलें और भी हैं ,
    आवश्यकता है केवल कारवां बनाने की। मेरा मक़सद है आपको हिंदी ब्लॉग जगत के उन रचनाकारों से परिचित करवाना जिनसे आप सभी अपरिचित अथवा उनकी रचनाओं तक आप सभी की पहुँच नहीं।
    ये मेरा प्रयास निरंतर ज़ारी रहेगा ! इसी पावन उद्देश्य के साथ लोकतंत्र संवाद मंच आप सभी गणमान्य पाठकों व रचनाकारों का हृदय से स्वागत करता है नये -पुराने रचनाकारों का संगम 'विशेषांक' में सोमवार १५ जनवरी २०१८ को आप सभी सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद !"एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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    1. 'एकलव्य' के 15 जनवरी, 2018 के अंक की हमको प्रतीक्षा रहेगी और उस से जुड़कर हमको बहुत ख़ुशी होगी.

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  3. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'मंगलवार' १६ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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    1. 'लोकतंत्र संवाद' से जुड़कर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है. इस से अपनी बात औरों से कहने का और दूसरों की बात पढने का मुझे ख़ूबसूरत मौक़ा मिलेगा.

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  5. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन मकर संक्रांति पर ब्लॉग बुलेटिन की शुभकामनायें करें स्वीकार में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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    1. 'ब्लॉग बुलेटिन' में मेरी रचनाओं का चयन सदैव मेरे लिए गर्व का विषय होता है. मैं अन्य लेखकों की रचनाओं का भी आनंद लूँगा.

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  6. बहुत तार्किक लिखते हैं आप .

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    1. धन्यवाद मीना जी. हम ओवर स्मार्ट बनकर धार्मिकता का चोला पहनकर भगवान को धोखा देने की कोशिश करते हैं पर होता क्या है? हम खुद को ही धोखा देते रहते हैं.

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  7. मस्त है आपका व्यंग ...
    पर सच है माँ का साफ़ होना ज़रूरी है ...

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    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद दिगंबर नसवा जी. वरदान स्वरूपा माँ गंगे फिर से निर्मल हों, यह हम सबकी कामना है किन्तु हमको यह समझना होगा कि वो पतित-पावनी न तो कभी थीं और न कभी होंगी. हमारे कुकर्मों का कलंक मिटने की शक्ति यदि किसी में कुछ हो सकती है तो वो हमारे सुकर्मोंमें हो सकती है, और किसी में नहीं, न भगवान में और न ही गंगा मैया में.

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