बुधवार, 8 अगस्त 2018

प्रलय - 2

प्रलय – 1 के लिए देखिए https://www.facebook.com/gopeshmohan.jaswal/posts/10210175980475484
प्रलय- 2
बादल फटने के हादसे के अगले दिन बिशनपुर गांव एक उजड़ा हुआ समुद्री टापू लग रहा था. जगह-जगह नाले फूट पड़े थे. मूसलाधार बारिश अब भी अपना कहर बरपा रही थी. खण्डहर हुए मकान मलबे से ढके हुए थे. पहाड़ की मिट्टी भरभरा कर गिरती चली जा रही थी. मलबों से ढके मकानों के अन्दर से उनमें फंसे और दबे हुए ज़िन्दा लोगों की चीख-पुकारें दूर-दूर तक सुनाई दे रही थीं. मातम मनाने वालों का शोर बारिश और तूफ़ान के शोर को भी मद्धम कर रहा था. कुछ मुर्दा जानवर इधर-उधर ज़मीन पर छिटके पड़े थे और कुछ पानी के तेज़ बहाव के साथ बहे चले जा रहे थे. दो-चार कुत्ते गिरे हुए पेड़ों को पुल की तरह से इस्तेमाल करके इधर से उधर जा रहे थे.
पूरे बिशनपुर गांव में बस भानू पंडितजी और ग्राम प्रधान ठाकुर जमनसिंह के पक्के मकान सुरक्षित थे. भानू पंडितजी अपने घर के बरामदे में चिंतित मुद्रा में खड़े होकर हालात का जायज़ा ले रहे थे. पंडितजी मन ही मन हिसाब लगाते हुए सोच रहे थे -
'हे भगवान ! बड़ा बुरा हुआ. किसना दर्जी और भूसन लुहार का तो पूरा कुनबा मिट गया. दोनों पर मेरा करीब तीन हज़ार का कर्ज़ा बाकी था. अब उसकी भरपाई कौन करेगा? बिन्नो की छोटी बहन मुन्नी की शादी में हजार-दो हजार मिलने वाले थे, वो भी डूबे. उसकी अम्मा और खुद मुन्नी तो परलोक सिधार गए. अब तो बिशनपुर गांव में एक साल तक कोई जसन होने से रहा. भानू पंडित ! तुम्हारी साल भर की दान-दक्षिणा समझो गई बट्टे-खाते में.'
सामने से किसना दर्जी की भैंस रस्सी तुड़ा कर भागती हुई आ रही थी. भैंस माता के दर्शन कर भानू पंडितजी की बांछे खिल गईं. अब किसना दर्जी का उधार उसकी भैंस अपने घर बांधकर वसूल हो जाएगा. भूसन लुहार के घर कोई गाय-भैंस तो नहीं थी पर उसके औज़ारों को दूसरे लुहारों को बेचकर हज़ार -पाँच सौ तो इकट्ठे हो ही जाने थे. गांव के दो दर्जन मृतकों के अन्तिम संस्कार का जिम्मा भी तो पंडितजी को ही मिलना था. उसमें भी दान-पुण्य के रूप में उन्हें मोटी रकम हासिल होने वाली थी. अब तक दुखी भानू पंडितजी का चित्त गद्गद हो चुका था. उन्होंने श्रद्धापूर्वक हाथ जोड़ कर इन्द्रदेव को उनकी महती कृपा के लिए धन्यवाद दिया.
शैलनगर और आसपास के गांवों से बिशनपुर गांव में तमाशबीनों की भारी भीड़ जमा हो चुकी थी। आर्मी और एस. एस. बी. के जांबाज़ जवान तेज़ बारिश में, अपनी जान की परवाह किए बग़ैर, मलबे में फंसे हुए लोगों को बाहर निकालने में जुटे हुए थे. आर्मी मेडिकल कोर वाले घायलों की मरहम पट्टी कर रहे थे तो कुछ रोते हुए बच्चों को बिस्किट्स वगैरा खिला-पिलाकर बहलाने की कोशिश में भी लगे थे पर दर्शकों की जमात शोर-शराबा करने के अलावा उनके काम में अड़ंगा डालने का कर्तव्य निभा रही थी.
