रविवार, 5 मार्च 2017

तरक्की

पुराने ज़माने में -
जे रहीम ओछो बढ़े, तो अति ही इतिराय,
प्यादे से फर्जी भयो, टेढ़ो-टेढ़ो जाय.
रहीम का संशोधित दोहा -
जे रहीम ओछो बढ़े, तो अति ही इतिराय,
बाथरूम को भी सदा, वायुयान से जाय.

एक बदतमीज़ दोहा -
निज प्रानन को मोल जब, कोहिनूर सम, पाय,
मधू-यामिनी कक्ष में, अंगरक्षक ले जाय.
 

5 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. रहीम की बानी और कबीर की बानी को सुधारते-सुधारते हम तो थक गए. वैसे भी हमारी जैसी व्यावहारिक दृष्टि उनके पास कहाँ थी?

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  2. तरक्की तो हो ही रही है
    आज आज है
    कल कल था
    सादर

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    उत्तर
    1. बस ईश्वर से प्रार्थना है कि ऐसी और तरक्की देखने के लिए हम न रहें.
      बहुत पहले मैंने भगवान से यह अरदास की थी -
      अवतार ले के भगवन, इस देश को बचा ले,
      चील और गिद्ध जैसे, नेता सभी उठा ले.

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  3. आज मैं आपके ब्लॉग पर आया और ब्लोगिंग के माध्यम से आपको पढने का अवसर मिला 
    ख़ुशी हुई.

    वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
    http://sanjaybhaskar.blogspot.in

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