महा-जन्मोत्सव –
सुख में, दुःख में,
हानि-लाभ में,
हार-जीत में,
कभी न जो मक्कारी छोड़ें,
शांति, समन्वय,
मानवता की,
निष्ठुर हो, नित गर्दन मोड़ें,
सत्ता में हों या विपक्ष में,
शेख चिल्लिया-जुमला फोड़ें,
सब्ज़बाग़ की, सैर करा कर,
जनता का, हर सपना तोड़ें,
ऐसे देशभक्त, गाँधी का,
डेढ़-शतक, अब मना रहे हैं,
सोए सुख से, वो समाधि में,
उन्हें छेड़ फिर, जगा रहे हैं.
डेढ़-सदी के, समारोह का,
कोई नाथू, आयोजक है,
भस्मासुर के, गुण से शोभित,
कोई,
इसका प्रायोजक है.
राजघाट पर, मॉल बनेगा,
आयातित, हर माल बिकेगा,
सुरा सुंदरी, धूम्र-पान का,
नित्य वहाँ, दरबार सजेगा.
सट्टे-जूए
की महफ़िल में,
मधुबालाएं जाम भरेंगी,
और मेनका, थिरक-थिरक, कर,
खुलकर,
क़त्ले-आम करेंगी.
रसिकों बीच, विरागी जैसे,
अलग-थलग, तुम पड़ जाओगे,
नज़र उठाई, जहाँ कहीं भी,
वहीं,
शर्म से, गड़
जाओगे.
बिन श्रद्धा के, श्राद्ध तुम्हारा,
करते हैं, उनको करने दो,
इस विराट, आयोजन से जो,
भरते जेब, उन्हें भरने दो.
गांधी टोपी, बिकतीं फिर से,
गांधी लाठी, चलतीं फिर से,
गाँधी की बकरी की, बलि दे,
बिरयानी पकतीं हैं फिर से.
गाँधी छोड़ो, राजघाट को,
राज-नगर के, ठाठ-बाट को,
तुम समाधि में लेटे कैसे,
सहते निर्मम, लूटपाट को?
दलित बस्तियों में ही जाकर,
‘वैष्णव
जन्तो’, गा
सकते हो,
पीर पराई, हरते-हरते,
महा-मुक्ति तुम, पा सकते हो.
गाँव-गाँव में, अलख जगाओ,
बहुत अधूरे, काम पड़े हैं,
कितने ही, दरिद्र नारायण,
आस लगाए, द्वार खड़े हैं.
भुला चुकी है, दिल्ली तुमको,
तुम भी उसे, भूल ही जाओ,
जहाँ न्याय हो, समरसता हो,
अपना चरखा, वहीं चलाओ.
सत्य,
अहिंसा और प्रेम की,
नगरी कोई, और बसाओ,
सत्य,
अहिंसा और प्रेम की,
नगरी कोई, और बसाओ.
आज के माहौल को गाँधी जी से जोड़ कर उत्तम रचना रची हैं.
जवाब देंहटाएंआदर्श जो गांधी जी ने बनाये वो भी गांधी जी के संग समाधि ले चुके.
धन्यवाद रोहितास घोरेला जी. गाँधी का जिन्न 2 अक्टूबर को बोतल से निकलता है, सियासतदानों की ख्वाहिशें पूरी कर के फिर बोतल में बंद हो जाता है.
जवाब देंहटाएंगहरा तंज लिखा है आपने सर..जबरदस्त..👌👌
जवाब देंहटाएं2 अक्टूबर को ही आदर्शों का पिटारा खुलता है सर।
काश कि गाँधी जी के जीवन दर्शन के कुछ विचारोंं को हम आत्मसात कर पाते तो शायद आज परिदृश्य कुछ और होता।
धन्यवाद श्वेता जी. स्वच्छता अभियान को सफल बनाने के लिए पहले सफ़ाई कर्मचारी किसी क्षेत्र की सफ़ाई करते हैं, फिर उस स्थान पर साफ़-सुथरा कूड़ा-करकट डाला जाता है जिसे मंत्री जी अगले दिन झाडू मारकर साफ़ करते हैं. ऐसी नौटंकियाँ और खोखले भाषण देख-सुन कर हम बूढ़े हो गए पर अभी इस धारावाहिक गाँधी-नौटंकी के बहुत एपिसोड्स बाक़ी हैं.