कुछ दर्शकों के लिए ये हादसा किसी तमाशे जैसा था. खबर उड़ी थी कि बिशनपुर गांव में मरने वालों की तादाद सैकड़ों में है और पूरा गांव श्मशान में तब्दील हो गया है पर तमाशबीनों को सिर्फ बीस-पच्चीस लोगों की मौत और तीस-चालीस मकानों के ज़मीदोज़ हो जाने की ख़बर ने काफ़ी निराश किया. सिर्फ़ तमाशा देखने के लिए इतनी मेहनत करके और इतना खतरा मोल लेकर जो लोग आए थे वो टूटे मकानों, टूटे पेड़ों और मलबे के ढेर पर खड़े होकर फोटो खिंचवा रहे थे. मशहूर फोटोग्राफर राजेश्वर उपाध्याय ने अपने आसपास खड़े दर्शकों की जनरल नॉलिज बढ़ाने के लिए कहा -
'इस नज़ारे को देखकर पुरानी फ़िल्म 'मदर इंडिया' की बाढ़ का सीन याद आ गया. मैंने तो अपने कैमरे में एक से एक सेंसेशनल सीन्स कैद कर लिए हैं. एक चाय-पकौड़ी वाले की दुकान गिरकर एक पेड़ पर टंग गई थी, अब तो वह ज़मीन पर आ गई है पर मैंने इस हैंगिग रैस्त्रां के कई एंगिल्स से स्नैप्स लिए हैं. उत्तरकाशी के भूकम्प के फ़ोटो-फीचर पर मुझे ‘मनोहर टाइम्स’ वालों का इनाम भी मिला था. इस बार भी कोई न कोई अखबार वाला मुझे इनाम दे ही डालेगा. अब नन्द गांव जाता हूँ , वहां भी बादल फटा है और भारी तबाही हुई है. वहां से भी कुछ न कुछ एक्साइटिंग स्नैप्स का जुगाड़ तो हो ही जाएगा.'
इस शेखीखोर राजेश्वर उपाध्याय के कारनामों का घिसा-पिटा किस्सा सुनकर ‘मधुकर समाचार’ के चीफ़ रिपोर्टर मुकुन्द तिवारी मन ही मन हंस रहे थे. उन्होंने मकान के मलबे में अधदबी एक औरत और उस की छाती से चिपट कर दूध पीते उसके बच्चे की कीचड़ में सनी लाशों की ऐसी शानदार तस्वीर खींची थी कि उन्हें इंटर्नेशनल अवार्ड मिलना तय था. अपने कैमरे को चारों तरफ़ घुमाते हुए इस विनाश लीला का हर दिलचस्प मन्ज़र कैद करते हुए दिल ही दिल में वो अपने राइवल उपाध्याय से बात कर रहे थे -
'बेटा राजेश्वर उपाध्याय ! फ़ोटोग्राफी के हुनर में मैं तुम्हारा बाप हूँ. मैं बिशनपुर गांव और नन्द गांव, दोनों जगहों में तुम पर भारी पड़ूंगा. तुमको एक फ़ोटो-फीचर पर नेशनल अवार्ड मिला है तो मुझे चार नेशनल और दो इण्टरनेशनल अवार्ड्स मिल चुके हैं. मण्डल कमीशन के विरोध में किए जाने वाले आन्दोलन के दौरान दो स्टूडेन्ट्स के आत्मदाह का टीवी चैनल्स पर लाइव कवरेज मेरी ही बदौलत आया था।'
ठेकेदार ठाकुर भोला सिंह बड़ी मुस्तैदी से पीड़ितों को चाय, नमकीन और बिस्किट का नाश्ता करवा रहे थे. बिशनपुर गांव की सौ मीटर से भी ज़्यादा टूटी सड़क, दो ध्वस्त पुलिया, मलबे में तब्दील हो चुका पंचायत-घर, प्राइमरी पाठशाला और प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र के पुननिर्माण का ठेका हासिल करने के लिए तीन-चार हज़ार का दान-पुण्य करना घाटे का सौदा नहीं था पर बुरा हो ठेकेदार हरीश पाण्डे का. कम्बख़्त गांव के हर मर्द-औरत को सौ-सौ रूपये और एक-एक कम्बल बांट रहा था और अपने इस महान कार्य की वीडियो फि़ल्म भी बनवा रहा था. भोला सिंह सोच रहे थे -
