कृपा कब बरसेगी?
अंधभक्तों पे कृपा, इतनी ज़रा, बरसा दे,
रेवड़ी बाँट का. ठेका तो मुझे , दिलवा दे.
मेरी इस अरदास पर प्रभू के कुछ अंधभक्त मेरे खून के प्यासे हो गए. मेरे जले पर नमक छिड़कते हुए मेरे हितैषी कृष्णा चंदोला भाई साहब ने मुझे सलाह दे डाली कि अपने ऊपर प्रभू की कृपा बरसवाने के लिए मुझे किसी मतिमंद अंधभक्त को अपने पड़ौस में बसा लेना चाहिए.
इस बात पर मुझे संतों की बानी का स्मरण हो आया -
चढ़े करेला, नीम पर, अति कड़वा हो जाय,
अंधभक्त, मतिमंद हो, संग, नरक हो जाय.
तथा
अंधभक्त को राखिए, आँगन कुटी छवाय,
सात जनम के पाप का, फल तुरंत मिल जाय.
अपने ऊपर कृपा बरसवाने के लिए हम सबको एक सफल अंधभक्त के इन सभी इम्तहानों से ज़रूर गुज़रना होगा -
आपका रहमो-करम, ज़िन्दगी में, पाने को,
मैंने इस रूह की आवाज़ से मुंह मोड़ा है.
किसी शुबहे, किसी ऐतराज़ के, अंदेशे से,
इज्ज़तो-अक्ल को, ख़ुद ताक पे, रख छोड़ा है.
अंधभक्तों पे कृपा, इतनी ज़रा, बरसा दे,
रेवड़ी बाँट का. ठेका तो मुझे , दिलवा दे.
मेरी इस अरदास पर प्रभू के कुछ अंधभक्त मेरे खून के प्यासे हो गए. मेरे जले पर नमक छिड़कते हुए मेरे हितैषी कृष्णा चंदोला भाई साहब ने मुझे सलाह दे डाली कि अपने ऊपर प्रभू की कृपा बरसवाने के लिए मुझे किसी मतिमंद अंधभक्त को अपने पड़ौस में बसा लेना चाहिए.
इस बात पर मुझे संतों की बानी का स्मरण हो आया -
चढ़े करेला, नीम पर, अति कड़वा हो जाय,
अंधभक्त, मतिमंद हो, संग, नरक हो जाय.
तथा
अंधभक्त को राखिए, आँगन कुटी छवाय,
सात जनम के पाप का, फल तुरंत मिल जाय.
अपने ऊपर कृपा बरसवाने के लिए हम सबको एक सफल अंधभक्त के इन सभी इम्तहानों से ज़रूर गुज़रना होगा -
आपका रहमो-करम, ज़िन्दगी में, पाने को,
मैंने इस रूह की आवाज़ से मुंह मोड़ा है.
किसी शुबहे, किसी ऐतराज़ के, अंदेशे से,
इज्ज़तो-अक्ल को, ख़ुद ताक पे, रख छोड़ा है.
हम तो अंधों के बीच में रह रहे हैं। चलिये भक्ति में लगे रहें। इन नयनसुखों से कुछ ना हो पायेगा। आप रेवड़ियों के ठेकों के लिये आवेदन भेजते रहिये।
जवाब देंहटाएंमधुमेह के मारे मुझ बेचारे की तो रेवड़ियों में भी गुड़ या चीनी की जगह करेला और नीम ही पड़ेगा. रेवड़ी-बाँट का ठेका मिला तो रेवड़ी खुद नहीं खाऊंगा, अपने कुनबे में और अपने दोस्तों में बांटूंगा.
जवाब देंहटाएंरेवड़ियाँ चाहे जैसे भी स्वाद की हो कहलायेंगी रेवड़ी ही....।
जवाब देंहटाएंएक जरुरी सूचना यह है कि रेवड़ियों का ठेका लेने के लिए भक्त के साथ-साथ अंधा और बहरा और बुद्धि हीन होना अनिवार्य है।
अच्छा व्यंग्य है सर।
धन्यवाद श्वेता जी. आपकी बात के जवाब में मैंने अपनी बात में अपना एक पुराना शेर जोड़ दिया है. शायद आप मुझसे इत्तिफ़ाक़ रक्खें.
हटाएंजी,सर सटीक लिखे है...👌👌
हटाएंपुनः धन्यवाद श्वेता जी.
हटाएंजब भी लिखते हैं कमाल ही लिखते हैं ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मीनाजी. जब आप जैसे प्रशंसक मिल जाते हैं तो मेरी काव्यात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है. मैं तो यही कहूँगा - 'कृपा बरसाती रहिएगा.
हटाएंक्या बेहतरीन तंज़ मारा है आपने.
जवाब देंहटाएंवाह सीधा "ठा" करके बजेगा सीने में.
हाथ पकडती है और कहती है ये बाब ना रख (गजल 4)
.
धन्यवाद रोहितास, आप नौजवानों की तारीफ़ मेरी उम्र कम कर देती है और मेरा जोश बढ़ा देती है.
हटाएंआपकी चोट खाई हुई ग़ज़ल सच्ची और अच्छी लगी.
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २८ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
अपना स्नेह बनाए रखने के लिए एक बार पुनः धन्यवाद ध्रुव सिंह जी. 'लोकतंत्र' संवाद ने साहित्यिक जगत में मेरी एक नई पहचान बनाई है.
हटाएंशानदार व्यंग्य!!
जवाब देंहटाएंअंधा बांटे रेडी फिर फिर अपनो को देय....
या फिर
अंधा अंधे ठेलिये दोनो कूप पड़न्त.
धन्यवाद कुसुम जी. 'अँधा, अंधे ठेलिए, दोनों कूप पडंत' आपने तो लोकसभा और राज्यसभा के दृश्यों का आँखों देखा हाल सुना डाला.
हटाएंसटीक
जवाब देंहटाएंलाजवाब व्यंग रचना है ... गहरी बात ...
प्रशंसा के लिए धन्यवाद दिगंबर नसवा जी.
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