शमा के सामने जलने वाले परवानों का ज़िक्र कर दाग देहलवी कहते हैं-
शब-ए-विसाल (मिलन की रात) है गुल कर दो इन चराग़ों को
ख़ुशी की बज़्म (महफ़िल) में क्या काम जलने वालों का
और हम आने वाले चुनाव को ध्यान में रख कर कहते हैं -
अभी चुनाव है गुल कर दें शोर-ए-सच को सभी
ज़मानतें ज़ब्त हुआ करतीं हरिश्चंद्रों की
एक शेर और -
हमें जो उम्र अता की गयी थी जीने को
वो हमने जान बचाने में खर्च कर डाली
सैयद सरोश आसिफ़
एक वोटर की आपबीती -
हमें जो वोट का हक़ था मिला व्यवस्था से
वो हमने चोर-लुटेरों पे खर्च कर डाला
वाह
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्यारे दोस्त !
हटाएं'पांच लिंकों का आनंद' में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद रवींद्र सिंह यादव जी.
जवाब देंहटाएं'खुद की ही जलधार बनो तुम' (चर्चा अंक - 4283) में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद कामिनी सिन्हा जी.
जवाब देंहटाएंअप्रतिम कल्पना शक्ति , शानदार अस्आर।
जवाब देंहटाएंमेरे द्वारा इन अशआर के दुरुस्त किए जाने की गुस्ताख़ी को सराहने के लिए धन्यवाद मन की वीणा !
हटाएंवाह लाजवाब..
जवाब देंहटाएंतारीफ के लिए शुक्रिया मनीषा !
हटाएंबढिया है।
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद नितीश तिवारी जी.
हटाएंवाह बहुत खूब 👌👌
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अनुराधा जी.
हटाएंवाह! बेमिशाल पैरोडी!--ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद ब्रजेन्द्रनाथ जी.
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