शनिवार, 30 नवंबर 2019

मुंबई का सबक़



सत्य, त्याग औ नैतिकता को, नहीं भूल कर अपनाना,
इर्द-गिर्द, कुर्सी के, बुन लो, जीवन का, ताना-बाना,
गठबंधन की राजनीति का, मर्म, यही हमने जाना,
अगर ज़रुरत पड़े, गधे को बाप, मान, मत शर्माना.

12 टिप्‍पणियां:

  1. कोई गधा मुँह ही नहीं लगाता क्या करेंं?

    जवाब देंहटाएं
  2. गधा क्यों किसी को मुंह लगाएगा? ज़रुरत पड़ने पर नेता उसको मुंह भी दिखाएगा और उसकी दुलत्ती भी खाएगा.

    जवाब देंहटाएं
  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (25-11-2019) को "गठबंधन की राजनीति" (चर्चा अंक 3537) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं….
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

    जवाब देंहटाएं
  4. 'गठबंधन की राजनीति' (चर्चा अंक - 3537) में मेरी व्यंग्य रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी.

    जवाब देंहटाएं
  5. नेताओं का मतलब सत्ता धीश रहना ... चाहे जैसे हो ...
    हर पक्ष सत्ता कमाने के लिए रखना चाहता है ...

    जवाब देंहटाएं
  6. नेताओं के विषय में आप की बात से मैं पूर्णतया सहमत हूँ दिगंबर नासवा जी. अब तो 'नेता' शब्द को अश्लील-अभद्र-असंवैधानिक-असंसदीय घोषित कर दिया जाना चाहिए.

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत अच्छा व्यंग्य लिखा है सर आपने. थोड़े शब्द और गहरी मारक बात लिखने में आपका कोई सानी नहीं है.
    सादर प्रणाम आदरणीय सर.

    जवाब देंहटाएं
  8. तारीफ़ के लिए धन्यवाद अनीता.
    आज जो भी राजनीति में हो रहा है उस पर तंज़ कसे जा सकते हैं और फुलझड़ियाँ छोड़ी जा सकती हैं पर कोई महाकाव्य नहीं लिखा जा सकता. वैसे भी हमारे राजनीतिक पतन का अध्ययन करने पर कोई अपना इतना समय क्यों बर्बाद करना चाहेगा?

    जवाब देंहटाएं