पुनर्जन्म ले मोहन गाँधी बड़ा दुखी था.
यूं वकील था, पर फिर भी बेरोजगार था, खूँटी पर ही काला कोट, टंगा रहता था.
कब तक वह राणा प्रताप बन, घास-पात की रोटी सुख से, खा सकता था.
कब तक खाली पेट, मगन हो, भजन राम के, सांझ-सवेरे गा सकता था.
सभी ओर से हो निराश वह, आत्मघात का निश्चय, मन में ठान चुका था.
किन्तु समय ने करवट लेकर, उसके बिगड़े काम बनाए.
एक दया के सागर बाबा, खुद उसके घर चल कर आए.
रख उसके सिर हाथ प्यार से बोले बाबा-
“मेरे वरद हस्त के नीचे, बेटा तू, भूखा न मरेगा,
हुकुम अगर मानेगा मेरा, तुझसे सकल जहान डरेगा.”
मोहन गांधी नत-मस्तक हो, अपने उद्धारक से बोला -
“रोज़ी दाता, रोटी दाता, हे उपकारी, भाग्य-विधाता !
शरण तुम्हारी आकर मैंने, तोड़ दिया चिन्ता से नाता.
शर्म-हया, इज्ज़त, ज़मीर सब, आज समर्पित करता तुमको,
अपनी कृपा-सुधा बरसाकर, दास बनाए रखना मुझको.
किन्तु दयामय ! इस सेवक को, अपना परिचय भी तो दे दो,
और काम क्या करना मुझको, इसका विवरण भी कुछ दे दो.”
बाबा बोले – “राष्ट्र-पिता के मंदिर का मैं मुख्य पुजारी, तुझे मेरी रक्षा करनी है,
फोड़ नारियल सदृश खोपड़ी, निन्दकजन की, नित्य तुझे खातिर करनी है.”
मोहन चौंका – “राष्ट्रपिता गाँधी बाबा तो सत्य, अहिंसा को भजते थे,
करुणा, पर-उपकार सदृश गुण, उनके जीवन में सजते थे.”
बाबा गरजे – “मूर्ख ! बीसवीं सदी तो अब, इतिहास हो गयी,
नरसिंह मेहता की बानी भी, इक कोरी बकवास हो गयी.*
नव-भारत के राष्ट्रपिता, श्री परम पूज्य नाथू बाबा हैं,
नरमुंडों से सज्जित स्थल, उनके काशी और काबा हैं.
मत्स्य-न्याय, पशु-बल ही सच है, धर्म-नीति, केवल माया है.
पुत्र ! उठा बन्दूक, मिटा दे, मुझ पर जो संकट छाया है.”
धांय-धांय औ ठांय-ठांय का मन्त्र, प्राण का है रखवैया,
अगर शस्त्र हो हाथ,, सिंह भी बन जाता है, बेबस गैया.
भंवर बीच जो नाव फंसी थी, उसे मिल गया सबल खिवैया,
नाथू-मंदिर के आँगन में, नाचे मोहन, ता-ता थैया.
नाचे मोहन, ता-ता थैया, ता ता थैया, ता ता थैया -------------
(* नरसिंह मेहता की बानी –‘वैष्णव जन्तो तेने रे कहिये, जे पीर पराई जानि रे’)
यूं वकील था, पर फिर भी बेरोजगार था, खूँटी पर ही काला कोट, टंगा रहता था.
कब तक वह राणा प्रताप बन, घास-पात की रोटी सुख से, खा सकता था.
कब तक खाली पेट, मगन हो, भजन राम के, सांझ-सवेरे गा सकता था.
सभी ओर से हो निराश वह, आत्मघात का निश्चय, मन में ठान चुका था.
किन्तु समय ने करवट लेकर, उसके बिगड़े काम बनाए.
एक दया के सागर बाबा, खुद उसके घर चल कर आए.
रख उसके सिर हाथ प्यार से बोले बाबा-
“मेरे वरद हस्त के नीचे, बेटा तू, भूखा न मरेगा,
हुकुम अगर मानेगा मेरा, तुझसे सकल जहान डरेगा.”
मोहन गांधी नत-मस्तक हो, अपने उद्धारक से बोला -
“रोज़ी दाता, रोटी दाता, हे उपकारी, भाग्य-विधाता !
शरण तुम्हारी आकर मैंने, तोड़ दिया चिन्ता से नाता.
शर्म-हया, इज्ज़त, ज़मीर सब, आज समर्पित करता तुमको,
अपनी कृपा-सुधा बरसाकर, दास बनाए रखना मुझको.
किन्तु दयामय ! इस सेवक को, अपना परिचय भी तो दे दो,
और काम क्या करना मुझको, इसका विवरण भी कुछ दे दो.”
बाबा बोले – “राष्ट्र-पिता के मंदिर का मैं मुख्य पुजारी, तुझे मेरी रक्षा करनी है,
फोड़ नारियल सदृश खोपड़ी, निन्दकजन की, नित्य तुझे खातिर करनी है.”
मोहन चौंका – “राष्ट्रपिता गाँधी बाबा तो सत्य, अहिंसा को भजते थे,
करुणा, पर-उपकार सदृश गुण, उनके जीवन में सजते थे.”
बाबा गरजे – “मूर्ख ! बीसवीं सदी तो अब, इतिहास हो गयी,
नरसिंह मेहता की बानी भी, इक कोरी बकवास हो गयी.*
नव-भारत के राष्ट्रपिता, श्री परम पूज्य नाथू बाबा हैं,
नरमुंडों से सज्जित स्थल, उनके काशी और काबा हैं.
मत्स्य-न्याय, पशु-बल ही सच है, धर्म-नीति, केवल माया है.
पुत्र ! उठा बन्दूक, मिटा दे, मुझ पर जो संकट छाया है.”
धांय-धांय औ ठांय-ठांय का मन्त्र, प्राण का है रखवैया,
अगर शस्त्र हो हाथ,, सिंह भी बन जाता है, बेबस गैया.
भंवर बीच जो नाव फंसी थी, उसे मिल गया सबल खिवैया,
नाथू-मंदिर के आँगन में, नाचे मोहन, ता-ता थैया.
नाचे मोहन, ता-ता थैया, ता ता थैया, ता ता थैया -------------
(* नरसिंह मेहता की बानी –‘वैष्णव जन्तो तेने रे कहिये, जे पीर पराई जानि रे’)
प्रखर व्यंग्य कविता |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाई साहब.
हटाएंमेरी रचना ब्लॉग बुलेटिन - 'दुनिया उतनी बुरी भी नहीं', में सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएं