शायरों
की मुश्किलें –
चचा
ग़ालिब ने कहा है –
‘रंज से
खूगर (अभ्यस्त) हुआ इंसान तो, मिट जाता है रंज,
मुश्किलें
मुझ पर पडीं, इतनी, कि आसां हो गईं.’
इसी
अंदाज़ में जोश मलिहाबादी ने अपना पहला शेर कहा –
‘हाय,
मेरी मुश्किलों, तुमने भी क्या धोखा दिया,
ऐन दिलचस्पी
का आलम था, कि आसां हो गईं.’
पर आजकल
के हालात को देख कर जोश साहब के इस शेर को दुरुस्त कर के मुझको कहना पड़ रहा है -
‘हाय, मेरी मुश्किलों, तुमने भी क्या धोखा दिया,
दस पुरानी हल करीं, सौ और पैदा हो गईं.’
लोग आसानी पैदा करने में लगे हैं नये जमाने के
जवाब देंहटाएंआप को क्या हो गया है मुश्किलों के पीछे पड़ गये :)
मुश्किलें हमारी जन्म-जन्मान्तर की साथी हैं. वो हमारे आगे-पीछे हैं और हम भी उनके आगे-पीछे हैं.
हटाएं---बस्स!! सब कुछ तो कह दिया!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय भास्कर जी. हमारी मुश्किलें तो अपनी कहानियां खुद ही कह जाती हैं.
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