तेरे गुनाह पे, पर्दा-ए-झूठ, डाल तो दूं,
मुझे इन्साफ़ की देवी का खौफ़, रोके है.
मैं एक पल में तुझे, बेक़सूर ठहरा दूं,
किसी मासूम की बेजान आँख, रोके है.
और फुटपाथ पे, कुचले हुए मज़लूमों के,
बीबी-बच्चों के दिल की आह, मुझे रोके है.
मुझे पता है कि सोने में तौल देगा मुझे,
मगर ज़मीर की फटकार, मुझको रोके है.
वाह..
जवाब देंहटाएंसादर
धन्यवाद यशोदा जी. बहुत दिन बाद आप हमारी तरफ़ मुखातिब हुईं.
जवाब देंहटाएंक्या बात है। बढ़िया :)
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुशील बाबू. इसका मतलब है कि तुम भी सुपर-स्टार भाई को बचाने के लिए कुछ नहीं करने वाले हो.
हटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०९ अप्रैल २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' ०९ अप्रैल २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक में आदरणीय 'रवींद्र' सिंह यादव जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।
अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
धन्यवाद ध्रुव सिंह जी. 'लोकतंत्र' संवाद मंच से जुड़कर मैं सदैव गौरवान्वित होता हूँ. मैं श्री रवीन्द्र सिंह यादव की रचनाओं का तो प्रशंसक हूँ ही, आज उनको और अधिक जानने का अवसर मिलेगा.
हटाएंकाश के बात हर वक़ील और इंसान सुने ... अपनी दिल की आवाज़ बिना दबाव के ... अच्छी रचना ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दिगंबर नसवा जी. ज़मीर और जज़्बात बिकाऊ हैं. 'सलमान भाई निर्दोष हैं' ये उनका दिल नहीं, बल्कि सलमान भाई का बटुआ बोल रहा है.
हटाएंधन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी. 'पांच लिंकों का आनंद' के अंक से जुड़कर मेरी रचना सुधी पाठकों तक पहुंचे, इस से बढ़कर मेरे लिए और खुशी क्या हो सकती है. मैं अवश्य ही इस अंक का अवलोकन करूँगा और अपनी प्रतिक्रिया भी दूंगा.
जवाब देंहटाएंमुझे पता है कि सोने में तौल देगा मुझे,
जवाब देंहटाएंमगर ज़मीर की फटकार, मुझको रोके है.....वाह!!! बहुत उम्दा!!!
धन्यवाद विश्वमोहन जी. आप जैसे प्रतिष्ठित साहित्यकार की प्रशंसा मेरे लिए बहुत मायने रखती है.
हटाएंवाह!!बहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शुभा जी.
हटाएंये बात गहरी है थोड़ी कि हर वकील ऐसे सोचने लगे तो फिर इंसाफ मांगने वालों की भीड़ ना होगी...होगा तो केवल सकूं.
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ है बहुत ही अच्छा लगा पढकर
आपका स्वागत है मेरे यहाँ भी -----> खैर
धन्यवाद रोहितास घोरेला जी. वकीलों और अपराधियों की मिलीभगत ख़त्म हो जाए तो गुनाह करने की बहुत कम लोग ही हिम्मत कर पाएंगे. मैं आपकी रचनाओं का रसास्वादन अवश्य करना चाहूँगा. अपने ब्लॉग के विषय में जानकारी दीजिए. हो सके तो मेरे मेल g.m.jaswal@gmail.com पर भी अपनी चुनिन्दा रचनाएँ भेजिए.
हटाएंवाह !!!!!!!आदरणीय गोपेश जी -- आप का गम्भीर चिंतन और भावपूर्ण शायरी बहुत उम्दा है | कानून के रखवालों के कानों तक ये आवाज पहुंचनी चाहिए | यही उनका नैतिक धर्म है और होना भी चाहिए | सादर --
जवाब देंहटाएंधन्यवाद धन्यवाद रेनू जी. बशीर बद्र साहब का शेर है -
हटाएंहमसे मजबूर का गुस्सा भी अजब बादल है,
अपने ही दिल से उठे, अपने ही दिल पर बरसे.
बस हमारी शिकायत तो आप और हम जैसों तक ही सिमट कर रह जाएगी. गाँधी जी के तीनों बंदरों के गुण एक साथ रखने वाले हमारे तथाकथित कानून के रखवालों तक हमारी बात कहाँ पहुँच पाएगी?