शुक्रवार, 15 जून 2018

चंद गुस्ताखियाँ - फ़िराक़ गोरखपुरी से क्षमा-याचना के साथ


1. बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
    तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं.
संशोधित शेर -
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
मुसाहिब, अपने आक़ा की महक, पहचान लेते हैं

2. ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त
    वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में.
संशोधित शेर -
ग़रज़ कि काट दिए, ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त
वो तलुए चाट के गुजरें, कि दुम हिलाने में.

3.  ऐ दोस्त, हमने तर्के-मोहब्बत के बावजूद,
     महसूस की है तेरी ज़रुरत, कभी-कभी.
संशोधित शेर –
ऐ दोस्त, हमने तर्के-मोहब्बत के बावजूद,
इक नाज़नीं से पेच लड़ाए, अभी-अभी.
(तर्के मुहब्बत - प्रेम का परित्याग)

4.  याद करते हैं किसी को, मगर इतना भी नहीं,
      भूल जाते है किसी को, मगर ऐसा भी नहीं.
नेताजी उवाच –
अपने वादों से मुकरता हूँ, मगर ऐसा भी नहीं,
जूते-चप्पल से नवाज़ो, मुझे, गोली से नहीं.

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