शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

धर्म-मज़हब के नाम पर

बदायूं में हुई अमानुषिक घटना के बारे में सुन कर हम सब का दिल दहल गया है.
पाशविकता की हर सीमा को पार करते हुए इन हत्यारे दरिंदों ने भारतीय धर्म-समाज की प्रतिष्ठा को जैसी चोट पहुंचाई है उसका आकलन कर पाना असंभव है.
मेरा उद्देश्य इस घटना के विषय में विस्तार से चर्चा करना नहीं है बल्कि मैं चाहता हूँ कि इस घटना के बाद हम इस बात पर चर्चा करें कि हमारे देश में, हमारे समाज में, धर्म के नाम पर कैसे-कैसे प्रपंच होते हैं और किस तरह से किसी चमत्कार की आशा में भोले किन्तु मूर्ख लोग, महा-मक्कार, महा-छली, बाबाजियों, तांत्रिकों, मौलवियों, पादरियों, ग्रंथियों, फ़क़ीरों, साधुओं, आदि के जाल में फंस कर अपना सब कुछ लुटवा देते हैं.
हमारी पौराणिक गाथाओं में कपटी साधुओं द्वारा भोली भाली स्त्रियों को छलने की अनेक घटनाओं का उल्लेख मिलता है.
साधु के वेश में सीता जी का छल से हरण करने वाले रावण की कथा तो हम सब जानते ही हैं.
दुःख और चिंता का विषय यह है कि छल-कपट की इन पौराणिक गाथाओं को सुनने और पढ़ने के बाद भी हमारे समाज की स्त्रियाँ और बालिकाएं ऐसे कपटियों के छद्म-जाल में फंस जाती हैं.
नारी-जाति की इस आत्मघाती अज्ञानता का मूल कारण हमारे समाज में, विशेष कर, हमारे स्त्री समाज में, व्याप्त अंध-विश्वास है.
क्या हमने कभी सोचा है कि सफलता का शॉर्टकट खोजने की हमारी कमज़ोरी, कितनी बार हमारी बर्बादी का कारण बन जाती है?
कितनी बार हम तन्त्र-मन्त्र, जादू-टोना, झाड़-फूँक, गंडा-ताबीज़ आदि की चमत्कारी शक्ति का झूठा दावा करने वालों से ठगे जाते हैं?
अनपढ़, जाहिल, गंवार और साधनहीन कहलाने वाले तबक़े में व्याप्त अंध-विश्वास की बात तो जाने दीजिए, हमारे तथाकथित सभ्य, सम्भ्रान्त और शिक्षित समाज के अंग-अंग में भी अंध-विश्वास का यह ज़हर बुरी तरह फैला हुआ है.
मुझे याद नहीं पड़ता कि हमारे देश में किस धर्म के अनुयायियों में ढोंगी और पाखंडी धर्म-गुरु नहीं होते हैं.
हम एक आसाराम बापू या एक राम-रहीम या फिर एक निर्मल बाबा खोजने निकलेंगे तो इन जैसे सैकड़ों-हज़ारों पाखंडी, बगला भगत, भारत के हर गली, हर कूचे में, समाधि लगाए या फिर ताक लगाए, बैठे मिल जाएंगे और अगर इन के अंधभक्तों की हम गणना करने बैठ जाएंगे तो हमको कम से कम एक साल तो लग ही जाएगा.
प्राचीन काल में प्रचलित नियोग प्रथा में बहुधा साधु-महात्माओं को ही यह दायित्व दिया जाता था कि वो निसंतान रानियों के सूने आँगन में नन्हे-नन्हे फूल उगाएं.
अपने पूर्वजों की भांति आज भी यह दायित्व यही साधु समाज निभा रहा है.
बदायूं के ढोंगी महंत और उसके मुस्टंडों की शिकार हुई इस प्रौढ़ा के अज्ञान की और उसके परिवार की जहालत की वक़ालत करने वाले उसका या उसके परिवार का कोई भला नहीं करेंगे, बल्कि उन सब के प्रति अन्याय ही करेंगे.
हमको सत्संग, कीर्तन, मजलिस आदि के नाम पर हो रहे कैसे भी अनाचार को रोकना होगा. किसी भी धर्म-गुरु के चमत्कारी दावों पर क़ानूनन प्रतिबन्ध लगाना होगा.
सिर्फ़ स्त्रियों की सभाओं को संबोधित करने वालों पर और उन सभाओं में श्री कृष्ण द्वारा गोपिकाओं के चीर-हरण की या उनकी रास-लीला की कथा को चटखारे ले-ले कर सुनाए जाने पर भी रोक लगानी होगी.
लच्छेदार बातों के ज़रिये हमको ठगने वाले और हमको भ्रमित करने वाले नेतागण या साधुगण एक ही थैली के चट्टे-बट्टे होते हैं इन –
‘विष कुम्भं, पयो मुखं’ वाले सांपों से हमको हमेशा सावधान रहना चाहिए.
आज का अवसरवादी मीडिया इस दुर्घटना को ज़्यादा सनसनीखेज़ शक्ल में पेश कर इसके ज़रिये अपनी बिक्री और अपनी टीआरपी बढ़ाएगा और हर बात को राजनीतिक मोड़ देने वाले हमारे नेतागण इस अमानवीय घटना को भी धर्म-जाति-सम्प्रदाय से जोड़ कर, अपने-अपने स्वार्थ के लिए उसे भुनाने की कोशिश करेंगे.
चंद दिनों तक धर्म-मजहब के नाम पर हो रहे अनाचार के ख़िलाफ़ मुहिम भी छेड़ी जाएगी लेकिन यह तय है कि इस हत्यारे महंत जैसे तांत्रिकों और चमत्कारी बाबाजियों की दुकानें, हमारी जहालत की वजह से, हमारी काहिली और हमारे नाकारापन की वजह से, पहले की ही तरह से फलती-फूलती रहेंगी. 

