बुधवार, 16 मई 2018

न्याय???


मत्स्य-न्याय
सच की राह चला, दुनिया से साफ़ हो गया,
बकरे की बलि चढ़ी, भेड़िया माफ़ हो गया.
जो क़ातिल को पकडे, सूली पर चढ़ जाए
यही मुल्क के हाक़िम का, इंसाफ़ हो गया.
वानर-न्याय -
डंडी मार तराजू लाकर,
बन्दर अब, इंसाफ़ करेगा.
झूठे को कुर्सी दे, सच का,
जड़ से, पत्ता, साफ़ करेगा.

12 टिप्‍पणियां:

  1. आईये भेड़िया बने और बनायें
    बकरे को मिलकर न्याय दिलायेंं
    सूली चढ़ेगा तब भी मरेगा
    पहले ही मारकर खायें ।

    कब सीखेंगे?

    सुन्दर।

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    1. मैं तो शुद्ध शाकाहारी हूँ किन्तु भेड़ियों और मगरमच्छों की खालों से बने जूते पहनने में मुझे कोई ऐतराज़ नहीं है.

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  2. वाह्ह...गज़ब...
    एकदम सत्य और सटीक लिखे है सर।

    माना कि अबकी बरसात में मेंढ़कों के टर्राने की बारी है
    मौकापरस्ती के नियम का ईमानदार खेल अनवरत जारी है

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    1. धन्यवाद श्वेता जी. उनका कहना है -
      मेरा ज़मीर मुझे, जान से भी प्यारा था,
      जो, सौ करोड़ मिले, उसको बेचना ही पड़ा.

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    2. वाह्ह्ह...👌 क्या खूब कही आपने।

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    3. एक बार पुनः धन्यवाद श्वेता जी.

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  3. बहुत खूब......, हर बार की तरह । आपके बारे में पढ़ा "लोकतंत्र" संवाद मंच पर । आप की रचनाएं बहुत अच्छी लगी ।

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    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद मीना जी. आप नई पीढ़ी वाले भी हम जैसे पुराने चावल पसंद करते हैं, यह जानकार सुखद आश्चर्य हुआ.

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  4. 'लोकतंत्र' संवाद मंच में मेरी रचना सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद ध्रुव सिंह जी. ईश्वर से प्रार्थना है कि आप जैसे कद्रदानों का मुझ पर प्यार यूँ ही बना रहे.

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  6. आदरणीय गोपेश जी -- आज ध्रुव जी के लिंक संयोजन में आपकी धूम है | हजारों सलाम आपको | आपके बारे में जानकर बहुत गर्व हुआ कि आप जैसे प्रखर विद्वान् के परिचित हम भी हैं | शब्द - शब्द से भरा रचना - संसार आज एक बहुमूल्य खजाने सरीखा बन गया है | सहज ही मुस्कुराने के लिए विवश करती आपकी रचनाओं के कटाक्ष भी बड़ी ही शालीनता से मन को छू जाते हैं | माँ सरस्वती आपकी नटखट लेखनी का प्रवाह बनाये रखे | अनेकानेक शुभकामनायें स्वीकार हों |

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    1. रेनू जी, इस उम्र में भी ऐसी प्रशंसा पाकर मैं धनिए के पेड़ पर चढ़ जाता हूँ लेकिन फिर उस से उतरने में बहुत डर लगता है. आप लोगों का स्नेह और उत्साहवर्धन मेरी सृजनशीलता को और मेरी नटखट लेखनी को नए आयाम देते हैं. आपको धन्यवाद तो क्या दूं? बस, यही दुआ है कि आप प्रसन्न रहें, आबाद रहें और मेरी रचनाओं को पढने का समय यूँ ही निकालती रहें.

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