हटाएंअब जब लंगोट उतरने का डर सताने लगा है
जवाब देंहटाएंगाँधी और गाँधी गिरी का सपना फिर से आने लगा है।
जय हो आपकी कलम की तीखी धार को ।
धन्यवाद सुशील बाबू. मेरी कलम की इस धार को तीखी बनाने के लिए तुम्हारी प्रेरणा बहुत काम आती है. तुम्हीं ने मुझे कलम चलाने का चस्का लगाया है, अब उसे रोक पाना मेरे बस में नहीं है. और रही गाँधी-गिरी की बात तो यह चमचा-गिरी से और दादा-गिरी से भी निम्न श्रेणी का व्यवसाय है.
हटाएंkamaal ki kavita.. pahli baar padha hoon aapko .. ab niyamit rahunga... baba nagarjun wala tanj hai kavita me...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अभिनव रॉय जी. कहाँ हिमालय जैसे ऊंचे बाबा नागार्जुन और कहाँ किसी छोटे से टीले जैसे हम. लेकिन यह तुलना लगी बहुत अच्छी. हाँ, एक बात ज़रूर है कि मैंने यह कविता दिल से लिखी है. ब्लॉग के बहाने आप से नियमित रूप से भेंट होती रहे, इस से अच्छी बात और क्या हो सकती है. मेरे ब्लॉग पर आपका सदैव स्वागत है.
जवाब देंहटाएंगांधीवाद अप्रासंगिक नहीं होगा. गाँधी दर्शन की झलक और समाज की वैचारिक दरिद्रता पर तीखा कटाक्ष करती रचना सुधि पाठक से सीधा संवाद स्थापित करती है.
जवाब देंहटाएंसरलता की अद्भुत शक्ति का एहसास दिलाती है आपकी कविता.
सादर नमन सर.
धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी. अपने बगुला भक्तों के ऊपर गाँधी जी अक्सर मुझसे कविताएँ लिखवाते रहते हैं. अपने बचपन से अपने बुढ़ापे तक मैंने भी इन महानुभावों को देखा और समझा है इसलिए उनके कारनामों का आँखों देखा हाल लिखता रहता हूँ.
हटाएंभले भुला दे दिल से दिल्ली
जवाब देंहटाएंऔर उड़ा लें खल जन खिल्ली
पर चक्कर में राजपाट के
देंगे दंडवत राजघाट में.........बहुत सार्थक रचना जमीर को जगाती हुई. आभार आदरणीय!
ऐसी काव्यात्मक टिप्पणी के लिए वाह ! वाह ! के साथ धन्यवाद विश्व मोहन जी. 'चित्रकूट के घाट से अधिक भक्त तो अब राजघाट पर जमा होते हैं किन्तु ये सब बगुला भगत होते हैं.
हटाएंआदरणीय गोपेश जी -- रचना उसी दिन पढ़ ली थी पर कुछ व्यस्तताएं बनी रहती है अतः अपने विचार लिख ना पाई | ध्रुव जी के संवाद अंक की शोभा बनी इस धारदार सार्थक व्यंगात्मक रचना के लिए कोई शब्द नहीं मिल रहे | सच कहूं तो सराहना के हर शब्द से परे है ये रचना | गह्ररा तंज लिए -- मर्मान्तक चोट करती रचना आज के झूठे गांधीवाद को आइना दिखने में सक्षम है -
जवाब देंहटाएंभुला चुकी है, दिल्ली तुमको,
तुम भी उसे, भूल ही जाओ,
जहाँ न्याय हो, समरसता हो,
अपना चरखा, वहीं चलाओ.
सत्य, अहिंसा और प्रेम की,
नगरी कोई, और बसाओ,
सत्य, अहिंसा और प्रेम की,
नगरी कोई, और बसाओ.--
क्या बात है !! इन शब्दों से छद्म गांधीवादियों का कलेजा मुंह को आ जाएगा | आपकी लेखनी का प्रवाह कभी ना थमे | मेरी शुभकामनाये स्वीकार हों |
इतनी निश्छल प्रशंसा के धन्यवाद रेनू जी. गाँधी बाबा मेरे ज़मीर को झकझोर कर अक्सर मुझे परेशान करते रहते हैं और अपने तथाकथित भक्तों की नौटंकियों की मुझसे शिकायत भी करते रहते हैं. बस, अपने इन्हीं अनुभवों को मैं कभी लेखबद्ध कर लेता हूँ तो कभी छंद-बद्ध.
हटाएंमेरा विश्वास है कि आपकी शुभकामनाएँ मेरी लेखनी के प्रवाह को एक नया बल देंगी.