आपने-हमने-सबने, देखा-पढ़ा है कि लोगबाग कितने विस्तार से और कितना रस ले-लेकर इस कुकृत्य का सनसनीख़ेज़ वर्णन कर रहे हैं.
निर्भया-कांड से ऐसे हादसों की ऐसी ही रिपोर्टिंग और ऐसा ही कवरेज हो रहा है.
सिर्फ़ सख्त कानून बना कर हमको कुछ हासिल नहीं होने वाला है. हमको अपनी सामाजिक-धार्मिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक व्यवस्था के ठेकेदारों को बदलना होगा, तभी हम ऐसी आपराधिक घटनाओं पर अंकुश लगा पाएंगे.
7 Comments
Like
Comment
Share

13 टिप्‍पणियां:

  1. जी प्रणाम सर,
    मानसिक रोगियों की आड़ में अपना स्वार्थ साधने वालों का सिर्फ़ एक ही धर्म होता है अपने नापाक अरमान पूरे करना, इनका गुनाह किसी भी गंदे, लिज़लिज़े और घटिया बलात्कारियों की तरह ही वीभत्स और घिनौना होता है पर नासमझी में या अन्य किसी कारण से इनके शिकार आम जन मात्र मोहरा बनकर रह जाते हैं।
    सराहनीय और जागरूक करता सार्थक लेख सर।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरे विचारों से सहमत होने के लिए धन्यवाद श्वेता !
      अब इन बगला-भक्तों, ढोंगी-सुधारकों, पाखंडी-समाजसेवकों और दरिन्दे धर्म-गुरुओं का एक साथ समूल नाश होना चाहिए.

      हटाएं
  2. दिल बचा कहां है दहलने के लिये भी ह्जूर। सार्थक लेखन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरे आलेख की प्रशंसा के लिए धन्यवाद मित्र !
      हर किसी का दिल आक़ा के चरणों में समर्पित है इसलिए तुम्हें वो दिखाई नहीं दे रहा है
      वैसे भी किसी का दिल दहलने की कोई सम्भावना नहीं है क्यों कि राम-राज्य में हर बालिका, हर महिला, सुरक्षित है.

      हटाएं
  3. सराहनीय और जागरूक करता सार्थक लेख माननीय।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रशंसा और उत्साह-वर्धन के लिए धन्यवाद सधुचंद्र जी.

      हटाएं
  4. 'बगिया भरी बबूलों से' (चर्चा अंक - 3942) में मेरे आलेख को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' !

    जवाब देंहटाएं
  5. विभस्त चेहरा है ये तथाकथित समाज का नकाब में से झांकता।
    हर बार की तरह एक सामायिक घटना पर निष्पक्ष आलेख निशब्द।
    कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'

    जवाब देंहटाएं
  6. कुसुम 'प्रज्ञाजी', बादशाह औरंगज़ेब ने उन्मुक्त सूफ़ी विचारक और शायर सरमद से पूछा -
    'तू नंगा क्यों रहता है? तेरे सामने एक कम्बल पड़ा है, उसे ओढ़ क्यों नहीं लेता?
    अपने सगे भाइयों के कातिल और अपने बाप को क़ैद करने वाले बादशाह से सरमद ने कहा - 'बादशाह ! इस कम्बल से तो मैंने तेरे तमाम गुनाहों को ढका है. क्या तू चाहता है कि मैं उनका खुलासा कर दूं?'
    इस खाक़सार ने सरमद पर पीएच. डी. ज़रूर की है लेकिन उसकी तरह किसी के गुनाह ढकने के लिए इसने अपना कम्बल इस्तेमाल नहीं किया है.

    जवाब देंहटाएं
  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  8. मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई | सबका मंगल हो |

    जवाब देंहटाएं
  9. आदरणीय गोपेश जी , हालाँकि ये लेख उसी दिन पढ़ लिया था पर लिख ना पायी जिसका खेद रहा |आपका लेख पढ़कर ही इस वीभत्स घटना की जानकारी मिली क्योंकि ब्लॉग जगत से जुड़कर दूरदर्शन के दूर से ही दर्शन करती हूँ बस, सो लेख के बाद ही गूगल से सच पता चला || इस तरह की घटनाएं आम जीवन का हिस्सा बन गयी हैं |ना लोगों की , विशेषकर महिलाओं की , आस्था ढोंगी बाबाओं में कम होती है ना कोई कुटिल बाबा इस पंक में गोता लगाने से परहेज कारता है |और सनसनी के भूखे मीडिया की दुकान को बेचने के लिए लज़ीज़ खबर मिल जाती है | सच में ये हमलोगों की जहालत और नकारापन ही है जो ये घटनाएँ दोहराई जा रही हैं |खरे लेख के लिए सादर आभार

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रेणु जी, मैंने पढ़े-लिखे, समृद्ध परिवारों में भी ढोंगी बाबाओं के प्रति अंध-भक्ति देखी है. महिलाएं तो बाबाओं के जाल में अक्सर फंस जाती हैं. झूठी तारीफ़, सुखद भविष्यवाणियाँ, छद्म काम चेष्टाएँ और शत्रु-विनाश के मोटे-मोटे दावे उन्हें दिग्भ्रमित कर देते हैं और इन सबका अंजाम हमेशा दुखदायी होता है.

      हटाएं