शुक्रवार, 4 मई 2018

जिन्ना विवाद

स्वामी प्रसाद मौर्य एक दल-बदलू किस्म के प्राणी हैं. बी.एस.पी. से बी.जे.पी. में आए इस नेता को कमल वालों द्वारा ख़ास घास नहीं डाली जा रही है. ऐसा लग रहा है कि सुबह का भूला भाई शाम को अपनी पुरानी बहन के घर वापस आने वाला है.
पर यहाँ बात ए.एम.यू. में हुए जिन्ना विवाद की है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने जिन्ना को लेकर यह कहा कि आज़ादी और विभाजन से पहले स्वतंत्रता आन्दोलन में जिन्ना का भी योगदान था. उनके इस बयान से बीजेपी के तमाम नेता उनके खून के प्यासे हो गए हैं और उन्हें पार्टी से बाहर निकालने की मांग कर रहे हैं.
1908 में जब लोकमान्य तिलक पर अंग्रेज़ सरकार ने राजद्रोह का मुक़द्दमा चलाया था तो अदालत में जिन्ना ने उनकी पैरवी की थी.
कितने देशभक्तों को यह पता है कि 1916 के कांग्रेस-मुस्लिम लीग समझौते (लखनऊ पैक्ट) के अंतर्गत हिन्दू-मुस्लिम एकता के सार्थक प्रयास में जिन्ना का भी महत्वपूर्ण योगदान था.
आज हम जिस जिन्ना को जानते हैं और जिसे हम भारत-विभाजन के लिए कोसते हैं वो 1930 के बाद के जिन्ना हैं. इसलिए मेरी दृष्टि में स्वामी प्रसाद मौर्य ने कम से कम जिन्ना के बारे में कोई गलत बयान नहीं दिया है.
हैरत की बात यह है कि ए. एम. यू. में जिन्ना की तस्वीर 1938 से लगी हुई थी पर उस पर प्रायोजित बवाल अब उठ रहा है.
इन देशभक्तों से मेरा एक मासूम सा सवाल है - क्या भारत विभाजन के लिए सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार अंग्रेज़ आक़ाओं में से किसी एक की भी तस्वीर हटाए जाने के लिए कभी किसी देशभक्त ने अपनी आवाज़ बुलंद की है?
वैसे ए.एम.यू. में जिन्ना के सम्मान और अपमान का मुद्दा असल में दो गुंडे छात्र -दलों के बीच का आपसी झगड़ा है. उनको आपस में सर फोड़ने दीजिए और आप आराम से टीवी पर आईपीएल क्रिकेट की नूरा कुश्ती देखिए.

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया। पर घड़े चिकने हैं।

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  2. धन्यवाद शिवम् मिश्रा जी. 'ब्लॉग बुलेटिन' से जुड़कर मेरे विचार सुधी पाठकों तक पहुंचेंगे.

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  3. बहुत सही सवाल है सर...ऐसे में प्रतीत होने लगता है सबकुछ प्रायोजित है। बात-बेबात पर विवाद पैदा कर सुर्खियों में रहने का आसान तरीका जो है। गड़े मुर्दों को उखाड़कर जाने कौन सी राजनीति कर रहे है हमारे जनप्रतिनिधि।

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  4. श्वेता जी हम जैसे नादानों ने ही तो इनके हाथ में निरंकुश अधिकार रूपी माचिस दी है, अब वो उस से हमारा ही घर जला रहे हैं तो दोष इनका थोड़ी हुआ, वो तो हमारा ही हुआ.

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    1. बिल्कुल सही है सर।

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    2. 'इस बार कुएँ में वोट न डालकर खाई में डालेंगे.' बस, हमारे पास यही तो दो विकल्प हैं.

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  5. प्रकृति के प्रकोप से उत्पन्न बवंडर से मासूमों की अकाल मौत पर किसी को परेशानी नहीं हुई, जिन्ना के जिन्न से नींद हराम हुई पड़ी है !!

