1. बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं.
संशोधित शेर -
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
मुसाहिब, अपने आक़ा की महक, पहचान लेते हैं
2. ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में.
संशोधित शेर -
ग़रज़ कि काट दिए, ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त
वो तलुए चाट के गुजरें, कि दुम हिलाने में.
3. ऐ दोस्त, हमने तर्के-मोहब्बत के बावजूद,
महसूस की है तेरी ज़रुरत, कभी-कभी.
संशोधित शेर –
ऐ दोस्त, हमने तर्के-मोहब्बत के बावजूद,
इक नाज़नीं से पेच लड़ाए, अभी-अभी.
(तर्के मुहब्बत - प्रेम का परित्याग)
4. याद करते हैं किसी को, मगर इतना भी नहीं,
भूल जाते है किसी को, मगर ऐसा भी नहीं.
नेताजी उवाच –
अपने वादों से मुकरता हूँ, मगर ऐसा भी नहीं,
जूते-चप्पल से नवाज़ो, मुझे, गोली से नहीं.
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
मुसाहिब, अपने आक़ा की महक, पहचान लेते हैं
2. ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में.
संशोधित शेर -
ग़रज़ कि काट दिए, ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त
वो तलुए चाट के गुजरें, कि दुम हिलाने में.
3. ऐ दोस्त, हमने तर्के-मोहब्बत के बावजूद,
महसूस की है तेरी ज़रुरत, कभी-कभी.
संशोधित शेर –
ऐ दोस्त, हमने तर्के-मोहब्बत के बावजूद,
इक नाज़नीं से पेच लड़ाए, अभी-अभी.
(तर्के मुहब्बत - प्रेम का परित्याग)
4. याद करते हैं किसी को, मगर इतना भी नहीं,
भूल जाते है किसी को, मगर ऐसा भी नहीं.
नेताजी उवाच –
अपने वादों से मुकरता हूँ, मगर ऐसा भी नहीं,
जूते-चप्पल से नवाज़ो, मुझे, गोली से नहीं.
अभी होते फिराक तो कहते माशाअल्ला लाजवाब :)
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सुशील बाबू.
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