गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017

फ़िराक गोरखपुरी से क्षमायाचना के साथ

चारण, भाट, मुसाहिब, चाटुकार, दरबारी आदि आज वीर गाथा काल और रीति काल से हज़ारों गुने हैं किन्तु हमारे काल को साहित्य का आधुनिक काल क्यों कहा जाता है?
फ़िराक गोरखपुरी ने कहा है -
गरज़ कि काट दिए ज़िन्दगी के दिन ऐ दोस्त,
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में.
देश के सभी होनहार चारणों, भाटों, मुसाहिबों और दरबारियों को अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करने के लिए मैंने फ़िराक के इस शेर का नवीनीकरण किया है-
गरज़ कि काट दिए ज़िन्दगी के दिन ऐ दोस्त,
वो तलुए चाट के गुज़रे, कि दुम हिलाने में.

2 टिप्‍पणियां:

  1. तुम उनकी दुम काट दोगे तो वो हिलाएंगे क्या? क्यों उनकी तरक्की के दुश्मन बने हुए हो?

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