माल्योधरा विलाप (राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त से क्षमा-याचना के साथ) -
सखि, वे मुझसे कहकर जाते !
हफ्ते भर का राशन-पानी,
कम से कम, घर, रखकर जाते,
सखि वे मुझसे कहकर जाते !
मुझे भेद, उनके मालुम हैं,
हथकंडे, उनके देखे हैं,
अगर राज़ कुछ, खुल भी जाते,
पैसे के बल, वो दब जाते,
सखि वे मुझसे कहकर जाते !
राज्यसभा की अपनी गद्दी,
सुत के नाम कराकर जाते !
सखि, वे मुझसे कहकर जाते !
स्विस खातों का सारा ब्यौरा,
मुझे सौंप देते, तब जाते
सखि, वे मुझसे कहकर जाते !
चीटिंग, फ्रॉड और घपलों में,
मुझको, खुद से बढ़कर पाते,
सखि, वे मुझसे कहकर जाते !
सखि, वे मुझसे कहकर जाते !
हफ्ते भर का राशन-पानी,
कम से कम, घर, रखकर जाते,
सखि वे मुझसे कहकर जाते !
मुझे भेद, उनके मालुम हैं,
हथकंडे, उनके देखे हैं,
अगर राज़ कुछ, खुल भी जाते,
पैसे के बल, वो दब जाते,
सखि वे मुझसे कहकर जाते !
राज्यसभा की अपनी गद्दी,
सुत के नाम कराकर जाते !
सखि, वे मुझसे कहकर जाते !
स्विस खातों का सारा ब्यौरा,
मुझे सौंप देते, तब जाते
सखि, वे मुझसे कहकर जाते !
चीटिंग, फ्रॉड और घपलों में,
मुझको, खुद से बढ़कर पाते,
सखि, वे मुझसे कहकर जाते !
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जवाब देंहटाएंवाह।
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