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    1. चुनावी माहौल है, ऐसे में समाज में हिंदू-मुस्लिम वैमनस्य का ज़हर घोलना फ़ायदे का सौदा है. कर्नाटक के चुनावी प्रचार को छोड़कर अपने प्रदेश में हुए एक मामूली से हादसे (मात्र 73 मौतें) के कारण राजर्षि को कुछ दिनों के लिए वापस लौटना पड़ा, क्या जनता के ऊपर उनका यह सबसे बड़ा एहसान नहीं है?

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  6. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०७ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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    1. धन्यवाद ध्रुव सिंह जी. 'लोकतंत्र' संवाद मंच के माध्यम से मेरे विचार जन-जन तक पहुँचते हैं. मैं इस में सम्मिलित रचनाओं का अवश्य ही रसास्वादन करूंगा.

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  7. आजादी से पहले के हीरोज,हमारे लिए हीरोज ही रहने चाहिए क्यूंकि तब तक हमारा देश मुकमल हिन्दोस्तान था और इसी हिनुस्तान की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी जा रही थी.

    अच्छा लेख.

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    1. जिन्ना हमारे-आपके हीरो नहीं हैं लेकिन उनके अलावा और भी कई राजनीतिक नेता पथ-विमुख हुए थे. 1920 के असहयोग आन्दोलन के दौरान चौरी-चौरा की हिंसक घटना के कारण अपना आन्दोलन स्थगित करने वाले महात्मा गाँधी 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान हिंसात्मक और तोड़फोड़ की घटनाओं को रोकने के लिए तैयार नहीं हुए थे. लोकतंत्र के प्रबल समर्थक नेहरु जी प्रधानमंत्री के रूप में अपने मंत्रियों को अपने निजी सचिवों से अधिक कुछ नहीं समझते थे. जिन्ना से पहले और उनके बाद भी न जाने कितने लोगों ने कुर्सी के लिए अपने ज़मीर और अपने मुल्क को बेचा था, बेचा है और आगे भी उन्हें बेचते रहेंगे. लोग

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  8. आदरणीय गोपेश जी --- आपके ब्लॉग पर आई बहुत बार हूँ पर समयाभाव लिखने नहीं देता सो क्षमा प्रार्थी हूँ | पर आपकी लेखनी की प्रशंसक हूँ | आपने बड़े हलके फुल्के में जिन्ना विवाद को लिया है | सच में हर आम इंसान की यही राय होगी मैं ऐसा सोचती हूँ | जिन्ना आजादी से पाहे ले उन लोगों में से थे जो शायद वैचारिक स्तंभों में से एक रहे होगे |आज उनके नाम पे विवाद बड़ा बचकाना लगता है | वैसे पकिस्तान में भगत सिंह , सुखदेव , यशपाल की फांसी के विवास्पद फैसले पर मुकद्दमा लड़ा गया | जिन्ना अकेले विभाजन के जिम्मेवार नहीं थे |उनके साथ सत्तालोलुप और भी लोग थे जिन्होंने अपने वर्तमान में सत्ता सुख भोगने के लिए राष्ट्र के भविष्य को दांव पर लगा दिया | आपकी चुटीली शैली बहुत रोचक है | सादर --

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    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद रेनू जी. कर्नाटक के चुनाव और उत्तर प्रदेश में कैराना के उप-चुनाव से पहले जिन्ना के भूत को पुनर्जीवित करने से वोटों का ध्रुवीकरण हो तो ये सौदा फ़ायदे का होगा. अब अगले चुनाव में पाकिस्तान की अवधारणा को दार्शनिक आधार देने वाले अल्लामा इक़बाल के जिन्न को पुनर्जीवित किया जाएगा और उनकी रचना 'सारे जहां से अच्छा' को प्रतिबंधित किए जाने के लिए आन्दोलन होगा.

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  9. बहुत सही कहा आपने | देश के विकास के चिंतन के समय नही | ना खुद करते ना औरों को कुछ करने देते | सादर

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