'अब तो आला अफ़सरों और मन्त्रियों के दरबारों में मोटा चढ़ावा चढ़ाकर ही बिशनपुर गांव के रिकंस्ट्रक्शन का ठेका नसीब हो पाएगा.'
स्थानीय दबंग नेता और पिछले विधान सभा चुनाव में अपनी ज़मानत खो चुके विरोधी पक्ष के ठाकुर बलवन्त सिंह अपने दल-बल के साथ दुर्घटना-स्थल पर मौजूद थे. इस हादसे के पीछे उन्हें सत्ता-पक्ष का नाकारापन साफ़ नज़र आ रहा था. सरकार की प्रशासनिक स्तर पर कमियों और लापरवाहियों पर वो एक ओजस्वी भाषण देना चाहते थे पर इसके लिए उन्हें कोई मौका नहीं दे रहा था पर उनकी खुशकिस्मती से एक टीवी न्यूज़ चैनल का रिपोर्टर उनसे इस हादसे के बारे में सवाल करने की भूल कर बैठा तो उसके कैमरे के सामने उन्होंने भाषण फोड़ने की अपनी पूरी भड़ास निकाल ही डाली. पर अभी अपनी जन-सेवा का उन्हें कोई फड़कता हुआ नमूना भी शैलनगर की जनता के सामने पेश करना था. अपने शिकार उस टीवी रिपोर्टर के कान में कुछ कहकर उन्होंने नोटों का एक बण्डल चुपके से उसकी जेब में डाला, अपने दो समर्थकों को कीचड़ में सनवा कर, भीड़-भाड़ से दूर एक मकान के मलबे में उन्होंने फंसवा दिया और फिर उन्हें अपनी जान पर खेल कर सकुशल निकालने लाने का बड़ा नेचुरल अभिनय किया. नोटों का बण्डल पाकर मगन न्यूज़ रिपोर्टर ने इस रेस्क्यू ऑपरेशन का हर दृश्य अपने वीडियो कैमरे में कैद किया और ठाकुर साहब से उसने वादा किया कि अगले दिन उसका चैनल दिन में दस बार उनका यह महान कार्य प्रसारित करेगा.
सरकारी महकमा, लाल बत्ती वाली सफ़ेद एम्बैसडरों और नीली बत्तियों वाली जिप्सियों में लद-फंद कर बिशनपुर गांव की शोभा बढ़ाने आ पहुंचा था. अधिकारीगण कीचड़ से अपने कीमती जूतों और पोशाकों को इतनी निष्ठा से बचाने की कोशिश कर रहे थे कि उन्हें गांव वालों की तकलीफ़ पर ध्यान देने की ज़्यादा फ़ुर्सत ही नहीं मिल पा रही थी. वैसे भी आज दिन के ग्यारह बजे एक मन्त्री के दौरे के वक्त इस गांव का उन्हें दोबारा चक्कर लगाना था और कल मुख्य मन्त्री के दौरे के समय तीसरा. आज ही अगर गांव वालों की सारी शिकायतें सुनकर उनका समाधान करने की कोशिश शुरू कर दी जाती तो दूसरे और तीसरे दौरे के वक्त मन्त्रीजी और मुख्य मन्त्रीजी के सामने स्थानीय प्रशासन की बड़ी किरकिरी हो जाती. सबॉर्डिनेट ऑफिसर्स को राहत कार्य के लिए कुछ ज़रूरी हिदायतें देकर जिले के शीर्षस्थ अफ़सरान, हादसों के शिकार, दूसरे क्षेत्रों के तूफ़ानी दौरे पर निकल पड़े.
- क्रमशः ...

