चारण, भाट, मुसाहिब, चाटुकार, दरबारी आदि आज वीर गाथा काल और रीति काल
से हज़ारों गुने हैं किन्तु हमारे काल को साहित्य का आधुनिक काल क्यों कहा
जाता है?
फ़िराक गोरखपुरी ने कहा है -
गरज़ कि काट दिए ज़िन्दगी के दिन ऐ दोस्त,
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में.
फ़िराक गोरखपुरी ने कहा है -
गरज़ कि काट दिए ज़िन्दगी के दिन ऐ दोस्त,
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में.
देश के सभी होनहार चारणों, भाटों, मुसाहिबों और दरबारियों को अपने
श्रद्धा-सुमन अर्पित करने के लिए मैंने फ़िराक के इस शेर का नवीनीकरण किया
है-
गरज़ कि काट दिए ज़िन्दगी के दिन ऐ दोस्त,
वो तलुए चाट के गुज़रे, कि दुम हिलाने में.
गरज़ कि काट दिए ज़िन्दगी के दिन ऐ दोस्त,
वो तलुए चाट के गुज़रे, कि दुम हिलाने में.
हा हा कटी हुई दुम । सुन्दर।
जवाब देंहटाएंतुम उनकी दुम काट दोगे तो वो हिलाएंगे क्या? क्यों उनकी तरक्की के दुश्मन बने हुए हो?
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