पुराने ज़माने में -
जे रहीम ओछो बढ़े, तो अति ही इतिराय,
प्यादे से फर्जी भयो, टेढ़ो-टेढ़ो जाय.
रहीम का संशोधित दोहा -
जे रहीम ओछो बढ़े, तो अति ही इतिराय,
प्यादे से फर्जी भयो, टेढ़ो-टेढ़ो जाय.
रहीम का संशोधित दोहा -
जे रहीम ओछो बढ़े, तो अति ही इतिराय,
बाथरूम को भी सदा, वायुयान से जाय.
एक बदतमीज़ दोहा -
निज प्रानन को मोल जब, कोहिनूर सम, पाय,
मधू-यामिनी कक्ष में, अंगरक्षक ले जाय.
बाथरूम को भी सदा, वायुयान से जाय.
एक बदतमीज़ दोहा -
निज प्रानन को मोल जब, कोहिनूर सम, पाय,
मधू-यामिनी कक्ष में, अंगरक्षक ले जाय.
रहीम भी यही लिखता आज :)
जवाब देंहटाएंरहीम की बानी और कबीर की बानी को सुधारते-सुधारते हम तो थक गए. वैसे भी हमारी जैसी व्यावहारिक दृष्टि उनके पास कहाँ थी?
हटाएंतरक्की तो हो ही रही है
जवाब देंहटाएंआज आज है
कल कल था
सादर
बस ईश्वर से प्रार्थना है कि ऐसी और तरक्की देखने के लिए हम न रहें.
हटाएंबहुत पहले मैंने भगवान से यह अरदास की थी -
अवतार ले के भगवन, इस देश को बचा ले,
चील और गिद्ध जैसे, नेता सभी उठा ले.
आज मैं आपके ब्लॉग पर आया और ब्लोगिंग के माध्यम से आपको पढने का अवसर मिला
जवाब देंहटाएंख़ुशी हुई.
वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
http://sanjaybhaskar.blogspot.in