18 टिप्‍पणियां:

  1. ओह्ह्ह...सर...एक दर्दनाक प्राकृतिक आपदा का अपने स्तर पर कौन कितना लाभ ले सकता है इसका सचित्र व्याख्या.. मनुष्य कितना स्वार्थी है चाहे वो किसी वर्ग से हो....ग़ज़ब का चित्रण है सर। मन उद्वेलित हो गया इस रहस्योद्घाटन से।
    अगले भाग की प्रतीक्षा है।

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    1. धन्यवाद श्वेता जी. अभी हाल ही में 39 मुर्दों पर सियासत होते हुए आपने देखी होगी. हमारे यहाँ प्राकृतिक आपदाएं तो सरकारी अमले और नेताओं के लिए लाटरी के रूप में आती हैं. हो सकता है कि कहानी के अगले मंज़र में आपको कुछ और तल्ख़ हक़ीक़त का सामना करना पड़े. 10 अगस्त को इस कहानी का तीसरा भाग पेश करूंगा.

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  2. सुन्दर । तीसरे भाग की प्रतीक्षा रहेगी।

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  3. धन्यवाद मित्र ! 10 अगस्त को कहानी का तीसरा भाग लेकर तुम्हारी सेवा में फिर उपस्थित होता हूँ.

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  4. इतना स्वार्थ और हृदयहीनता....,लोग यूं भी जी लेते हैं।दुखी भी और हृदयहीन भी । मर्मस्पर्शी कहानी ।

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    1. धन्यवाद मीना जी. इस कहानी में हृदयहीनता की तो ये इब्तिदा है, अभी इसकी इंतिहा बाक़ी है.

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  5. लोभ-लोलुपता में लिप्त चरित्रों के बीच सैनिकों द्वारा बचाव कार्य बौना नज़र आ रहा है. सुंदर प्रस्तुति . 10 अगस्त तक इंतज़ार करूँगा .

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    1. राही जी, अंग्रेज़ी में कहें तो - 'The only silver lining behind the dark clouds.' हमारे जवानों ने ऐसी हर आपदा में अपनी दिलेरी और अपनी इंसानियत के कीर्तिमान स्थापित किए हैं.

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  6. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 9 अगस्त 2018 को प्रकाशनार्थ 1119 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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    1. धन्यवाद रवींद्र सिंह यादव जी. 'पांच लिंकों का आनंद' में मेरी कहानी का दूसरा भाग सम्मिलित किए जाने से मुझे प्रसन्नता है. इस प्रसन्नता में और वृद्धि तब हो सकती है जब कि पाठक इस कहानी के चारों भाग का आनंद ले सकें. इस कहानी का तीसरा भाग मैं 10 अगस्त को और चौथा व अंतिम भाग 12 अगस्त को पोस्ट करूंगा.

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  7. बढ़िया आलेख
    तीसरे का इन्तेजार रहेगा
    सादर

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    1. धन्यवाद यशोदा जी. 10 अगस्त को और 12 अगस्त को इस कहानी के दो भाग और पोस्ट करूंगा. इस कहानी के चारों भाग पढ़िएगा ज़रूर. आपके मूल्यवान आकलन की प्रतीक्षा रहेगी.

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  8. अत्यंत मार्मिक किंतु मनुष्य कहलाने वाले ये रंगे सियार उस दिल दहलानेवाले मंजर से अप्रभावित कैसे रह जाते हैं, यही आश्चर्य है !!! हम तो सिर्फ इस घटना को पढ़ने मात्र से सिहर रहे हैं, वे कैसे शैतान होंगे जो इंसानों की जलती लाशों पर भी अपनी रोटियाँ सेंक लेते हैं....
    अगली कड़ी की प्रतीक्षा।

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    1. धन्यवाद मीना जी. मुझे उम्मीद है कि आप पूरी कहानी पढने के बाद चील, कौओं और गिद्धों की क्रूरता की कहानियों को भूल जाएंगी.

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  9. संवेदन हीन होते मानव के स्वार्थ और लोलुपता का सटीक वर्णन किया है आपने इस कहानी में कितना गिर गया है इंसान हर महकमा हर आपदा मे से अपना फायदा ढ़ूढ लेती है, अर्थ, यश नाम, पद और विपत्ति मे फसे लोग सिर्फ तकदीर और भगवान को कोसते रहते हैं कुछ होनी जानी नही व्यवस्था नींव से बिगड़ चुकी है।
    कहानी शानदार ढंग से आगे बढ़ रही है आगे की कड़ी का इंतजार रहेगा।
    आपकी लेखन कला अप्रतिम है।

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    1. धन्यवाद कुसुम जी. करीब आठ साल पहले ये कहानी लिखी थी. अगर आज लिखता तो इन दयालु महात्माओं की और इन निस्वार्थ जन-सेवकों की गाथा कुछ और भी उज्जवल, कुछ और भी प्रेरणा दायक होती. 12 अगस्त को इस कहानी की अंतिम कड़ी पर भी आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी.

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  10. कुसुम जी,
    10 अगस्त को इस कहानी की तीसरी कड़ी पोस्ट की है. उसे भी पढ़िएगा. 12 अगस्त को इसकी अंतिम कड़ी पोस्ट करूंगा.

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